गीजा के पिरामिड का रहस्य अब भी बरकरार, दीवाल के पीछे हो सकता है खुफिया दरवाजा, रिसर्च में नया खुलासा
Menkaure Pyramid of Giza secret door: गीजा के तीसरे सबसे बड़े पिरामिड, मेनकौर पिरामिड के स्कैन में उसके ढलान वाले पत्थर के भीतर दो रहस्यमयी खाली वायु-भरे कक्ष मिले हैं, जो एक खुफिया दरवाजे की ओर इशारा करते हैं.
Menkaure Pyramid of Giza secret door: कई हजार वर्षों से मृत राजाओं के लिए बनाए गए विशाल पत्थर स्मारक गीजा के पिरामिड मानवता को हमेशा से आकर्षित करते आए हैं. अपनी पौराणिक कथाओं से परे, ये पिरामिड हमें प्राचीन मिस्र की दुनिया की झलक देते हैं, उनकी अन्त्येष्टि परंपराएँ, वैभव, और उनकी अद्भुत निर्माण क्षमता. यह रिसर्चर्स की भी विशेष पसंद रही है. आखिर कैसे गुजरे जमाने के लोग बिना किसी एडवांस टेक्नोलॉजी के इतनी बड़ी इमारत खड़ी कर सके. पिरामिड और उसके रहस्य पर तो ढेरों सिनेमा भी बन चुके हैं, लेकिन अब भी कई राज हैं, जिन पर से पर्दा उठना बाकी है. इसी तरह का एक रिसर्च सामने आया है, जहां गीजा के तीसरे सबसे बड़े पिरामिड, मेनकौर पिरामिड के स्कैन में उसके ढलान वाले पत्थर के भीतर दो रहस्यमयी खाली वायु-भरे कक्ष मिले हैं, जो एक खुफिया दरवाजे की ओर इशारा करते हैं.
यह खोज इससे पहले खुफू के महान पिरामिड में मिले विशाल आंतरिक खाली स्थान और उत्तरी प्रवेश द्वार के पास पाए गए एक गलियारे के बाद सामने आई है. लेकिन मेनकौर में मिले ये खाली स्थान आकार, रूप और संरचना में काफी अलग हैं, जो इसके निर्माण इतिहास और उद्देश्य को लेकर एक बिल्कुल भिन्न कहानी की ओर इशारा करते हैं. साइंस अलर्ट के मुताबिक यह शोध पेपर NDT & E International में प्रकाशित हुआ, जिसे काहिरा विश्वविद्यालय के पुरातत्वविदों खालिद हेलाल और मोहम्मद एलकरमोटी ने किया. उनकी टीम ने चमकदार ग्रेनाइट ब्लॉकों के ठीक पीछे दो असामान्यताएँ उजागर कीं, जो वायु-भरे खाली कक्षों की उपस्थिति का संकेत देती हैं. टीम ने कहा कि इस व्याख्या को वास्तविक परिस्थितियों पर आधारित कई संख्यात्मक सिमुलेशनों ने भी समर्थन दिया.
बिना नुकसान पहुँचाए स्कैनिंग
पुरातन धरोहर होने के कारण इन पिरामिडों का अध्ययन बहुत सावधानी से किया जाता है. हाल के वर्षों में ऐसी तकनीकें विकसित हुई हैं जो संरचना को नुकसान पहुँचाए बिना अंदरूनी हिस्सों को ‘देख’ सकती हैं. यह शोध स्कैन पिरामिड प्रोजेक्ट के तहत किया गया, जिसमें टीम ने ग्रेनाइट क्लैडिंग के पीछे देखने के लिए तीन आधुनिक स्कैनिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया.
पहली- इलेक्ट्रिकल रेजिस्टिविटी टोमोग्राफी (ERT), जो ठोस संरचनाओं में विद्युत प्रतिरोध मापता है.
दूसरी- ग्राउंड-पेनीट्रेटिंग रडार (GPR), जो रेडियो तरंगों का उपयोग करता है.
तीसरी- अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग (UT), जो ध्वनि तरंगों से संरचना को स्कैन करता है.
मिले दो रहस्यमयी खाली कक्ष
इन तकनीकों से मेनकौर के पूर्वी हिस्से पर दो असामान्य क्षेत्र मिले, जो आसपास के चूना-पत्थर जैसे नहीं थे. पहला कक्ष ग्रेनाइट परत से 1.4 मीटर नीचे, लगभग 1.5 मीटर चौड़ा और 1 मीटर ऊँचा मिला. जबकि दूसरा कक्ष ग्रेनाइट से 1.1 मीटर नीचे, लगभग 0.9 मीटर × 0.7 मीटर का था. दोनों में हवा भरी हुई लग रही थी और वे पत्थर के जोड़ जैसे नहीं थे. इसके बाद वैज्ञानिकों ने सिमुलेशन करके जाँच की कि क्या यह किसी अलग प्रकार के पत्थर के कारण हो सकता है पर सभी सिमुलेशन ने इसे खारिज कर दिया. टीम ने बताया कि दोनों असामान्यताएँ संभवतः चूना-पत्थर के भीतर वायु-भरी खाली जगहें हैं, जो पूर्वी दीवार की बाहरी ग्रेनाइट परत के ठीक पीछे से शुरू होती हैं.
इन कक्षों का उद्देश्य क्या है?
ये कक्ष खुफू के पिरामिड में मिले कक्षों से बहुत अलग हैं खुफू में एक कक्ष विशाल है, दूसरा सुव्यवस्थित है. दोनों पिरामिडों में समानता यह है कि इन कक्षों का वास्तविक उद्देश्य अभी भी अज्ञात है. शोधकर्ताओं ने यह भी नोट किया कि इन ग्रेनाइट ब्लॉकों की संरचना पिरामिड के उत्तरी प्रवेश द्वार के ब्लॉकों जैसी ही है. 2019 में स्वतंत्र शोधकर्ता स्टेजाइन वैन डेन होवेन ने सुझाव दिया था कि यह दूसरे प्रवेश द्वार का संकेत हो सकता है. शोधकर्ता इन कक्षों की गहराई नहीं माप सके. वे आगे कॉस्मिक-रे म्यूओग्राफी तकनीक का उपयोग करने का प्रस्ताव रखते हैं.
गीजा का महान पिरामिड सबसे बड़ा है, इसलिए उसे सबसे ज्यादा अध्ययन मिला है. इसके विपरीत, तीन मुख्य पिरामिडों में सबसे छोटा मेनकौर लगभग एक सदी से अनदेखा रहा है. 1906 से 1910 के बीच अमेरिकी पुरातत्वविद जॉर्ज राइस्नर की खुदाई के बाद से इसका विस्तृत अध्ययन नहीं हुआ. फिर भी मेनकौर पिरामिड खास है, क्योंकि इसकी सतह पर चमकदार लाल ग्रेनाइट की अधूरी परत है, जो नीचे चूना-पत्थर की संरचना को ढकती है, यह बदलती वास्तुकला प्राथमिकताओं की ओर संकेत करता है.
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