गोरिल्ला से अनोखा प्रेम, शिकारियों से भिड़ी महिला, गवां बैठी जान

Dian Fossey: जानवरों और इंसानों के बीच का रिश्ता बहुत ही खूबसूरत होता है. ऐसे में आज हम बताएंगे डियान फॉसी के बारे में जिन्होंने अपना पूरा जीवन गोरिल्ला के संरक्षण में बीता दिया.  

By Sakshi Badal | December 21, 2025 1:37 PM

Dian Fossey: जानवरों और इंसानो का रिश्ता खास और बेहद अनमोल होता है, जहां एक तरफ दुनिया सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए रिश्ते निभाती है, वहीं जानवर हमें बिना किसी शर्त के प्यार करना और रिश्ते निभाना सिखाते हैं. इंसानों का जानवरों के प्रति लगाव तो आपने कई बार देखा होगा, लेकिन आज हम एक ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने अपना पूरा जीवन जंगली जीवों के संरक्षण में समर्पित कर दिया. 

कौन थीं डियान फॉसी?

डियान फॉसी (Dian Fossey) एक प्रसिद्ध अमेरिकी Primatologist (बंदरों और अन्य प्राइमेट जानवरों पर शोध करने वाला वैज्ञानिक) थीं, जिन्होंने अपना जीवन अफ्रीका के पहाड़ी गोरिल्ला पर अध्ययन और उनकी प्रजाति की बचाव में सर्मपित कर दिया. उनका जन्म सैन फ्रांसिस्को में साल 1932 में हुआ.  जब अफ्रीकी जंगलों में गोरिल्ला की कुछ प्रजातियां बची थी और वह विलुप्त होने की कगार पर थे, तब डायन ने उनके व्यवहार को समझा और उनके अस्तित्व की रक्षा के लिए दुनिया को जागरूक किया. 

अक्सर आम इंसान अगर गोरिल्ला के बारे में सोचे तो उनके मन में एक भयानक और डरावनी से तस्वीर बनती है और इसी डर को खत्म करने वाली पहली महिला थीं डायन फॉसी जिन्होंने अपना पूरा जीवन गोरिल्ला के बचाव में समर्पित किया. फॉसी के काम से पहले दुनिया के ज्यादातर लोग सोचते थे कि गोरिल्ला एक बहुत ही हिंसक और क्रूर जानवर होते हैं जो इंसानों को देखते ही मार डालते हैं. रवांडा के जंगलों में पहाड़ी गोरिल्ला के एक बड़े समूह के साथ फॉसी ने दुनिया के सामने यह साबित किया कि यह बड़े बंदरों वाली प्रजाति वास्तव में कोमल स्वभाव के होते हैं, जिनकी अपनी खास विशेषताएं है और कई मायनों में वे इंसानी जीव जैसे ही हैं.

डायना फॉसी गोरिल्ला के साथ समय बिताते हुए, (फोटो-एक्स)

 उस समय पहाड़ी गोरिल्ला की संख्या तेजी से घट रही थी, उनके जंगल खेतों से घिरे हुए थे और आसापास का इलाका युद्ध और अशांति से प्रभावित था. फॉसी ने अपनी जिंदगी का आखिरी समय भी गोरिल्ला के संरक्षण में बिताया लेकिन साल 1985 में अपनी ही झोपड़ी में उनकी हत्या कर दी गई. हालांकि उनकी मौत या हत्या कैसे हुई इस सच का पता आज भी दुनिया नहीं लगा पाई है. फॉसी की कहानी को दर्शाते हुए 1988 में गोरिल्लाज इन द मिस्ट (Gorillas In The Mist) नाम की एक फिल्म बनाई गई थी. 

इस फिल्म में बताया गया कि डियान फॉसी ने प्राइमेटोलॉजिस्ट बनने का कभी सोचा नहीं था. उन्हें  अफ्रीका के जंगलों और  प्रकृति से प्यार था और इसी से प्रेरित होकर उन्होंने साल 1963 में महाद्दीप की यात्रा की.

इस यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात प्रसिद्ध जीवाश्म विज्ञानी (Paleontologist) लुई लीकी से हुई. लुई उस समय मानव पूर्वजों के जीवाश्मों (Fossil) पर शोध कर रहे थे, लेकिन उन्हें यही समझ आ गया था कि मानव विकास को सही तरह से समझने के लिए हमारे सबसे करीबी रिश्तेदारों जैसे बंदरों के बारे में जानना होगा. 

लीकी जेन गुडॉल को चिंपैंजी पर अध्ययन की शुरुआत करने में मदद कर चुके थे. इसके बाद उनका उद्देश्य गोरिल्ला पर भी शोध करना था. 

डियान फॉसी रवांडा के जंगलों में, ( फोटो- एक्स )

जिस समय उन्होंने यह शोध शुरु किया तब गोरिल्ला की दो उप प्रजातियां में से एक पहाड़ी गोरिल्ला के बारे में बहुत कम जानकारी थी. अक्सर फिल्मों में उन्हें क्रूर और हिसंक जानवरों के रूप में दिखाया गया था और शिकारियों से पता चलता था कि अगर कोई भी इनके करीब जाता ते वे हमला करके उन्हें मार डालते थे. इस मुलाकात के तीन साल बाद, लीकी ने फॉसी को कांगो में गणराज्य में पर्वतीय गोरिल्ला पर शोध करने के लिए नियुक्त किया. लेकिन इस देश में चल रहे संघर्ष ने उन्हें वहां से जाने पर मजबूर कर दिया. 

रिसर्च टीम के साथ डियान, (फोटो- इंस्टाग्राम)

बाद में सितंबर 1967 में, फॉसी ने पड़ोसी देश रवांडा में एक छोटा सा रिसर्च सेंटर खोला , कारिसोके अध्ययन केंद्र. इसमें कुछ झोपड़ियां भी शामिल थीं. जिस जगह पर ये अध्ययन केंद्र स्थापित किया गया था वो पहाड़ी गोरिल्लाओं का घर था. गोरिल्लाओं की. इन गोरिल्लाओं की प्रजाति दुनिया में सिर्फ दो जगह पाई जाती है एक रवांडा और दूसरी आबादी यूगांडा में है. 1960 की शुरुआत में इन गोरिल्ला की संख्या 475 थी जो बाद में अवैध शिकार और जंगलों की कटाई के कारण घटकर 1980 आते तक बस 254 ही रह गई. 

कैसी हुई सफर की शुरुआत

फॉसी ने अपने एक इंटरव्यू में बताया कि शुरुआत में इन गोरिलाओं के साथ रहना काफी मुश्किल था लेकिन बाद में धीरे धीरे उनके करीब जाने के लिए उनके जैसे व्यवहार की नकल करने लग गई. फॉसी बड़े ही शांत और धैर्य स्वभाव की थी जिसका उन्हें बड़ा फायदा मिला. इसी कारण वो धीरे-धीरे गोरिलाओं के बीच में अपनी जगह बनाने लग गई और उनका विश्वास जीता. फॉसी उनके साथ रहते रहते सारी हरकतें उनके ही जैसी करती थी जैसे कि मुट्ठियों से अपनी छांती को पीटना और गोरिल्ला की तरह ही खुद को खुजलाना. 

गोरिल्ला बिल्लुक इंसानों की तरह होते हैं

इयान रेडवंड जिन्होंने तीन सालों तक फॉसी के साथ ही पहाड़ी गोरिलाओं पर शोध किया, उन्होंने कहा कि गोरिल्ला बिल्कुल हमारे जैसे होते हैं और वे खुद भी देख सकते हैं कि वो बिल्कुल इंसानों की तरह हैं. 1970 में नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका के कवर पेज पर फॉसी का आर्टिकल छपा जहां उन्होंने लिखा कि गोरिल्ला दुनिया के सबसे बदनाम जानवरों में से एक है. इसके बाद से दुनिया का ध्यान उन पहाड़ी जीवों पर गया जिससे शायद आधी से ज्यादा दुनिया अब भी अनजान थी. इसके बाद पहली बार गोरिल्ला को कैमरे पर कैद किया गया जिससे की लोग घर बैठे उन्हें देख सके और उनके बारे में जान सके. 

रवांडा के जंगलों में रिसर्च करती डियान, ( फोटो-इंस्टाग्राम, savinggorillas )

फॉसी ने जिन भी गोरिल्ला का अध्ययन किया उन सभी के नाम रखे गए थे. इसके बाद से दुनिया के सभी हिस्सों में गोरिल्ला के जीवन शैली पर चर्चा हुई और इसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया. 

बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, फॉसी थोड़ी अलग स्वभाव की थी जहां वो अकेले रहना बहुत ज्यादा पसंद करती थी. कभी वो बहुत ही शांत और मिलनसार स्वभाव की लगती थी तो कभी बहुत ही गुस्सैल और विद्रोह स्वभाव की होती थी. इनके साथ काम करने वाली स्टीवर्ट का कहना है कि उनसे दोस्ती करना थोड़ा मुश्किल था. हालांकि बाद में फॉसी गोरिल्लाओं के इतने नजदीक जा चुकी थी कोई भी मवेशी जो इस इलाके में घुसपैठ करने आते थे और शिकारियों से वो अकेले भीड़ती थी और जो भी गोरिल्ला को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते, उन्हें फॉसी लड़कर दूर भगा देती थी. 

बाद में शिकारियों को डराने के लिए फॉसी ने मुखौटे खरीदे और काला जादू का नाटक करने लगी जिससे की लोग डरकर उस रिसर्च सेंटर के आसपास भी न आए. हालांकि इतनी सारी कोशिशों के बाद भी फॉसी लगातार अपने मिशन में फेल होती नजर आ रही थी क्योंकि इस इलाके में गोरिल्ला की संख्या लगातार घट रही थी. अपने इस रवैये और शिकारियों से निपटने के तरीके के चलते फॉसी ने अपने कई दुश्मन भी बना लिए थे. 

फॉसी का फेवरेट गोरिल्ला डिजिट की हत्या

जितने भी गोरिल्ला के साथ फॉसी ने अपना समय बिताया उनमें से एक उनका पसंदीदा था जिसका नाम फॉसी ने डिजिट रखा था. फॉसी उसे बचपन से जानती थी और उससे उन्हें खास लगाव था. 12 साल की उम्र में डिजिट को शिकारियों ने मार डाला था. डिजिट की मौत के बाद, वह अपना ज्यादातर समय अपने केबिन में बिताने लगी और उन्होंने अपने दोस्तों से भी दूरी बना लिया. 

डियान के बाद लोगों ने तेजी से जीवों के संरक्षण पर काम करना शुरू किया, ( फोटो- यह तस्वीर एआई से बनवई गई है )

इस घटना के छह महीने बाद डिजिट के परिवार पर एक और हमला किया गया जिसमें दो और गोरिल्ला मारे गए. इन सारी हत्याओं के बाद फॉसी ने सरकार को इसका जिम्मेदार ठहराया. लंबे समय तक इस तरह की घटनाएं होती रही और फॉसी ने इसके खिलाफ शिकायतें भी की और वहां चाहती थी कि शिकारियों को जेल भी भेजा जाए. 

बाद में सरकार द्वारा चलाए गए माउंटेन गोरिल्ला प्रोजेक्ट(Mountain Gorilla Project) से दूरी बनाए रखी जिसकी शुरूआत 1979 में हुई थी. इस प्रोजेक्ट के तहत रवांडा के बचे हुए गोरिल्ला को बचाने के लिए कई संगठन साथ आए थे. इसका उद्देश्य स्थानीय लोगों के साथ मिलकर गोरिल्ला के प्रति लोगों के सोच को बदलना था. 26 दिसंबर 1985 को डियान फॉसी की हत्या कर दी गई थी. हालांकि आज तक उनकी हत्या एक अनसुलझा रहस्य बनी हुई है.

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