दिल्ली की सांसें हलक में अटकीं, चीन ने दिखाया ‘बीजिंग मॉडल’, बताए प्रदूषण घटाने के 6 बड़े फॉर्मूले, भारत के लिए बड़ा इशारा
Beijing Model Air Pollution: दिल्ली की जहरीली हवा के बीच चीन ने बीजिंग मॉडल का हवाला देकर भारत को प्रदूषण से निपटने के 6 बड़े तरीके बताए हैं. इस रिपोर्ट में जानिए कैसे सख्त कानून, इलेक्ट्रिक वाहन, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और लगातार अमल से बीजिंग ने साफ हवा की जंग जीती और भारत क्या सीख सकता है.
Beijing Model Air Pollution: दिल्ली की हवा एक बार फिर लोगों की सांसों पर भारी पड़ रही है. सर्दी आते ही स्मॉग की मोटी चादर, आंखों में जलन और सांस लेने में दिक्कत. यह तस्वीर नई नहीं है. सवाल वही पुराना है कि आखिर इससे निकला कैसे जाए? इसी बीच चीन ने अपने अनुभव सामने रखे हैं. बीजिंग, जो कभी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिना जाता था, आज साफ हवा की मिसाल बन रहा है. तो क्या बीजिंग का रास्ता दिल्ली के काम आ सकता है?
Beijing Model Air Pollution in Hindi: दिल्ली-NCR में हालात कितने खराब हैं?
दिल्ली-NCR में वायु प्रदूषण एक बार फिर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी AQI 400 से 500 के आसपास रिकॉर्ड किया गया. मंगलवार सुबह करीब 8 बजे दिल्ली का औसत AQI 378 रहा, जिसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने ‘बहुत खराब’ श्रेणी में रखा. एक दिन पहले, सोमवार शाम करीब 4 बजे AQI 427 तक पहुंच गया था, यानी हालात ‘गंभीर’ हो चुके थे. हालांकि मंगलवार को थोड़ी गिरावट दिखी, लेकिन शहर के कई हिस्सों में जहरीला स्मॉग छाया रहा. इंडिया गेट पर AQI 380 और सराय काले खां में करीब 359 दर्ज किया गया. कुल मिलाकर, दिल्ली की हवा अब भी लोगों के लिए खतरा बनी हुई है.
चीन के दूतावास ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म प्रदूषण पर किया पोस्ट
इन्हीं हालात के बीच भारत में चीन के दूतावास की प्रवक्ता यू जिंग (Yu Jing) ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट किया. उन्होंने कहा कि तेज शहरीकरण की वजह से चीन और भारत दोनों को वायु प्रदूषण की समस्या झेलनी पड़ी है. लेकिन पिछले दस साल में चीन ने लगातार मेहनत करके इस चुनौती पर काफी हद तक काबू पाया है. यू जिंग ने यह भी बताया कि वह एक सीरीज शुरू कर रही हैं, जिसमें बताया जाएगा कि चीन ने प्रदूषण को कैसे नियंत्रित किया. इस सीरीज के पहले हिस्से में उन्होंने बीजिंग के उदाहरण से वाहन प्रदूषण पर काबू पाने के तरीके साझा किए.
How did Beijing tackle air pollution? 🌏💨
— Yu Jing (@ChinaSpox_India) December 16, 2025
Step 1: Vehicle emissions control 🚗⚡
🔹 Adopt ultra-strict regulations like China 6NI (on par with Euro 6)
🔹 Phase-out retired old, high-emission vehicles
🔹 Curb car growth via license-plate lotteries and odd-even / weekday driving… pic.twitter.com/E0cFp4wgsV
बीजिंग ने क्या-क्या किया? 6 बड़े कदम
बीजिंग ने सबसे पहले गाड़ियों से निकलने वाले धुएं पर सख्ती की. इसके लिए चीन 6NI जैसे कड़े नियम लागू किए गए, जो यूरोप के यूरो-6 मानकों के बराबर हैं. पुराने और ज्यादा धुआं छोड़ने वाले वाहनों को सड़कों से हटाया गया. कारों की बढ़ती संख्या को रोकने के लिए लाइसेंस प्लेट लॉटरी, ऑड-ईवन और वीकडे ड्राइविंग जैसे नियम बनाए गए. लोगों को निजी गाड़ी छोड़ने के लिए बीजिंग में दुनिया के सबसे बड़े मेट्रो और बस नेटवर्क में से एक तैयार किया गया. इसके साथ ही इलेक्ट्रिक गाड़ियों को तेजी से बढ़ावा दिया गया और बीजिंग-तियानजिन-हेबेई इलाके के साथ मिलकर पूरे क्षेत्र में प्रदूषण कम करने की योजना पर काम हुआ. चीन का साफ कहना है कि साफ हवा एक झटके में नहीं मिलती, लेकिन लगातार कोशिश से यह मुमकिन है. (China 6 formula For Clean Air India in Hindi)
जब बीजिंग ने माना कि हालात बिगड़ चुके हैं
बीजिंग में बदलाव की शुरुआत 2008 ओलंपिक से पहले हुई. तब स्थानीय सरकार ने आपात कदम उठाए, निगरानी बढ़ाई और हफ्तेवार एयर क्वालिटी रिपोर्ट जारी करनी शुरू की. इससे लोगों में जागरूकता आई और सरकार पर दबाव बना कि केवल अस्थायी उपाय नहीं, बल्कि स्थायी सुधार किए जाएं. 2013 में सरकार ने आधिकारिक तौर पर माना कि प्रदूषण ‘गंभीर’ स्तर पर पहुंच चुका है. यही वह मोड़ था, जिसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ा एक्शन प्लान लाया गया और PM2.5 घटाने के लिए कानूनी लक्ष्य तय किए गए.
2013-2017 का एक्शन प्लान
2013 से 2017 के बीच लागू किए गए एक्शन प्लान में परिवहन, उद्योग और कोयले पर खास ध्यान दिया गया. पब्लिक ट्रांसपोर्ट को इलेक्ट्रिक बनाने की शुरुआत हुई. शेनझेन दुनिया का पहला शहर बना, जहां पूरी बस सेवा इलेक्ट्रिक कर दी गई. निजी वाहनों के लिए भी सख्त नियम आए. पुरानी गाड़ियों को हटाया गया, डीजल ट्रकों पर कड़ी पाबंदियां लगीं और उन्हें घनी आबादी वाले इलाकों से दूर रखा गया. उद्योगों में पुराने और ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले प्लांट बंद किए गए या सुधारे गए. कोयले की जगह गैस और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया गया. साथ ही धूल नियंत्रण और हरियाली बढ़ाने पर भी काम हुआ.
बीजिंग ने साफ हवा के लिए भारी निवेश किया. 2013 में जहां करीब 45 करोड़ डॉलर खर्च हुए, वहीं 2017 तक यह खर्च बढ़कर 2.5 अरब डॉलर से ज्यादा हो गया. इसका असर साफ दिखा कि भारी प्रदूषण वाले दिनों की संख्या तेजी से घटी और PM2.5 का स्तर कम हुआ. इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट के विश्लेषक चिम ली के मुताबिक, चीन ने सख्त नियमों के साथ पब्लिक ट्रांसपोर्ट, इलेक्ट्रिक गाड़ियां और साफ बिजली तीनों पर एक साथ काम किया. जो उद्योग नियम नहीं मान पाए, उन्हें शहर से बाहर किया गया या बंद कर दिया गया.
‘वॉर ऑन पॉल्यूशन’ से क्या सीख मिलती है?
एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार, 2014 से 2022 के बीच चीन के शहरों में PM2.5 सबसे तेजी से घटा. आज करीब तीन-चौथाई चीनी शहर राष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरते हैं. विश्लेषक चेंगचेंग किउ का कहना है कि यह सब कोयला संयंत्रों में सुधार, सख्त औद्योगिक नियम और पूरे इलाके में मिलकर काम करने की वजह से संभव हुआ. हालांकि एक नई समस्या भी सामने आई है. जैसे-जैसे पूर्वी चीन साफ हुआ, कुछ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग दक्षिण और पश्चिमी हिस्सों में चले गए, जिससे वहां प्रदूषण बढ़ने लगा. यह बताता है कि केवल एक इलाके में नहीं, बल्कि पूरे देश में सख्त नियम जरूरी हैं.
भारत के लिए संदेश क्या है?
चीन का दावा है कि 2013 के बाद से बीजिंग में PM2.5 का स्तर 60 फीसदी से ज्यादा घटा है. वहीं दिल्ली में हर सर्दी के साथ प्रदूषण चरम पर पहुंच जाता है. विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन का मॉडल सख्त कानून, कड़ा अमल और क्षेत्रीय सहयोग का नतीजा है और इससे भारत के लिए भी सीख देने वाला है. हालांकि कुछ लोग इसे चीन की आत्म-प्रशंसा भी मानते हैं. फिलहाल दिल्ली में GRAP-4 लागू है, लेकिन हालात पूरी तरह काबू में नहीं हैं. असली सवाल यही है कि क्या भारत भी बीजिंग की तरह लंबी और लगातार लड़ाई लड़ने को तैयार है, या फिर हर साल स्मॉग आने के बाद बस तात्कालिक उपायों तक ही सीमित रहेगा?
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