संराष्ट्र मानवाधिकार आयोग में उठेगा लंका युद्ध अपराध का मुद्दा
जिनीवा : लिट्टे के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के दौरान कथित युद्ध अपराध का मुद्दा कल एक बार फिर से यहां संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी ) में उठेगा जहां अमेरिका इसकी अंतरराष्ट्रीय जांच पर जोर देने के अपने पिछले रुख के विपरीत घरेलू स्तर की जांच के लिए एक प्रस्ताव का समर्थन करेगा. इस प्रस्ताव […]
जिनीवा : लिट्टे के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के दौरान कथित युद्ध अपराध का मुद्दा कल एक बार फिर से यहां संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (यूएनएचआरसी ) में उठेगा जहां अमेरिका इसकी अंतरराष्ट्रीय जांच पर जोर देने के अपने पिछले रुख के विपरीत घरेलू स्तर की जांच के लिए एक प्रस्ताव का समर्थन करेगा. इस प्रस्ताव के मसौदे को अमेरिका और ‘ह्यूमन राइट्स इन श्रीलंका’ जैसे कई देशों के अन्य महत्वपूर्ण समूहों ने प्रयोजित किया है जो ओएचसीएचआर ( आफिस आफ दी हाई कमीशनर फोर दी ह्यूमन राइट्स ) रिपोर्ट पर आधारित है और जिसमें सुलह समझौते तथा जवाबदेही के सरकारी प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ( यूएनएचआरसी ) के अध्यक्ष राजदूत जोआचिम रुकेर ने प्रेट्र को बताया, ‘‘उच्चायुक्त (मानवाधिकार मामलों के उच्चायुक्त जायद राद अल हुसैन )श्रीलंका में युद्ध अपराधों के आरोपों पर अपने कार्यालय की रिपोर्ट परिषद में पेश करेंगे.” मैत्रीपाला सिरिसेना की सरकार के प्रति सद्भावना का परिचय देते हुए यूएनएचआरसी ने इस माह तक रिपोर्ट को पेश करने की बात टाल दी थी.
सिरिसेना ने महिंदा राजपक्षे से इस वर्ष जनवरी में राष्ट्रपति पद की कमान संभाली है. राजपक्षे प्रशासन देश की संप्रभुत्ता में हस्तक्षेप करार देते हुए इस जांच का विरोध कर रहा था. सिरिसेना सरकार ने लेकिन इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करने के साथ ही तमिल अल्पसंख्यकों की कुछ चिंताओं के समाधान का प्रयास किया. ओएचसीएचआर की रिपोर्ट शुक्रवार की रात को श्रीलंका सरकार को सौंपी गयी थी जिस पर अपना जवाब देने के लिए उसके पास पांच दिन का समय है. तीन सप्ताह तक चलने वाले यूएनएचआरसी के सत्र के बारे में रुकेर ने कहा, ‘‘एक बार फिर यह सत्र काफी रोचक होगा. ”
रुकेर ने कहा, ‘‘ हम विशेष रुप से कांगो, श्रीलंका , यूके्रन और सीरिया के बारे में फिर से बात करेंगे. ” वरिष्ठ जर्मन राजनयिक रुकेर को इस वर्ष जनवरी में ही यूएनएचआरसी अध्यक्ष के रुप में नियुक्त किया गया था. भारत के लिए इस बैठक का इसलिए महत्व है कि इसमें श्रीलंका के मुद्दे पर चर्चा होगी.
भारत ने वर्ष 2012 और 2013 में श्रीलंका पर अमेरिका प्रायोजित प्रस्तावों का समर्थन किया था तो वहीं वर्ष 2014 में वह यह कहते हुए मत विभाजन से अनुपस्थित रहा था कि ‘‘भारत का यह मजबूत विश्वास है कि राष्ट्रीय संप्रभुत्ता और संस्थानों को प्रभावित करने वाली हस्तक्षेप की अवधारणा को अपनाना उल्टा पडेगा.
” भारत के लिए यह मसला थोडा पेचीदा रहेगा क्योंकि द्रमुक प्रमुख एम करुणानिधि ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अमेरिका प्रायोजित प्रस्ताव का समर्थन नहीं करने को कहा है जिसमें समझा जाता है कि युद्ध अपराधों पर घरेलू जांच को हल्का करने का प्रयास किया गया है. मानवाधिकार समूह का दावा है कि लिट्टे के साथ तीन दशक पुराने युद्ध के अंतिम महीनों में 2009 में श्रीलंकाई सेना ने 40 हजार नागरिकों को मार डाला था. भाषा नरेश
