गृह मंत्रालय देशद्रोह कानून के प्रावधान हटाने के नाम पर मनमाने कदम उठाने जा रहा है : ममता बनर्जी

ममता बनर्जी ने अपील की देश के न्यायविद और लोक कार्यकर्ता इन कानूनों के मसौदे को आपराधिक न्याय प्रणाली के क्षेत्र में लोकतांत्रिक योगदान के लिए गंभीरता से पढ़ें.उन्होंने पोस्ट में लिखा कि संसद में उनके सहयोगी स्थायी समिति के समक्ष इन मुद्दों को उठाएंगे.

By Agency | October 11, 2023 7:04 PM

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Chief Minister Mamata Banerjee) ने बुधवार को दावा किया कि देशद्रोह कानून के प्रावधानों को हटाने के नाम पर केंद्रीय गृह मंत्रालय प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता में और गंभीर एवं मनमाने कदम उठाने जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि भारतीय दंड संहिता, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के बदले मंत्रालय द्वारा चुपके से बहुत ही सख्त और नागरिक विरोधी क्रूर प्रावधानों को लागू करने की गंभीर कोशिश की जा रही है.

मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर किया पोस्ट

मुख्यमंत्री ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर पोस्ट किया, पहले देशद्रोह का कानून था, अब उन प्रावधानों को हटाने के नाम पर वे अधिक गंभीर और मनमाने प्रावधान ला रहे हैं जिनका प्रस्ताव भारतीय न्याय संहिता में किया गया है, जो नागरिकों को बहुत ही गंभीर तरीके से प्रभावित कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि वह भारतीय दंड संहिता, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के स्थान पर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा लाए जा रहे कानून का मसौदा पढ़ रही हैं. ममता बनर्जी ने कहा कि वह यह जानकर स्तब्ध हूं कि इस प्रक्रिया के जरिये चुपके से बहुत ही कठोर और नागरिक विरोधी क्रूर प्रावधानों को लागू करने की गंभीर कोशिश की जा रही है.

संसद में स्थायी समिति के समक्ष इन मुद्दों को उठाया जाएगा

उन्होंने कहा कि उपनिवेशवाद की छाया को मौजूदा कानून के स्वरूप के साथ-साथ भाव से भी मुक्त किया जाना चाहिए. ममता बनर्जी ने अपील की देश के न्यायविद और लोक कार्यकर्ता इन कानूनों के मसौदे को आपराधिक न्याय प्रणाली के क्षेत्र में लोकतांत्रिक योगदान के लिए गंभीरता से पढ़ें. उन्होंने पोस्ट में लिखा कि संसद में उनके सहयोगी स्थायी समिति के समक्ष इन मुद्दों को उठाएंगे. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ने कहा, अनुभवों के आधार पर कानूनों में सुधार की जरूरत है लेकिन उपनिवेशवाद की निरंकुशता को पीछे के दरवाजे से दिल्ली में प्रवेश नहीं दिया जाना चाहिए.

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