2002 के वोटर लिस्ट में नाम, फिर भी वृद्धा को नोटिस
ठीक से चलने-फिरने में असमर्थ और उम्रजनित कारणों से शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद एक वृद्धा को एसआइआर सुनवाई में उपस्थित होने के लिए मजबूर होना पड़ा. बीएलओ को स्पष्ट रूप से बताया गया था कि वह स्वयं आने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन जवाब मिला कि यदि वह सुनवाई में नहीं आयीं, तो काम नहीं होगा.
हुगली
. ठीक से चलने-फिरने में असमर्थ और उम्रजनित कारणों से शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद एक वृद्धा को एसआइआर सुनवाई में उपस्थित होने के लिए मजबूर होना पड़ा. बीएलओ को स्पष्ट रूप से बताया गया था कि वह स्वयं आने की स्थिति में नहीं हैं, लेकिन जवाब मिला कि यदि वह सुनवाई में नहीं आयीं, तो काम नहीं होगा. अंततः असहाय स्थिति में वृद्धा को सुनवाई के लिए जाना पड़ा.यह मामला तारकेश्वर विधानसभा क्षेत्र के मोजपुर गांव की निवासी मालती पंडित का है. वह पहले एक सरकारी स्कूल में ग्रुप डी पद पर कार्यरत थीं। उनका नाम वर्ष 2002 की मतदाता सूची में भी दर्ज है. 2002 की मतदाता सूची के अनुसार उनका विधानसभा क्षेत्र तारकेश्वर, भाग संख्या 104 और क्रमांक 187 है. इसके बावजूद उन्हें मतदाता सुनवाई का नोटिस भेजा गया.गौरतलब है कि चुनाव आयोग की ओर से स्पष्ट दिशा निर्देश जारी किये गये हैं कि जिन मतदाताओं का नाम 2002 की मतदाता सूची में दर्ज है और यदि तकनीकी कारणों से बाद में नाम कट गया हो, तो ऐसे मतदाताओं को नोटिस मिलने के बावजूद सुनवाई में उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है. ऐसे मामलों का निबटारा दस्तावेजों के आधार पर किया जाना है. इसके बावजूद 2002 की मतदाता सूची में नाम होने के बाद भी वृद्धा मालती पंडित को सुनवाई के लिए बुलाये जाने से चुनाव आयोग की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. यह प्रशासनिक समन्वय की कमी है या फिर चुनाव आयोग की ओर से हुई कोई चूक, इसे लेकर आम लोगों के बीच चर्चा तेज हो गयी है.
इस पूरे मामले पर संबंधित बीएलओ अनिर्बान घोष ने कहा कि उन्हें इस तरह के किसी स्पष्ट दिशा निर्देश की जानकारी नहीं है. उनका कहना है कि इस विषय में चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारी ही स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
