आसनसोल की हृदयस्थली में लगी शहीद-ए-आजम की प्रतिमा से खिलवाड़, खांडा लगा उन्हें साबित किया गया सिख

आसनसोल : देश में धर्म की राजनीति तथा राजनीति में धर्म का उपयोग खुलकर हो रहा है. इस रेस में आस्था तथा वैचारिक सभी प्रस्थापनाओं की धज्जियां उड़ायी जा रही है. इस कड़ी में पश्चिम बर्दवान जिला मुख्यालय पूरे देश में सबसे आगे निकल गया है. गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी, बर्नपुर ने शहर की हृदयस्थली में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 27, 2018 2:37 AM
आसनसोल : देश में धर्म की राजनीति तथा राजनीति में धर्म का उपयोग खुलकर हो रहा है. इस रेस में आस्था तथा वैचारिक सभी प्रस्थापनाओं की धज्जियां उड़ायी जा रही है. इस कड़ी में पश्चिम बर्दवान जिला मुख्यालय पूरे देश में सबसे आगे निकल गया है. गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी, बर्नपुर ने शहर की हृदयस्थली में लगी शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा से खांड़ा जोड़ कर उन्हें सिख ही साबित कर दिया.
जमीनी सच्चाई यह है कि भगत सिंह का पूरा परिवार आर्य समाजी था और फांसी पर चढ़ने तक वे खुद को नास्तिक कहते रहे. उन्होंने शहादत से पहले सर्वाधिक चर्चित लेख – “ मैं नास्तिक क्यों हूं” लिखा था जो लाहौर से प्रकाशित पत्रिका ‘पीपुल’ में छपी थी. प्रतिमा आसनसोल नगर निगम प्रशासन ने लगाई है तथा गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी उसका देखभाल करती है.
शहीद-ए-आजम को धार्मिक रंग देने की कोशिश का शहर के बुद्धिजीवियों ने कड़ी निंदा की है. उन्होंने इसे शहीदों का अपमान बताते हुए मेयर जितेन्द्र तिवारी से इस दिशा में तत्काल हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है.
उनके पिता थे आर्य समाजी
“मैं नास्तिक क्यों हूं” लेख में भगत सिंह ने लिखा हैं- “ मैंने तो ईश्वर पर विश्वास करना तब छोड़ दिया था, जब मैं एक अप्रसिद्ध नौजवान था. मेरे बाबा, जिनके प्रभाव में मैं बड़ा हुआ, एक रूढ़िवादी आर्य समाजी हैं. एक आर्य समाजी और कुछ भी हो, नास्तिक नहीं होता. अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद मैंने डीएवी स्कूल, लाहौर में प्रवेश लिया और पूरे एक साल उसके छात्रावास में रहा.
वहां सुबह और शाम की प्रार्थना के अतिरिक्त मैं घंटों गायत्री मंत्र जपा करता था. उन दिनों मैं अपने पिता के साथ रहना शुरू किया. जहां तक धार्मिक रूढ़िवादिता का प्रश्न है, वह एक उदारवादी व्यक्ति हैं. उन्हीं की शिक्षा से मुझे स्वतंत्रता के ध्येय के लिए अपने जीवन को समर्पित करने की प्रेरणा मिली. किंतु वे नास्तिक नहीं है. वे मुझे प्रतिदिन पूजा- प्रार्थना के लिए प्रोत्साहित करते रहते थे. इस प्रकार से मेरा पालन-पोषण हुआ.”
नास्तिक होने को कभी अंहकार नहीं माना
“मैं नास्तिक क्यों हूं” लेख में भगत सिंह ने लिखा हैं- “ मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा. जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बतायी तो उसने कहा, “अपने अंतिम दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे.” मैंने कहा, “नहीं, प्यारे दोस्त, ऐसा नहीं होगा. मैं इसे अपने लिए अपमानजनक और भ्रष्ट होने की बात समझता हूं. स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूंगा.” पाठकों और दोस्तों, क्या यह अहंकार है? अगर है तो मैं स्वीकार करता हूं.
सिख सैन्य, आस्था का प्रतीक है खांडा
यह सिख आस्था का प्रतीक है. यह तीन प्रतीकों का समन्वय है. केंद्र में दोधारी तलवार (खांड़ा) है. एक चक्कर है तथा दो एकधारी तलवार या कृपाण हैं. बेस में दोनों कृपाण एक दूसरे को काटते हैं. यह सिख धर्म का सैन्य प्रतीक है. यह निशान साहिब का भी भाग है. खांड़ा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के खड़ग शब्द से हुई है.
ऋग्वेद में भी खड़ग का जिक्र किया गया है. राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने इससे मिलता-जुलता हथियार विकसित किया था. बाद में कई राजपूत राजाओं ने युद्ध में इसका उपयोग किया. अकाली निहंग के कई सिख राजाओं ने भी इसका उपयोग किया. अकाली दीप सिंह ने अपनी शहादत से पहले अंतिम युद्ध में इसका उपयोग किया था. उसे अभी भी अकाल तख्त साहिब में सुरक्षित रखा गया है.
अकाली फूला सिंह ने भी इसका उपयोग किया था. बाद में सिख खालसा आर्मी के अधिकारियों तथा नेताओं ने इसका उपयोग किया. सिख साम्राज्य में सिख सरदारों ने भी इसका उपयोग किया. सिख मार्शल आर्ट गदका में भी इसका उपयोग किया गया है.
सिखों की बड़ी आबादी होने का संकेत : कमेटी सचिव
गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी, बर्नपुर के सचिव सुरेंद्र सिंह ने कहा कि भगत सिंह मोड पर भगत सिंह की प्रतिमा पर लगाया गया खांड़ा आसनसोल नगर निगम की अनुमति और सहयोग से लगाया गया है. खंडा लगाये जाने का मतलब आसनसोल शहर एवं इससे सटे कुल्टी, नियामतपुर, बराकर के लोगों और यहां से गुजरने वालों को यह दर्शाना है कि यहां सिख संगत और समुदाय के बहुत से लोग रहते हैं.
उन्होंने कहा कि इसे भगत सिंह के साथ न जोड़ा जाये. खंडा हमारा धार्मिक स्तंभ है. सिखों की धार्मिक मान्यता के अनुसार खांड़ा का दर्जा भगत सिंह से कहीं अधिक ऊंचा है. उन्होंने कहा कि वहां से आने जाने वाले लोग खांड़ा देख यह समझें कि इस इलाके में काफी संख्या में सिख रहते हैँ.

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