अपनों से तिरस्कृत बुजुर्गों को मिला आश्रय, डिमडिमा निवासी साजू 13 पुरुष-महिलाओं का कर रहे पोषण

वीरपाड़ा : दुर्गा पूजा मातृशक्ति की आराधना है. इस पूजा को नयी और पुरानी पीढ़ी के लोग बड़े उत्साह व उमंग के साथ मना रहे हैं. लेकिन जिस मातृशक्ति की पूजा है उन्हीं माताओं को उनकी संतान जब बोझ मानने लगे तो मातृशक्ति का अपमान ही कहा जायेगा. आधुनिक युग के डिजिटल युग में हम […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 16, 2018 3:49 AM
वीरपाड़ा : दुर्गा पूजा मातृशक्ति की आराधना है. इस पूजा को नयी और पुरानी पीढ़ी के लोग बड़े उत्साह व उमंग के साथ मना रहे हैं. लेकिन जिस मातृशक्ति की पूजा है उन्हीं माताओं को उनकी संतान जब बोझ मानने लगे तो मातृशक्ति का अपमान ही कहा जायेगा. आधुनिक युग के डिजिटल युग में हम अपने ही माता-पिता की उपेक्षा कर रहे हैं.
उन्हें बोझ मानते हुए उन्हें उनके घर से बेदखल तक कर देते हैं. ऐसे ही महिला-पुरुष वृद्धाश्रम का सहारा लेते हैं. डुवार्स क्षेत्र के डिमडिमा इलाके के निवासी और समाजसेवी साजू तालुकदार ऐसे ही तिरस्कृत और उपेक्षित बुजुर्ग 13 महिला-पुरुषों को अपने घर में शरण दे रखी है. हालांकि वह इसे वृद्धाश्रम कहना नहीं चाहते. उनका कहना है कि ये सभी बुजुर्ग उनके परिवार के ही अभिन्न अंग हैं. इनकी सेवा कर मुझे वही सुख मिलता है, जो कभी अपने माता-पिता की सेवा करने में मिलता था.
साजू तालुकदार के यहां आश्रय लेने वाली अलीपुरद्वार महकमा की खोल्टा निवासी उषारानी घोष ने बताया कि उनके दो बेटे हैं. उनके दिन बेटों के साथ सुख से कट रहा था. लेकिन जब भी उन्होंने बेटों की शादी की तो उनका नजरिया उनके प्रति बदल गया. अब बेटे उनका दायित्व देने के लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए आज वह अपने ही घर से बेघर हैं. कुछ दिनों तक इधर-उधर भटकने के बाद एक एनजीओ के माध्यम से वे साजू तालुकदार के यहां पहुंची. अब यही घर उनका घर है.
कटिहार (बिहार) की उमा देवी के दो बेटे और एक बेटी है. उसके बावजूद उनकी संतान उन्हें दो जून की रोटी दे पाने में असमर्थ हैं. इसलिए वे भी आज अपने घर से बेघर हो चुकी हैं. वहीं असम की बारुनी चौधरी मानसिक रोगी हैं. सिलीगुड़ी के एक नर्सिंग होम में इलाज के बाद स्वस्थ हो रही हैं. सोमाई खड़िया को अपने घर और ठिकाने की याद नहीं है. वीरपाड़ा स्टेट जनरल अस्पताल में परिवार के लोगों ने भर्ती कराया था. उसके बाद से उनकी सूध लेने वाला कोई नहीं है. वे भी साजू तालुकदार के यहां रह रही हैं.
साजू तालुकदार ने बताया कि वह वृद्धाश्रम शब्द के खिलाफ हैं. वह तो माता-पिता को वृद्धाश्रम में रखे जाने के बिल्कुल खिलाफ हैं. यहां रहने वाले सभी बुजुर्ग पुरुष-महिला को वे अपने परिवार का ही सदस्य मानते हैं. उन्होंने वर्तमान दौर में बुजुर्ग माता-पिता के तिरस्कार के मसले की चर्चा करते हुए कहा कि हमारा समाज आधुनिक और डिजिटल बन रहा है, लेकिन हमारी संतान मानवीय संवेदना के मामले में पिछड़ रही है. बचपन में जिन हाथों में उन्हें उंगली पकड़कर चलना सिखाया, आज वही हाथ उन्हें संभालने से इंकार कर रहे हैं. ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि जो घट रहा है, उसकी पुनरावृत्ति उनके साथ भी हो सकती है.

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