Seraikela Kharsawan News : सरकारी सहयोग से संवर सकता है सिल्क उद्योग, सृजित होंगे रोजगार
सरायकेला-खरसावां. हथकरघा से जुड़े सामान की मांग बढ़ी, उत्पादन शुरू करने की मांग
खरसावां. सरायकेला-खरसावां जिले के विभिन्न क्षेत्रों में तैयार किये जा रहे हथकरघा उत्पादों की मांग अब देश ही नहीं, विदेशों में भी तेजी से बढ़ रही है. खरसावां, चांडिल और कुचाई में तैयार किये जा रहे तसर के अंगवस्त्र और रेशमी वस्त्रों की खासी मांग है. खादी बोर्ड के आमदा (खरसावां) स्थित खादी पार्क, कुचाई और चांडिल के उत्पादन केंद्रों में तीन-तीन लूम पर रेशमी कपड़ों की बुनाई की जा रही है. वहीं, कुचाई, आमदा और चांडिल के इन केंद्रों में लगभग 22-25 महिलाएं तसर सूत की कताई में जुटी हैं. हथकरघा वस्त्र सदैव से लोगों की पसंद रहे हैं. ये जितने आरामदायक होते हैं, उतने ही आकर्षक भी. इनका लुक पारंपरिक होते हुए भी विशिष्टता लिए होता है, जो इन्हें आम परिधानों से अलग बनाता है. यही कारण है कि हथकरघा उत्पादों को तैयार करने वालों की सराहना भी बढ़ रही है और हैंडलूम परिधानों की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है.
बंद है साड़ी का उत्पादन, फिर शुरू करने की उठी मांग:
हस्तशिल्प से जुड़े लोगों का मामना है कि सरकार इसके लिए विशेष पैकेज दे, तो बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के साथ क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी. तसर की साड़ी बुनने का कार्य तीन-चारों वर्षों से बंद पड़ा है. यहां तैयार होने वाली साड़ी की काफी मांग थी. इसे फिर से चालू कर महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जा सकता है. मालूम हो कि पूरे राज्य में सर्वाधिक तसर कोसा का उत्पादन कोल्हान में होता है. इस वर्ष करीब 700 मीट्रिक टन तसर कोसा का उत्पादन होने की संभावना है. ऐसे में साड़ी की बुनाई शुरू कर महिलाओं को फिर से रोजगार से जोड़ा जा सकता है.पुरानी हो गयी है रीलिंग मशीन, बदलने की मांग :
खादी बोर्ड के केंद्रों में सूत कताई के लिए लगी रीलिंग मशीन काफी पुराने हो गये हैं. अब भी महिलाएं इन्हीं पुरानी मशीनों में पैडल चलाकर तसर कोसा से सूत कताई करती हैं. रीलिंग स्पिनींग से जुड़ी महिलाएं सूत कताई के लिए सोलर संचालित लेटेस्ट मशीन स्थापित करने की मांग की कर रही है. बैटरी से संचालित नयी मशीन लगने से निश्चित रूप से कार्य में प्रगति आ सकती है.राजनगर खादी पार्क में भी कपड़ों की बुनाई शुरू कराने की मांग:
खादी बोर्ड के राजनगर स्थित खादी पार्क में फिलहाल गतिविधि बंद है. स्थानीय लोगों ने राजनगर खादी पार्क में भी महिलाओं को प्रशिक्षण देकर सूत कताई से लेकर कपड़ों की बुनाई शुरू कराने की मांग की है.क्यों मनाया जाता है हथकरघा दिवस :
सात अगस्त को ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन भारत के इतिहास में विशेष महत्व है. हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने और विदेशी वस्तुओं (जिनमें वस्त्र भी शामिल थे) के बहिष्कार के लिए स्वेदशी आंदोलन की शुरुआत 7 अगस्त 1905 में हुई थी. इसी आंदोलन के चलते हथकरघा तत्कालीन भारत के लगभग हर घर में खादी बनाने की शुरुआत हुई थी.– हथकरघा से रोजगार मिल रहा है. हालांकि यहां बड़ी राशि नहीं मिलती है, परंतु परिवार चलाने में निश्चित रूप से कुछ सहयोग हो जाता है. किसी पर निर्भर रहना नहीं पड़ता है.
-सवरी देवी,
सूत कताई से जुड़ी महिला, आमदा, खरसावां– कुचाई-खरसावां की पहचान रेशमी साड़ियों से होती है. परंतु दो-तीन वर्षों से साड़ी बनाने का कार्य बंद पड़ा है. सिल्क पार्क का निर्माण किया जाये.-हेमवती पात्रो
, हस्तकरघा से जुड़ी महिला, आमदा, खरसावां– आमदा स्थित केंद्र से सूत कताई व बुनाई कार्य सीखी हूं. अब यहीं पर कपड़ों की बुनाई का कार्य कर रही हूं. इससे ठीक-ठाक रोजगार हो जाता है. इसी काम से आत्मनिर्भर बनी हूं.
-पूनम तांती
, हस्तकरघा से जुड़ी महिला, आमदा– आमदा, कुचाई व चांडिल के उत्पादन केंद्रों में तीन-तीन लूम लगा कर रेशमी अंगवस्त्र व रेशमी कपड़ों की बुनाई हो रही है. साथ ही तसर कोसा से सूत कताई व बुनाई का कार्य भी किया जा रहा है.-सुनील कुमार
, प्रभारी खादी पार्कडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
