कुड़मी को आदिवासियों की सूची में शामिल नहीं होने देंगे, रांची में बोले ट्राइबल Gen Z
Tribal Protest At Raj Bhawan: झारखंड में कुड़मी आंदोलन के जवाब में आदिवासियों ने भी आंदोलन तेज कर दिया है. आदिवासी समाज और Gen Z ने राजभवन के सामने धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है. इनका कहना है कि कुड़मी समाज के लोगों को देश में ओबीसी का दर्जा प्राप्त है. ये लोग कभी आदिवासी नहीं थे. इन्हें आदिवासी नहीं बनने देंगे.
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Tribal Protest At Raj Bhawan: झारखंड में एक ओर कुड़मी समाज के लोग खुद को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने की मांग के समर्थन में पूरे झारखंड में रेल सेवा बाधित कर रखी है. वहीं, आदिवासी समाज के लोगों ने राजधानी रांची में राजभवन के सामने कुड़मियों के आंदोलन के खिलाफ धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया है. आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि कुड़मी को आदिवासियों की सूची में शामिल नहीं होने देंगे. आदिवासी ही आदिवासी है. कुड़मी आदिवासी नहीं हैं.
जबरन कोई आदिवासी नहीं बन सकता – हर्षिता मुंडा
हर्षिता मुंडा ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) से कहा कि अगर संविधान ने उन्हें रेल रोकने का अधिकार दिया है, तो हमें भी धरना-प्रदर्शन और विरोध करने का अधिकार दिया है. अपनी बातों को केंद्र सरकार तक पहुंचाने के लिए हम यहां बैठे हैं. जबरन कोई आदिवासी नहीं बन सकता है. उन्होंने कहा कि वे आज भी हमारे भाई हैं. हमारे पड़ोसी हैं. हम उनको भाई मानते हैं, लेकिन आदिवासियों का आरक्षण खाने की कोशिश करेंगे, तो उनको हम अपना आरक्षण खाने नहीं देंगे. अपनी संपत्ति उनके नाम नहीं कर देंगे.
कुड़मी रेल रोक रहे हैं, हम राजभवन पर दे रहे धरना- हर्षिता
हर्षिता ने कहा कि कुड़मी लोग रेल रोक रहे हैं. इसके विरोध में हम राजभवन के समक्ष धरना दे रहे हैं. कुड़मियों को किसी भी हाल में आदिवासी नहीं बनने देना है. अगर वे आदिवासी बन गये, तो हमारा आरक्षण, हमारी जमीन, हमारी नौकरी और मुखिया से मुख्यमंत्री तक के पद का हमारा आरक्षण खत्म हो जायेगा. उन्होंने कहा कि ये लोग खुद को कभी क्षत्रिय का वंशज कहते हैं. अब आदिवासी बनना चाहते हैं.
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के मुंडा ने कहा- देश के कुड़मी ओबीसी, तो झारखंड के कुड़मी आदिवासी कैसे?
समाजसेवी के मुंडा कहती हैं कि कुड़मी समुदाय पूरे देश में है. ओबीसी की श्रेणी में हैं. फिर झारखंड के कुड़मी आदिवासी क्यों बनना चाहते हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे. ये उनकी नाजायज मांग है. के मुंडा ने कहा कि आजादी के पहले कौन क्या था, हमें नहीं मालूम. आजादी के बाद जब संविधान का निर्माण हुआ, तब इनके प्रतिनिधियों ने कभी नहीं कहा कि वे आदिवासी हैं. आज वे कह रहे हैं कि उनकी यह मांग 70 साल पुरानी है. यह सच नहीं है. उनका आंदोलन सिर्फ 10 साल पुरानी है.
‘फिर उलगुलान होगा, इस बार आर-पार की लड़ाई होगी’
उन्होंने कहा कि झारखंड का आदिवासी समाज इन्हें अपने समाज में कभी बर्दाश्त नहीं करेगा. वर्ष 2022 में हमने मोरहाबादी मैदान में रैली की थी. अगर मामला शांत नहीं हुआ, तो फिर नया उलगुलान होगा और इस बार आर-पार की लड़ाई होगी. कुड़मियों के आंदोलन के खिलाफ आदिवासियों के विरोध-प्रदर्शन को देखते हुए राजभवन और उसके आसपास के इलाकों में सुरक्षा कड़ी कर दी गयी है. आदिवासी समाज के लोग कुड़मियों के आदिवासी का दर्जा मांगने के विरोध में जमकर नारेबाजी कर रहे हैं.
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