AK Roy Jayanti: सादगी और संघर्ष की एक अनोखी मिसाल हैं कॉमरेड एके राय

AK Roy Birth Anniversary: झारखंड आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले मजदूर नेता कॉमरेड एके राय की 15 जून को जयंती है. एके राय एक प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक थे. इनकी सादगी और विचारधारा की वजह से इन्हें राजनीतिक संत का दर्जा मिला हुआ है. एके राय को मजदूरों का साथ देने के लिए अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी.

By Rupali Das | June 15, 2025 8:03 AM

AK Roy Birth Anniversary: झारखंड आंदोलन के प्रमुख स्तंभ और प्रख्यात मार्क्सवादी चिंतक कॉमरेड एके राय की आज जयंती है. इनका जन्म 15 जून 1935 को पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के राजशाही जिले के सपुरा गांव में हुआ था. इनका पूरा नाम अरुण कुमार राय है. अपनी सादगी और विचारधारा के कारण एके राय को राजनीतिक संत का दर्जा प्राप्त है. राजनीति या फिर सामाजिक सरोकार की थोड़ी भी समझ रखने वालों के लिए यह नाम अनजान नहीं है.

एके राय का नाम और काम बोलता रहा

हालांकि, आज की पीढ़ी के नौजवानों या राजनीतिज्ञों को यह जान कर जरूर आश्चर्य होगा कि कोई ऐसा भी नौजवान था जिसने मजदूरों की खातिर उस काल की बेहतरीन नौकरियों में से एक ना सिर्फ त्याग दी, बल्कि तीन बार लोकसभा और तीन बार विधानसभा सदस्य रहने के बाद भी आजीवन चटाई पर सोते रहे. बिना पंखा वाले कमरे में मामूली जीवनोपयोगी संसाधनों के बीच जीवन गुजारा. हां, इस दौरान उनका नाम और काम जरूर बोलता रहा. इन्हें लोग राय साहब के नाम से भी पुकारते थे.

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कभी किसी पर अपनी बात नहीं थोपी

राय साहब के साथ जीवन गुजारने वालों के पास उनकी अनगिनत यादें और संस्मरण हैं. पर चाहे रामलाल हों या फिर राजकुमार रवानी या फिर सुभाष चटर्जी, सुबास प्रसाद सिंह या फिर पूर्व विधायक आनंद महतो, सबका यह मानना है कि एके राय ने अपनी बात कभी किसी पर नहीं थोपी. वह सबकी सुनने में विश्वास करते थे. उनका मानना था कि हर समस्या का समाधान लोगों के पास है. इसलिए उनके पास जायें, उनकी बातें सुने और उससे निकले रास्ते पर आगे बढ़ें.

मजदूरों का साथ देने के लिए गंवाई नौकरी

हमेशा राय साहब के साथ रहे और पार्टी के आजीवन सदस्य रामलाल बताते हैं कि पूर्व बंगाल (अब बांग्लादेश) में जन्मे और कोलकाता से रसायन विज्ञान में एमएससी (टेक) करने वाले कामरेड राय कोलकाता की नौकरी छोड़ 1961 में पीडीआईएल सिंदरी में केमिकल इंजीनियर के रूप में पदस्थापित हुए थे. इसी बीच 1966 में श्रमिकों के एक आंदोलन को समर्थन देने के कारण उन्हें यह नौकरी गंवानी पड़ी, पर इसका उनको मलाल नहीं था. उन्होंने खुद को उस स्थान पर रखा, जहां पर समाज का अंतिम व्यक्ति खड़ा है.

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हमेशा खाली रहे बैंक खाते

यही कारण था कि उनकी कही बात अस्वीकार नहीं की जाती थी. कॉमरेड एके राय की सादगी ऐसी थी कि वह बाइक व ट्रेन के सामान्य दर्जे में सफर कर अपने भाषणों और लेखों से देश की राजनीति को प्रभावित करने के बाद भी प्रतिदिन पार्टी कार्यालय में अपने काम की शुरुआत वहां झाडू लगा कर करते थे. उनके बैंक खाते हमेशा खाली रहे. रामलाल ने बताया कि राय साहब सांसदों के वेतन, भत्ता और पेंशन में संशोधन विधेयक का विरोध करने वाले पहले सांसद थे.

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