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घुरती रथ यात्रा कल

उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ रांची : हरिशयानी एकादशी यानी आठ जुलाई को भगवान जगन्नाथ अपने अग्रज बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ मौसी बाड़ी से मुख्य मंदिर में वापस लौटेंगे. इस दिन मौसी बाड़ी में सुबह छह बजे से लेकर ढ़ाई बजे तक विशेष पूजा-अर्चना की जायेगी. इसके बाद सभी विग्रहों को एक-एक कर रथारूढ़ […]

उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़

रांची : हरिशयानी एकादशी यानी आठ जुलाई को भगवान जगन्नाथ अपने अग्रज बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ मौसी बाड़ी से मुख्य मंदिर में वापस लौटेंगे. इस दिन मौसी बाड़ी में सुबह छह बजे से लेकर ढ़ाई बजे तक विशेष पूजा-अर्चना की जायेगी. इसके बाद सभी विग्रहों को एक-एक कर रथारूढ़ किया जायेगा.

इसमें सबसे पहले नरसिंह, सुदर्शन चक्र, गरुड़ महाराज, बलदेव स्वामी, माता सुभद्रा व भगवान जगन्नाथ स्वामी को रथारूढ़ किया जायेगा. तीन बजे से विग्रहों का श्रृंगार होगा. 3.30 से 4.30 बजे तक श्री विष्णु सहस्त्रनाम व श्री जगन्नाथ अष्टकम का पाठ, पूजा व आरती होगी. 4.31 बजे रथ मौसी बाड़ी से प्रस्थान करेगा. पांच बजे रथ मुख्य मंदिर के निकट पहुंच जायेगा. रथ पर भगवान के दर्शन सर्वसुलभ होंगे. महिलाओं के दर्शन के लिए विशेष सुविधा रहेगी. रथारूढ़ विग्रह एक-एक कर मुख्य मंदिर में ले जाये जायेंगे. रात आठ बजे मंगल आरती होगी.

इससे पहले जगन्नाथपुर स्थित रथ मेला में रविवार को काफी चहल-पहल रही. छुट्टी का दिन होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग सपरिवार मेला में पहुंचे. मेले में पहुंचे लोग भगवान जगन्नाथ, उनकी पत्नी सुभद्रा व भाई बलराम के दर्शन कर धन्य हो रहे थे. वहीं, दूसरी ओर मेले में झारखंड की साझा संस्कृति के विभिन्न रंग भी देखने को मिले. पिछले कुछ दिनों से बारिश के कारण मेले में सजी दुकानों में भीड़ कम दिख रही थी. आज सभी दुकानों में भीड़ उमड़ रही थी.

चाट फुचका, चाउमीन, धुसका व अन्य व्यंजनों के स्टॉल पर लोग लजीज व्यंजनों का लुत्फ उठा रहे थे. कुछ युवा पारंपरिक तरीके से हाथ व चेहरे पर टैटू बनवा रहे थे. एक जगह पर एक युवक तोता, लालमुनिया व अन्य पक्षियों की बिक्री करता हुआ पाया गया. फोटोग्राफर को देख वह नाराज भी हुआ, उसने कहा-क्या भइया मेरे ही पीछे क्यों पड़े हैं.. मेला में भी कमाई नहीं करें क्या? मेला में एक जगह पर सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का शिविर लगा था. उसमें झारखंड के ऐतिहासिक पुरुषों भगवान बिरसा मुंडा, शहीद तेलंगा खड़िया, सिदो-कान्हो, ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव सहित ऐतिहासिक स्थलों व जंगलों की तसवीरें लगी थीं. उसके पास ही मौत के कुआं का खेल देखने के लिए लोग कतार में खड़े थे. इसके अलावा तरह-तरह के झूलों पर भी युवाओं व बच्चों ने खूब मस्ती की.

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