लावारिस शवों को सम्मानजनक विदाई देते हैं झारखंड के बैजनाथ सिंह, अब तक 33 शवों का कराया अंतिम संस्कार

Jharkhand News: पलामू के बैजनाथ सिंह समाज में एक बेहद ही नेक काम कर रहे हैं. बैजनाथ सिंह अज्ञात शवों का सम्मानजनक अंतिम संस्कार कराते हैं. बैजनाथ सिंह द्वारा अभी तक 33 अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कराया गया है.

By Dipali Kumari | September 15, 2025 10:10 AM

Jharkhand News | मेदिनीनगर, रामनरेश तिवारी: इस दुनिया में करोड़ों लोगों की आबादी में कई ऐसे लोग हैं जिनका इस भीड़ में कोई अपना नहीं है. लेकिन, कहते हैं न जिसका कोई नहीं होता उसका भगवान होता है. भगवान स्वयं तो नहीं पहुंचते हैं, लेकिन किसी न किसी को फरिश्ता बना कर जरूर भेजते हैं. इस दुनिया में रोजाना कई लोगों की मृत्यु होती है, जिनके शुभचिंतक होते हैं वे उनका रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार करवाते हैं. वहीं दूसरी ओर जिनको अपना कहने वाला कोई नहीं होता, उनका शव लावारिस की तरह पड़ा रहता है. लेकिन ऐसे में ईश्वर की प्रेरणा से कोई उनका हितैषी बनकर सामने आ ही जाता है. ऐसे ही हस्तियों में एक नाम है बैजनाथ सिंह.

33 अज्ञात शवों का कराया अंतिम संस्कार

पलामू के मेदिनीनगर शहर स्थित हमीदगंज निवासी बैजनाथ सिंह द्वारा अभी तक 33 अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार कराया गया है. अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करने से पहले शव की पहचान के प्रयास किये जाते हैं. इसके बाद कानूनी और अन्य प्रक्रियाओं को पूरा करने के बाद धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनके द्वारा शव का अंतिम संस्कार कराया जाता है. शव को अपने जिम्मे लेने के बाद यदि शव के धर्म की जानकारी मिलती है तो वह उसी के अनुसार शव को जलाते या दफनाते है.

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मन को मिलता है सुकून- बैजनाथ सिंह

बैजनाथ सिंह कहते हैं कि अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार से बड़ा दूसरा कोई कार्य नहीं हो सकता है. जिसका कोई नहीं है. वैसे अज्ञात लोगों का दाह संस्कार कराने से उन्हें सुकून मिलता है. मन में शांति मिलती है. उन्होंने बताया कि शव का अंतिम संस्कार में उनके द्वारा खानापूर्ति नहीं किया जाता है. बल्कि विधिवत वस्त्र देकर दाह संस्कार कराया जाता है. उन्होंने बताया कि यह पुनीत कार्य भविष्य में भी उनके द्वारा कराया जायेगा.

पहली बार ऐसे शुरू हुआ नेक काम

बैजनाथ सिंह ने बताते हैं कि मार्च 2023 में उनका छोटे पुत्र की तबीयत खराब हो गयी थी. जब इलाज के लिए डॉक्टर के पास जा रहे थे तो हॉस्पिटल चौक पर एक बुजुर्ग को कराहते देखा. उनके बीमार पुत्र ने कहा कि पापा वह बूढ़ा वैसे क्यों कर रहा है. उन्होंने अपने पुत्र के कहने पर बुजुर्ग के पास गये. फिर गीता भवन स्थित गोखुल कुंज मिष्ठान भंडार से दो रसगुल्ला व एक बोतल पानी लाकर उसे खिलाया-पिलाया. इसी बीच उसकी मौत हो गयी. उसकी मौत के बाद शहर थाना द्वारा पोस्टमार्टम कराया गया. लेकिन शव की जिम्मेदारी लेने वाला है कोई नहीं था. तत्कालीन थाना प्रभारी द्वारा उसका दाह संस्कार के लिए कहा गया. इसके बाद उन्होंने पहली बार किसी अज्ञात व्यक्ति का दाह संस्कार कराया. वहीं से इस प्रकार के पुनीत कार्य को करने के लिए उन्होंने अपने मन में ठान लिया.

72 घंटे बाद कराया जाता है अंतिम संस्कार

मेदिनीनगर स्थित एमएमसीएच परिसर में स्थापित अस्थायी पुलिस पिकेट प्रभारी कुमार नीरज के अनुसार अस्पताल में कई व्यक्ति पहुंचते हैं. जिनका कोई नहीं रहता है. वैसे व्यक्तियों की मौत हो जाती है. वैसे लोग की मौत के बाद पहचान के लिए 72 घंटे तक रखा जाता है. इसके बाद शव का दाह संस्कार करा दिया जाता है.

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