Hindi Diwas 2020 : हिंदी की चर्चा होते ही याद आते थे ब्रजेश नारायण झा

Hindi Diwas 2020 : लोहरदगा (गोपीकृष्ण कुंवर) : हिंदी की जब भी चर्चा होती थी, लोहरदगा जिले में सबसे पहले ब्रजेश नारायण झा का नाम जुबां पर आता था. हिंदी कला एवं साहित्य परिषद के सचिव ब्रजेश नारायण झा शास्त्री नगर के ढोढाटोली में रहते थे. उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. वे हिंदी के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. उनके निधन से एक खालीपन आ गया है. हिंदी दिवस पर लोगों को उनकी कमी काफी खल रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 14, 2020 11:54 AM

Hindi Diwas 2020 : लोहरदगा (गोपीकृष्ण कुंवर) : हिंदी की जब भी चर्चा होती थी, लोहरदगा जिले में सबसे पहले ब्रजेश नारायण झा का नाम जुबां पर आता था. हिंदी कला एवं साहित्य परिषद के सचिव ब्रजेश नारायण झा शास्त्री नगर के ढोढाटोली में रहते थे. उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. वे हिंदी के प्रति पूरी तरह समर्पित थे. उनके निधन से एक खालीपन आ गया है. हिंदी दिवस पर लोगों को उनकी कमी काफी खल रही है.

हिंदी कला एवं साहित्य परिषद के सचिव ब्रजेश नारायण झा लोहरदगा के कवि और प्रसिद्ध लेखक थे. मृदुभाषी, सरल, सहज और हर दिल अजीज शख्स थे. ब्रजेश नारायण झा हिंदी में एमए-बीएड थे. उन्होंने संथाल परगना के महेशपुर त्रिवेणी स्मारक हाईस्कूल से शिक्षक का सफर शुरू किया था. वहां के बाद वे प्लस टू नदिया हिंदू हाईस्कूल, लोहरदगा के प्राचार्य के रूप में लंबे समय तक रहे. एसएस हाई स्कूल गुमला के प्रिंसिपल के पद पर रहते हुए वह 2011 में सेवानिवृत्त हुए थे.

लगातार साहित्य सेवा और स्थानीय स्तर पर कवि सम्मेलन में प्राण फूंकने वाले ब्रजेश नारायण झा बीग एनसीसी के एसोसिएट भी लंबे समय तक रहे थे. अनुशासन प्रिय और पढ़ाई के प्रति बच्चों के बीच अलख जगानेवाले शिक्षक के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान थी. ब्रजेश नारायण झा ने हिंदी के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया था. वे लगातार कार्यक्रमों का आयोजन किया करते थे. वे बडे़ उत्साह के साथ लोगों के बीच हिंदी की व्याख्या किया करते थे. हिंदी दिवस पर इस बार कार्यक्रमों का आयोजन बडे़ पैमाने पर नहीं हो रहा है, लेकिन लोग हिंदी को लेकर काफी उत्साहित हैं.

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ब्रजेश नारायण झा का निधन 25 जुलाई 2020 को हो गया. उनके निधन से साहित्य के क्षेत्र में एक खालीपन आया है. हिंदी प्रेमियों को उनकी कमी काफी खल रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में हिंदी के लिए वे लगातार प्रयास किया करते थे. आज भी लोग उनके कार्यों को याद करते हैं.

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Posted By : Guru Swarup Mishra

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