मनुष्य जीवन के चारों आश्रम सभी के लिए :स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ (हैरी-25, 26)
-सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का पांचवां दिनवरीय संवाददाता, जमशेदपुर आत्मीय वैभव विकास केंद्र (सीआइआरडी) में चल रहे ज्ञान यज्ञ के तहत स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने मंगलवार को प्रबुद्ध जीवन जीने के उपाय बताये. उन्होंने कहा कि मानव जीवन की चार अवस्थाएं हैं, जिन्हें शास्त्रों में चार आश्रमों के रूप में वर्णित किया गया है. पहली […]
-सीआइआरडी में ज्ञान यज्ञ का पांचवां दिनवरीय संवाददाता, जमशेदपुर आत्मीय वैभव विकास केंद्र (सीआइआरडी) में चल रहे ज्ञान यज्ञ के तहत स्वामी निर्विशेषानंद तीर्थ ने मंगलवार को प्रबुद्ध जीवन जीने के उपाय बताये. उन्होंने कहा कि मानव जीवन की चार अवस्थाएं हैं, जिन्हें शास्त्रों में चार आश्रमों के रूप में वर्णित किया गया है. पहली अवस्था ब्रह्मचर्य आश्रम की है, जिसमें सीखना एवं शिक्षा प्राप्त करना होता है. पहले यह अवस्था गुरु के साथ रह कर बितानी पड़ती थी, जिसमें आंतरिक गुणों के विकास पर अधिक बल दिया जाता था. मन को राग द्वेष से मुक्त कर सरल बनाने एवं बुद्धि को शंका मुक्त करने के लिए गुरु के साथ रहना अनिवार्य था. दूसरी अवस्था गृहस्थाश्रम की है, जिसमें धर्म के अनुसार ही धन अर्जित करना है. प्रकृति के नियम के साथ तालमेल बनाये रखना चाहिए. अर्जित धन से धर्मानुसार अपनी कामनाओं की पूर्ति करनी चाहिए. इस अवस्था में यही ध्यान रखना चाहिए कि कामनाओं की पूर्ति से हमें स्थायी सुख नहीं मिलेगा, स्थायी सुख के लिए हमें संन्यास आश्रम में गृहस्थाश्रम के क्रियाकलापों से अलग रह कर शुद्ध एवं सात्विक जीवन बिताना है. इसके बाद अंतिम आश्रम संन्यास में प्रवेश का है. इसमें व्यक्ति का अपना जीवन कुछ नहीं रह जाता, वह दूसरों की भलाई के लिए समाज को समर्पित हो जाता है. स्वामी जी ने बताया कि ये चारों आश्रम प्रत्येक व्यक्ति के लिए है. कुछ समर्पित लोग ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे संन्यास आश्रम में प्रवेश कर जाते हैं. कार्यक्रम को सफल बनाने में डॉ एसके दास, डॉ आलोक सेनगुप्ता, आरएस तिवारी आदि का योगदान रहा.
