Sarhul 2022: सरहुल पर्व से आदिवासी समुदाय का नववर्ष होता शुरू, जानें सखुआ वृक्ष का विशेष महत्व

Sarhul 2022: सरहुल पर्व की तैयारी शुरू हो गयी. 4 अप्रैल, 2022 को सरहुल पर्व है. इस पर्व के साथ ही आदिवासी समुदाय का नववर्ष शुरू हो जाता है. इस पर्व में सखुआ पेड़ का विशेष महत्व होता है. वहीं, पाहन घड़े में पानी देखकर बारिश का अनुमान लगाते हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 30, 2022 7:07 PM

Sarhul 2022: सरहुल पर्व की तैयारी शुरू हो गयी है. वहीं, सीएम हेमंत सोरेन की ओर से जुलूस निकाले जाने संबंधी हरी झंडी मिलने के बाद तैयारी जोर पकड़ ली है. सरहुल पर्व से आदिवासियों का नववर्ष शुरू होता है. इसलिए आदिवासी समाज के लोग इसे पूरे उत्साह एवं उमंग से मनाते हैं. वहीं, इस पर्व में सखुआ वृक्ष का विशेष महत्व होता है. साथ ही पाहन घड़े में पानी देखकर बारिश का अनुमान लगाते हैं.

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प्रकृति के साथ जीवन चक्र से संबंधित

बसिया प्रखंड के 20 सूत्री सदस्य विनोद भगत ने कहा कि सरहुल जनजातीय जीवन और प्रकृति के साथ जीवन चक्र से संबंधित है. जिसमें प्राकृतिक संतुलन एवं सृष्टि को बनाये रखने की कामना की जाती है. वहीं, बसिया सरहुल पूजा संचालन समिति के अध्यक्ष कार्तिक भगत ने बताया कि प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासियों का वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक प्रमुख पर्व है. पतझड़ के बाद पेड़-पौधे की टहनियों पर हरी-हरी पत्तियां जब निकलने लगती है. आम के मंजर तथा सखुआ और महुआ के फूल से जब पूरा वातावरण सुगंधित हो जाता है. तब यह पर्व मनाया जाता है. यह पर्व प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होकर चैत्र पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है. इस पर्व में सखुआ के वृक्ष का विशेष महत्व है. आदिवासियों की परंपरा के अनुसार, इस पर्व के बाद ही आदिवासियों का नववर्ष शुरू होता है.

सरना के सम्मान में मनाया जाता पर्व

बसिया निवासी शशिकांत भगत ने कहा कि सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है. यह पर्व कृषि शुरू करने का दिन है. यह पर्व सरना के सम्मान में मनाया जाता है. सरहुल के दिन गांव के प्रधान पुजारी, जिसे ‘पाहन’ कहा जाता है, सरना पूजन कराते हैं. पूजन के बाद बलि दी जाती है. हड़िया का अर्घ्य दिया जाता है. अर्घ्य के बाद सभी आदिवासी शाल वृक्ष के पत्ते पर मुर्गा रखकर प्रसाद के रूप में हड़िया एवं मुर्गे का सेवन करते हैं एवं मेहमानों का सत्कार करते हैं.

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घड़े में पानी देखकर बारिश का होता अनुमान

सरना प्रार्थना सभा के जिला सचिव जुगल उरांव ने कहा कि प्रकृति पर्व सरहुल आदिवासी संस्कृति और परंपरा से जुड़ा है. सरहुल पर हमारे गांव के पाहन एवं पुजार सरना में पूजा अर्चना कर गांव की सुख-शांति की कामना करते हैं. साथ ही घड़े में पानी देखकर इस साल होने वाले वर्षा का अनुमान लगाते हैं, जो बिल्कुल सटीक होता है. इसी अनुमान के अनुसार किसान खेती करते हैं. सरहुल में आदिवासी संस्कृति की झलक देखने को मिलती है.

रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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