मुंबई, हैदराबाद को जोड़ने वाला गुमला के कोयल नदी पर बने पुल को तोड़ा गया, 121 साल है पुराना

कोयल नदी पर बना पुल अंग्रेजों ने वर्ष 1902 ईस्वी में बनाया था. यह पुल छत्तीसगढ़, मुंबई, हैदराबाद समेत कई बड़े राज्यों को जोड़ता है. हर दिन हजारों गाड़ियां इस पुल से होकर गुजरती थी. यह पुल 24 पिलर पर खड़ा है

By Prabhat Khabar | March 21, 2023 2:20 AM

गुमला, दुर्जय पासवान:

यह अजीब है, परंतु सच है. 121 वर्ष तक नागफेनी का पुल कोयल नदी की तेज धार में नहीं हिला और न पुल कहीं क्षतिग्रस्त हुआ. मजबूत पिलर पर पुल खड़ा रहा. परंतु, अब फोरलेन सड़क बनाने के लिए पुल के बीच के हिस्से को तोड़ना पड़ा. क्योंकि जिस स्थान पर पुराना पुल था, वहीं पास हाई लेबल पुल का निर्माण हो रहा है. नये हाई लेबल पुल का काम तेजी से चल रहा है. इसलिए 18 मार्च 2023 को तीन बड़ी मशीन लगा कर पुराने पुल को तोड़ा गया है.

बता दें कि यह पुल अंग्रेजों ने वर्ष 1902 ईस्वी में बनाया था. यह पुल छत्तीसगढ़, मुंबई, हैदराबाद समेत कई बड़े राज्यों को जोड़ता है. हर दिन हजारों गाड़ियां इस पुल से होकर गुजरती थी. यह पुल 24 पिलर पर खड़ा है. बरसात में कोयल नदी की धारा काफी तेज रहती है. परंतु, यह पुल नदी की तेज धारा में टस से मस नहीं हुआ और मजबूती से खड़ा रहा.

बरसात में पानी में डूब जाता था पुल: बरसात के मौसम में यह पुल पानी में डूब जाता था. क्योंकि नदी की धारा को देखते हुए उस समय पुल का ऊंचाई अधिक नहीं की गयी थी. इसलिए जब तीन-चार दिनों तक लगातार गुमला में बारिश होने पर पुल के ऊपर से चार से पांच फीट तक पानी बहता था. पुल को नदी अपने आगोश में ले लेती थी.

पुराने पुल के बगल में 10 साल पूर्व बना था नया पुल :

बरसात में पुल के ऊपर से पानी बहने से तीन-चार दिन तक गुमला टापू हो जाता था. इस समस्या को देखते हुए 10 साल पहले पुराने पुल के बगल में एक हाई लेबल पुल बना था. फिलहाल में इस नये पुल से आवागमन हो रहा है. परंतु, 10 वर्ष पूर्व बने पुल के ऊपर में जगह-जगह लोहा दिखने लगा है. गड्ढे में गाड़ी का चक्का पड़ने से जोरदार आवाज होती है.

यह इतिहास भी जाने :

बताया जाता है शहीद तेलंगा खड़िया का घर नागफेनी कोयल नदी से पांच किमी दूर मुरगू गांव में है. जब तेलंगा खड़िया ने अंग्रेजों व जमींदारी प्रथा के खिलाफ लड़ाई शुरू की थी, तो अंग्रेज उसे पकड़ने के लिए खोजते थे. उस समय तेलंगा खड़िया कोयल नदी के किनारे शरण लिया करते थे या तो फिर नदी पार कर समीप के जंगल में छिप जाते थे.

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