Giridih News :अर्हता पूरी नहीं करने पर बंद हो जायेंगे प्राइवेट स्कूल
Giridih News :बाल व अनिवार्य शिक्षा अधिकार नियम के तहत सभी प्राइवेट विद्यालयों व कोचिंग संस्थानों को तय किये गये अर्हताओं को मार्च तक पूरा करने का सख्त निर्देश दिया गया है. अर्हता पूरा नहीं होने की स्थिति में विद्यालयों को बंद करने का आदेश विभाग दे सकता है.
वैसे विद्यालय, जिनको मान्यता नहीं मिली है, उन्हें विभाग द्वारा तय पोर्टल पर आवेदन देने का निर्देश भी जारी किया गया है, ताकि जांचोपरांत मान्यता मिल सके. पूर्व में आवेदन दिये गये विद्यालयों के संचालकों के साथ पिछले माह उपायुक्त की अध्यक्षता में एक बैठक हुई. इसमें तय मानकों को शीघ्र पूरा करने का सख्त निर्देश दिया गया था.
तय मानकों को पूरा करने में संचालकों को परेशानी
सरकार द्वारा शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत मानक तय किये गये हैं. मान्यता के लिए 2019 में एक संशोधित नियमावली बनी थी, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में मध्य व उच्च विद्यालय संचालित करने के लिए एक एकड़ जमीन व शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल जमीन अनिवार्य किया गया है. वहीं, प्राइमरी विद्यालय के संचालन हेतु ग्रामीण क्षेत्र में 60 डिसमिल व शहरी क्षेत्र में 40 डिसमिल जमीन अनिवार्य किया गया है. इसके अलावा परिसर में तय मानक के अनुसार कमरे, कार्यालय, खेल मैदान, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, बच्चों के अनुपात में शौचालय, प्रशिक्षित शिक्षक का होना अनिवार्य किया गया है. शिक्षकों की संख्या का अनुपात 33:01 निर्धारित की गयी है. सुरक्षा के दृष्टिकोण से परिसर में तड़ित चालक, अग्निशमन, सीसीटीवी कैमरा लगवाने का निर्देश है.
जमीन की शर्त पूरा करने में छूट रहा
पसीना
क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या जमीन की उपलब्धता की है. ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ती आबादी के साथ जमीन की समस्या आ रही है. जमीन काफी महंगी हो गयी हैं. ऐसी स्थिति में एक एकड़ जमीन उपलब्ध लेने में स्कूल संचालकों को परेशानी हो रही है. गावां प्रखंड में इस समय लगभग तीन दर्जन से अधिक विद्यालयों का संचालन हो रहा है. इसमें लगभग 10 हजार विद्यार्थी को लगभग 300 शिक्षक पढ़ा रहे हैं. लगभग दो दर्जन विद्यालयों को विभाग से यू-डायस उपलब्ध करवाया गया है, जबकि लगभग एक दर्जन विद्यालय बगैर यू-डायस के संचालित किये जा रहे हैं. यू-डायस से संचालित विद्यालयों का डाटा समयानुसार विभाग को उपलब्ध होता रहता है, जबकि शेष का आंकड़ा नहीं मिल पाता है. इस संबंध में एक निजी विद्यालय के संचालक से पूछा गया तो उसने कहा कि विभाग यू-डायस नहीं दे रहा है. यहां पढ़ रहे बच्चों का नाम दूसरे सरकारी विद्यालय में दर्ज है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि बच्चे का नाम जब सरकारी विद्यालय में दर्ज है तो निश्चित तौर पर उनके एमडीएम का चावल राशि व छात्रवृत्ति आदि भी सरकारी विद्यालय में आता होगा. जब बच्चे आ ही नहीं रहे हैं तो उसकी सामग्री व राशि का क्या होता होता है, इसका अनुमान स्वत: लगाया जा सकता है. सरकारी विद्यालयों की बदतर स्थिति के कारण अभिभावकों का रुझान प्राइवेट स्कूलों पर अधिक रहता है. प्रखंड में मध्य विद्यालय दो से तीन शिक्षकों के भरोसे चलाये जा रहे हैं. यही हाल उत्क्रमित उच्च विद्यालयों का भी है. ऐसे में यहां शिक्षण व्यवस्था की लचर स्थिति में रहना स्वभाविक है. अभिभावकों का कहना है कि प्राइवेट विद्यालयों पर नकेल कसने से पूर्व सरकार को सरकारी विद्यालयों की व्यवस्था को दुरुस्त करनी चाहिए.
प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन कर रहा है विरोध
हालांकि, प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन सरकार के इस निर्णय का लगातार विरोध कर रहा है. उसका कहना है कि वर्षों से संचालित विद्यालयों को सरकार द्वारा न्यूनतम मापदंड का पालन कर मान्यता पर विचार करना चाहिए. हाल में ही उच्च न्यायालय ने 2019 की नियमावली के तहत दिये गये आदेश पर रोक लगा दी है. वहीं, अगली सुनवाई के लिए समय का निर्धारित किया है, जिससे प्राइवेट स्कूल के संचालकों ने राहत की सांस ली है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
