Giridih News :जामताड़ा के बाद गिरिडीह बनता जा रहा साइबर क्राइम का अड्डा

Giridih News :कभी साइबर मुक्त माना जाने वाला गिरिडीह जिला भी अब धीरे-धीरे साइबर अपराधियों का अड्डा बनता जा रहा है. जहां पहले जिले में साइबर अपराध की घटनाएं इक्का-दुक्का सुनने में आती थी, वहीं अब हालात यह है कि देश के कई राज्यों की पुलिस आये दिन यहां दबिश देने पहुंच रही है.

By PRADEEP KUMAR | November 1, 2025 11:33 PM

यह स्थिति बताती है कि साइबर अपराधियों ने यहां जड़ें जमानी शुरू कर दी हैं और इस नेटवर्क का लगातार विस्तार हो रहा है. जामताड़ा को देश भर में साइबर ठगी के गढ़ के तौर पर जाना जाता था, पर अब गिरिडीह भी उसी राह पर खड़ा दिखाई दे रहा है. बीते कुछ वर्षों में जिले के कई ग्रामीण इलाकों में साइबर अपराधियों की सक्रियता बढ़ी है.

रोजगार का ले रहा है रूप

पुलिस सूत्रों के अनुसार कुछ गांव ऐसे हैं जहां लगभग हर घर में एक-दो लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से साइबर ठगी के कारोबार से जुड़े हैं. इन गिरोहों का तरीका भी लगभग जामताड़ा जैसा ही है. युवाओं को पहले सस्ते स्मार्टफोन और इंटरनेट की सुविधा मिलती है. इसके बाद व्हाट्सएप कॉल, लिंक भेजकर बैंक अकाउंट खाली करना, ऑनलाइन शॉपिंग साइटों पर कस्टमर केयर का झांसा देना, फर्जी लोन ऐप और केवाईसी अपडेट जैसे बहाने बनाकर लोगों को जाल में फंसाया जाता है. ठगी के पैसे को विभिन्न बैंक खातों और क्रिप्टो वॉलेट के जरिये घुमाकर ट्रैकिंग को मुश्किल बना दिया जाता है. यही वजह है कि बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, यूपी समेत कई राज्यों की पुलिस की टीम गिरिडीह में छापेमारी कर चुकी है. कई बार रात में गांवों में पुलिस की टीमें उतरती हैं और अचानक कई संदिग्ध युवाओं को हिरासत में ले लिया जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि बेरोजगारी, इंटरनेट की आसान उपलब्धता और जल्दी पैसा कमाने की चाह ने युवाओं को इस रास्ते पर धकेला है. कई परिवारों की तंगहाली के कारण भी युवा इस गोरखधंधे को एक रोजगार के रूप में देखने लगे हैं.

2020 से 2025 तक इनकी हुई गिरफ्तारी

विदित हो कि गिरिडीह जिले में साइबर अपराध का दायरा किस गति से फैल रहा है, इसका अंदाज़ा पुलिस के बीते छह वर्षों के रिकॉर्ड से स्पष्ट है. गिरिडीह साइबर थाना की ओर से वर्ष 2020 से लेकर 2025 तक की गिरफ्तारी और बरामदगी दर्शाती है कि जिले में साइबर अपराध लगातार रूप बदलते हुए मजबूत होता गया है. वर्ष 2020 गिरिडीह साइबर पुलिस के लिए बड़े अभियानों वाला साल रहा. इस दौरान जिले के विभिन्न थाना क्षेत्रों में छापेमारी की गयी और कुल 144 साइबर अपराधियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया. इस वर्ष गिरफ्तारियों की संख्या दिखाती है कि गिरोह काफी बड़े पैमाने पर सक्रिय थे. वर्ष 2021 में कुल 59 साइबर अपराधियों को पकड़ा गया. यह संख्या 2020 की तुलना में लगभग आधी रही. पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस दौरान कुछ गिरोहों ने अपने ठिकाने बदल लिये. कई अपराधियों ने तकनीक के सहारे अपनी पहचान और लोकेशन छिपाने के तरीके भी अपनाये. 2022 वह वर्ष रहा, जब साइबर अपराधियों ने खुद को पुलिस की पकड़ से बचाने के लिए नये तरीके, नये सिम कार्ड रूट, नकली खातों और हवाला चैनल का उपयोग शुरू कर दिया. परिणामस्वरूप वर्ष 2022 में साइबर थाना मात्र 20 अपराधियों को ही गिरफ्तार कर सका, वर्ष 2023 में गिरिडीह पुलिस ने रणनीति बदली. गांवों में स्कूल स्तर तक साइबर जागरूकता कार्यक्रम चलाये गये. मुखबिर नेटवर्क मजबूत किया गया और अचानक रात में दबिश अभियान चलाये गये. नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष कुल 137 साइबर अपराधी गिरफ्तार कर जेल भेजे गये. यह संख्या फिर से तेजी से बढ़ते नेटवर्क को उजागर करती है, वर्ष 2024 में भी पुलिस का अभियान जारी रहा और कुल 132 साइबर ठग गिरफ्तार किये गये. इस दौरान कई बड़ी बरामदगी भी हुई, जिनमें दोपहिया-चारपहिया वाहन, महंगे स्मार्टफोन और कई फर्जी बैंक खाते शामिल रहे. मौजूदा वर्ष 2025 में अब तक कुल 35 साइबर अपराधी पुलिस की गिरफ्त में आ चुके हैं. पुलिस का कहना है कि कई गिरोह अपने ठिकाने बदल रहे हैं और तकनीकी रूप से और भी शातिर हो गये हैं. इससे निगरानी और चुनौतीपूर्ण होती गयी है.

जल्दी पैसा कमाने की मानसिकता ने फैलायीं साइबर अपराध की जड़ें

गत छह वर्षों की कार्रवाई के दौरान साइबर थाना की टीम ने अपराधियों के ठिकानों से कई दोपहिया और चारपहिया वाहन, महंगे ब्रांडेड मोबाइल फोन, लैपटॉप, वाई-फाई राउटर, फर्जी सिम कार्डों का बंडल और बैंक खातों से जुड़े कई दस्तावेज बरामद किये हैं. इन बरामद सामानों की संख्या और कीमत बताती है कि साइबर ठगी से होने वाली कमाई किस हद तक इन गिरोहों की जिंदगी में बदलाव ला रही है. जिस इलाके में पहले साधारण जीवन जीने वाले परिवार देखे जाते थे, वहीं अब अचानक महंगी गाड़ियां, नये घर और ब्रांडेड कपड़े दिखाई देने लगे हैं. स्थानीय स्तर पर पूछताछ में भी यह बात सामने आई है कि कई युवा सिर्फ कुछ ही महीनों में साइबर कॉलिंग और फर्जी ओटीपी, केवाईसी अपडेट के नाम पर लाखों रु की ठगी कर एक ऐसी जीवनशैली अपनाने लगे हैं, जो सामान्य मजदूरी, खेती या छोटे व्यवसाय से संभव नहीं थी. यही वजह है कि अन्य युवाओं पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है और वे बिना मेहनत के तेज़ पैसे कमाने की चाह में इस धंधे की ओर आकर्षित हो रहे हैं. लोगों का कहना है कि अवैध कमाई से हासिल यह आसान विलासिता न सिर्फ अपराध को बढ़ावा दे रही है, बल्कि कई गांवों की सामाजिक संरचना और पारिवारिक वातावरण को भी बदल रही है. पहले जहां मेहनत और ईमानदारी को रोजगार का आधार माना जाता था, वहीं अब जल्दी पैसा कमाओ की मानसिकता विकसित हो रही है. यह मानसिकता आने वाले समय में और भी गंभीर सामाजिक और कानूनी चुनौतियों को जन्म दे सकती है.

गिरिडीह में मजबूत हो चुका साइबर गिरोह

बताया जाता है कि गिरिडीह जिले का अहिल्यापुर इलाका भौगोलिक रूप से जामताड़ा जिल़े से सटा हुआ है, और यहीं से साइबर अपराध का नेटवर्क गिरिडीह में प्रवेश करता गया. जामताड़ा लंबे समय से साइबर ठगी के गढ़ के रूप में पहचाना जाता रहा है. सीमा साझा होने के कारण अहिल्यापुर के युवाओं के संपर्क वहां सक्रिय ठगों से जुड़ने लगे. शुरुआत में कुछ युवक मोबाइल कॉलिंग और बैंक खातों की जानकारी निकालने का काम सीखकर इसमें शामिल हुए. जब उन्होंने कुछ ही महीनों में महंगी बाइक, कार, स्मार्टफोन और ब्रांडेड कपड़े पहनना शुरू किया, तो गांव के दूसरे युवाओं के मन में भी आकर्षण और लालच पैदा हुआ. यहीं से यह अपराध एक चेन सिस्टम की तरह फैलना शुरू हुआ. एक युवक ने दूसरे को, और दूसरे ने तीसरे को शामिल किया. काम आसान था, पैसा तेज़ी से मिल रहा था, और पकड़ की संभावना कम. बस इसी आसान चमक ने कई युवाओं को अपराध की दुनिया में धकेल दिया. धीरे-धीरे यह नेटवर्क अहिल्यापुर से आगे बढ़कर देवघर जिले के मार्गोमुंडा थाना क्षेत्र, फिर गिरिडीह के ताराटांड़, गांडेय, बेंगाबाद और मुफस्सिल थाना क्षेत्रों तक फैल गया. इसके बाद इसका प्रभाव तिसरी, बिरनी और डुमरी थाना क्षेत्रों में भी दिखने लगा. स्थिति यह है कि जिले के ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर तक, दोनों हिस्सों में साइबर गतिविधियों के संकेत साफ हैं.

कन्वर्सन का सुरक्षित फॉर्मूला आजमाया जा रहा

सूत्र बताते हैं कि साइबर ठगी में करोड़ों कमाने वाले कई युवक अब उस पैसे को वैध कारोबार, संपत्ति और राजनीति में लगाने लगे हैं. कई अपराधियों ने गांव-देहात में बड़े पैमाने पर जमीन खरीदी, उसे प्लॉटिंग कर बेचकर और मुनाफा कमाया. कुछ ने नये घर बनाये, तो कई ने बाइक, कार, मोबाइल दुकानें, छोटे उद्योग या परिवहन व्यवसाय शुरू कर दिया. कई मामलों में तो यह देखा गया कि जो युवा कभी गांव की गलियों में साधारण कपड़ों में घूमते दिखाई देते थे, आज वही नये कपड़े, महंगे फोन और गाड़ियों में चलते हुए प्रभावशाली व्यक्तियों की तरह नजर आते हैं. धीरे-धीरे उनकी पहचान अपराधी से बदलकर कारोबारी और सामाजिक प्रतिष्ठा वाले व्यक्तियों के रूप में होने लगी है. सबसे चिंताजनक पहलू है कि जिनका अतीत संदिग्ध रहा है, वे आज समाज में सम्मानित चेहरों की तरह घूम रहे हैं.

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