गढ़वा में तेजी से बढ़ रहा केज कल्चर, उत्पादन व रोजगार के नये अवसरों में इजाफा
अन्नराज, चिरका और खंजूरी डैम बन रहे मत्स्य पालन के मॉडल केंद्र
अन्नराज, चिरका और खंजूरी डैम बन रहे मत्स्य पालन के मॉडल केंद्र वरीय संवाददाता, गढ़वा जिले के विभिन्न डैम और जलाशयों में आधुनिक तकनीक केज कल्चर के माध्यम से मत्स्य पालन तेजी से फैल रहा है. इस अभिनव तकनीक ने जहां जिले में मछली उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि की है, वहीं स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के नये अवसर भी पैदा किये हैं. गढ़वा में केज कल्चर की सबसे बड़ी सफलता का उदाहरण अन्नराज डैम है. यहां इन दिनों ताजी मछलियों की उपलब्धता बढ़ गयी है, जो सीधे केज कल्चर के माध्यम से तैयार हो रही हैं. स्थानीय मछली पालकों और विक्रेताओं को इसका सीधा आर्थिक लाभ मिल रहा है. अन्नराज डैम की सफलता से प्रेरित होकर मत्स्य विभाग ने अन्य जलाशयों पर भी काम तेज कर दिया है. चिनिया के चिरका डैम में केज कल्चर का कार्य जारी है, जबकि मझिआंव के खंजूरी डैम में बुधवार से इसकी औपचारिक शुरुआत हो गयी है. जिला मत्स्य पदाधिकारी धनराज आर कापसे ने बताया कि बड़े जलाशयों में मत्स्य पालन की विशाल संभावनाओं को देखते हुए विभाग सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है. केज कल्चर ऐसी तकनीक है, जो कम जगह और कम लागत में उच्च गुणवत्ता वाली मछली उत्पादन की सुविधा देती है. गढ़वा जिले में इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा रहा है. क्या है केज कल्चर? केज कल्चर मछली पालन की एक आधुनिक और गहन तकनीक है. इसमें मछलियों को डैम या बड़े जलाशयों में तैरते हुए जालीदार पिंजरों (केजों) के अंदर पाला जाता है. इन केजों में प्राकृतिक जल प्रवाह बना रहता है, जिससे मछलियों को पर्याप्त ऑक्सीजन और साफ पानी मिलता रहता है. यह नियंत्रित वातावरण होने के कारण मछलियों की देखभाल, भोजन प्रबंधन और हार्वेस्टिंग आसान हो जाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक गढ़वा जैसे जिलों के लिए वरदान साबित हो रही है. सीमित जल क्षेत्र में भी पारंपरिक विधियों की तुलना में कई गुना अधिक उत्पादन मिलता है. स्वयं सहायता समूहों और स्थानीय मछली पालकों के लिए यह स्थायी आजीविका का मजबूत माध्यम बन रहा है. गढ़वा में मत्स्य पालन की असीम संभावनाएं जिला मत्स्य पदाधिकारी धनराज आर कापसे के अनुसार गढ़वा की भौगोलिक स्थिति, अन्नराज, चिरका, खंजूरी सहित अन्य कई बड़े और छोटे बांध पूरे वर्ष पर्याप्त जल उपलब्ध रहता है, जो केज कल्चर के लिए अत्यंत उपयुक्त हैं. मत्स्य पालन को कृषि का सहयोगी व्यवसाय मानते हुए इसे बढ़ावा देने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी. विभाग द्वारा तैयार कार्य योजना के अनुसार लक्ष्य केवल उत्पादन बढ़ाना नहीं है, बल्कि जिले की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद मछली को पड़ोसी प्रदेशों के बाजारों तक निर्यात करने की क्षमता विकसित करना भी है. विभाग का उद्देश्य है कि गढ़वा आने वाले वर्षों में मत्स्य उत्पादन का एक प्रमुख केंद्र बनकर उभरे.
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