झारखंड में फिर से बाजार समिति शुल्क लगने का अंदेशा, संताल परगना चेंबर ने जताया विरोध, जानें पूरा मामला

jharkhand news: संताल परगना चेंबर ने झारखंड सरकार फिर से बाजार समिति शुल्क या सेस लगाये जाने के अंदेशा का विरोध किया है. संताल चेंबर ने सीएम हेमंत सोरेन और कृषि मंत्री बादल पत्रलेख को पत्र भेजकर पुनर्विचार की मांग की है. इस पत्र के माध्यम से चेंबर ने विभिन्न परेशानियों से सरकार को अवगत कराया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 27, 2022 3:23 PM

Jharkhand news: संताल परगना चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज (Santal Pargana Chamber of Commerce and Industries) झारखंड में सरकार द्वारा फिर से बाजार समिति शुल्क या सेस लगाने के प्रयास का जोरदार विरोध करेगा. चेंबर की ओर से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और कृषि मंत्री बादल पत्रलेख को पत्र भेजकर बाजार समिति शुल्क को अप्रत्यक्ष रूप से फिर से प्रभावी करने के प्रस्ताव पर आपत्ति दर्ज करायी है.

फिर से बाजार समिति शुल्क लगाये जाने का अंदेशा

इस संबंध में संताल परगना चेंबर अध्यक्ष आलोक मल्लिक ने सरकार के इस निर्णय का विरोध कराते हुए भेजे गये पुनर्विचार पत्र में कहा कि गत 25 मार्च, 2022 को विधानसभा में पारित झारखंड कृषि उपज और पशुधन विपणन विधेयक 2022 से राज्य के व्यापारियों में असमंजस की स्थिति बन रही है. साथ ही अंदेशा जताया जा रहा है कि राज्य में फिर से अप्रत्यक्ष रूप से 2 प्रतिशत बाजार समिति शुल्क लगाये जाने का प्रावधान किया गया है.

सेस लागू करने से पहले पुनर्विचार करने की मांग

चेंबर ने सरकार से अनुरोध किया है कि झारखंड के किसान, कृषि-उपज बाजार और व्यापारियों के हित में प्रतिकूल बाजार समिति शुल्क को फिर से प्रभावी नहीं बनाया जाये. संताल परगना चेंबर अध्यक्ष श्री मल्लिक ने कहा कि विगत वर्षों में बाजार समिति शुल्क से राज्य के व्यापारी वर्ग त्रस्त होकर इसे भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाली तथा काले शुल्क की संज्ञा दी थी. काफी जद्दोजहद के बाद यह निरस्त हुआ था. इसलिए चेंबर ने ऐसे किसी सेस या टैक्स को लागू करने से पहले पुनर्विचार करने की मांग की.

Also Read: श्रावणी मेला और भादो मेला के लिए देवघर प्रशासन तैयार, श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए होगी ऐसी व्यवस्था

चेंबर ने दिये तथ्य

– वर्तमान में पड़ोसी राज्य बिहार सहित अन्य राज्यों में बाजार समिति शुल्क नहीं है. यह एक अप्रत्यक्ष कर है और कृषि मूल्य के लागत में जुड़ जाता है. इसलिए इस शुल्क को दोबारा लगाये जाने पर यहां कृषि उत्पादों के लागत मूल्य बढ़ेंगे, जिससे यहां के किसान और व्यापारियों को अपने उत्पादों की खरीद-बिक्री में नुकसान उठाना पड़ेगा तथा इनके व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेंगे, जबकि इसका फायदा पड़ोसी राज्य के कृषि व्यापारियों को मिलेगा.
– बाहर से मंगाये जानेे वाले उत्पादों पर यहां कृषि शुल्क लगाये जाने का कोई औचित्य नहीं है. शुल्क लग चुके वस्तुओं पर झारखंड में भी अलग से टैक्स या शुल्क लगाये जाने की स्थिति में एक ही वस्तु पर दोबारा शुल्क लगने के कारण महंगाई बढ़ेगी और उपभोक्ताओं पर अतिरिक्त भार पड़ेगा.
– इस शुल्क के दोबारा लागू होने पर झारखंड के मुख्य उत्पादन धान की मूल्यवृद्धि होगी, जिससे हमारे यहां चावल के दाम पड़ोसी राज्यों बिहार, बंगाल, ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के मुकाबले अधिक हो जायेगी. इन प्रतिकूल परिस्थितियों में यहां के चावल का व्यापार अन्य राज्यों में स्थानांतरित होने लगेंगे.

Posted By: Samir Ranjan.

Next Article

Exit mobile version