कई महीनों से ठप पड़ा है प्लांट, सिलिंडर खरीदकर की जा रही ऑक्सीजन सप्लाइ
प्लांट के संचालन के लिए आज तक नहीं हुई स्थायी ऑपरेटर की नियुक्ति, केवल एसएनसीयू व इमरजेंसी में सिलेंडर से चलाया जा रहा काम, अन्य वार्ड में सप्लाइ नहीं
सीवान . करोड़ों की लागत से बने सदर अस्पताल के मॉडल अस्पताल भवन में लगभग एक साल से इलाज तो हो रहा है, लेकिन बुनियादी सुविधा सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन सप्लाई आज तक शुरू नहीं हो सकी है. आपात कक्ष, पुरुष वार्ड, महिला वार्ड, एसएनसीयू, लेबर रूम, विशेष डेंगू एवं जेई वार्ड सहित हर जगह मरीजों को आज भी अलग-अलग ऑक्सीजन सिलेंडरों के सहारे इलाज दिया जा रहा है.
हैरानी की बात यह है कि सदर अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट मौजूद है, इसके बावजूद मरीज सिलेंडरों पर निर्भर हैं. कोरोना काल में पीएम केयर फंड से लगाए गए 1000 लीटर प्रति मिनट क्षमता वाले ऑक्सीजन प्लांट को पिछले करीब दो वर्षों से खराब हालत में छोड़ दिया गया है. अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि तकनीकी खराबी की जानकारी होने के बावजूद अब तक इसे दुरुस्त नहीं कराया गया है.प्रधानमंत्री ने किया था उद्घाटन
10 जुलाई 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ऑक्सीजन प्लांट का वर्चुअल उद्घाटन किया था. लेकिन विडंबना यह है कि इसे संचालित करने के लिए आज तक स्थायी ऑपरेटर की नियुक्ति नहीं की गई. जरूरत पड़ने पर अस्पताल के कर्मचारी ही मशीन चलाते रहे. जानकारी और उचित रखरखाव के अभाव में प्लांट पूरी तरह जवाब दे गया.बताया जा रहा है कि प्लांट के सॉफ्टवेयर में तकनीकी खराबी है. 2 नवंबर 2024 से अस्पताल के किसी भी वार्ड में प्लांट से ऑक्सीजन सप्लाई नहीं हो रही है. पुरुष और महिला वार्ड में सप्लाई पूरी तरह बंद है, जबकि एसएनसीयू और इमरजेंसी में मजबूरी में सिलेंडर से काम चलाया जा रहा है.
रोज 10 हजार रुपये हो रहा खर्च
यदि ऑक्सीजन प्लांट चालू रहता तो अस्पताल को नि:शुल्क ऑक्सीजन उपलब्ध होती और केवल बिजली का खर्च उठाना पड़ता. लेकिन अब सिलेंडरों की खरीद पर प्रतिदिन करीब 10 हजार रुपये खर्च किए जा रहे हैं. एसएनसीयू में रोजाना 10 से 15 नवजात भर्ती होते हैं. एक नवजात पर 24 घंटे में एक सिलेंडर की खपत होती है. इमरजेंसी और अन्य वार्ड मिलाकर प्रतिदिन 15 से 20 सिलेंडर खर्च हो रहे हैं. एक सिलेंडर की खरीद पर लगभग 1000 रुपये तथा ट्रांसपोर्ट और लेबर पर करीब 600 रुपये अतिरिक्त खर्च आता है.ऑक्सीजन प्लांट की क्षमता प्रति मिनट 1000 लीटर ऑक्सीजन उत्पादन की है. योजना के तहत डायरेक्ट पाइपलाइन से सभी वार्डों में सप्लाई के साथ-साथ सिलेंडर भी भरे जाने थे. जरूरत पड़ने पर दूसरे अस्पतालों को भी ऑक्सीजन उपलब्ध कराने की योजना थी. लेकिन सच्चाई यह है कि सदर अस्पताल खुद अपने मरीजों के लिए भी इस प्लांट से ऑक्सीजन लेने में असमर्थ है.
मरीजों की सांस सिलेंडरों के भरोसे छोड़ दी गई है और अस्पताल प्रशासन पूरी तरह लापरवाह बना हुआ है. करोड़ों रुपये की मशीन जंग खा रही है और हर दिन सरकारी खजाने से हजारों रुपये फूंके जा रहे हैं. अब बड़ा सवाल यह है कि ऑक्सीजन प्लांट आखिर कब दुरुस्त होगा और मरीजों को कब सुरक्षित, सस्ती और स्थायी ऑक्सीजन सुविधा मिल पाएगी.क्या कहते हैं जिम्मेदार
ऑक्सीजन प्लांट की रिपेयरिंग के लिए कई बार स्टेट को लिखा गया है. दो दिनों में 25 से 30 सिलेंडर की खपत है. किस मद से ऑक्सीजन की खरीद की जाए, विभाग से मंतव्य मांगा गया है. वर्तमान में आयुष्मान भारत योजना से प्राप्त राशि से भुगतान किया जा रहा है.
डॉ अनिल कुमार सिंह,
अधीक्षक, सदर अस्पताल, सीवानडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
