Dharmendra: सीमांचल की धरती से जुड़ी है मशहूर सिने स्टार धर्मेंद्र की यादें, इस फिल्म की शूटिंग के लिए आये थे बिहार

Dharmendra: धर्मेंद्र और जया भादुड़ी जब 1970 के दशक में मैला आंचल पर आधारित फिल्म डाग्दर बाबू की शूटिंग के लिए फारबिसगंज पहुंचे थे, तब पूरे क्षेत्र में उत्साह चरम पर था. 50 साल बाद भी लोग उस दौर की भीड़, दीवानगी और सितारों की यादों को संजोए हुए हैं.

By Paritosh Shahi | November 24, 2025 7:52 PM

Dharmendra, अखिलेश चन्द्रा: कहते हैं, वक्त गुजर जाता है पर यादें शेष रह जाती हैं. पांच दशकों से भी अधिक हो गया. उस जमाने के कई युवा बूढ़े हो गये पर उनकी आंखों में आज भी उस जमाने के सिने स्टार धर्मेंद्र का चेहरा याद है, जब वे अपनी जवानी में जया भादुड़ी जैसी अदाकारा के साथ कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आंचल’ पर बन रही फिल्म ‘डाग्दर बाबू’ की शूटिंग के लिए पुराने पूर्णिया जिले के फारबिसगंज आये थे. तब फारबिसगंज पूर्णिया जिले के अररिया अनुमंडल का प्रखंड मात्र था. कथाशिल्पी रेणु की इस धरती से आज भी सिने स्टार धर्मेंद्र की ढेर सारी यादें जुड़ी हुई हैं. अतीत के झरोखों में झांक कई लोग आज भी धर्मेंद्र का जिक्र कर गर्व महसूस करते हैं.

एक झलक पाने को लोग थे बेताब

रेणु जी के उपन्यास ‘मारे गये गुलफाम’ पर बनी फिल्म ‘तीसरी कसम’ को तो लोग जानते हैं पर उस फिल्म की चर्चा तक नहीं होती जो अधूरी रह गयी. जी हां, सत्तर का दशक था जब हिंदी साहित्य की दुनिया में तहलका मचा देने वाले रेणु जी के उपन्यास मैला आंचल पर ‘डाग्दर बाबू’ फिल्म का निर्माण शुरू हुआ था. वर्ष 1972 का था. नवेन्दु घोष ने पटकथा लिखी थी और निर्देशन भी उन्हीं का था.

देवदास, सुजाता, बंदिनी, अभिमान जैसी फिल्मों की पटकथा लिखने का श्रेय नवेंदु घोष रेणु के मित्र और उनके साहित्य के प्रशंसक थे. निर्माता एसएच मुंशी थे, जबकि संगीत आरडी बर्मन ने दिया था. फिल्म की शूटिंग फारबिसगंज के भंटाबाड़ी में हो रही थी. जया भादुड़ी भी उनके साथ बतौर नायिका आयीं थीं. तब धर्मेंद्र और जया को एक स्थानीय होटल में ठहराया गया था, जबकि टीम के कई लोग डाकबंगला में पड़ाव डाले हुए थे.

धर्मेंद्र को देखने की ललक लोगों में ज्यादा थी. उनकी एक झलक पाने के लिए लोग तब बेताब हो जाते थे. यही वजह है कि धर्मेंद्र को चाहने वालों की भीड़ होटल से शूटिंग स्थल तक रहती थी. कुछ माह पहले अमिताभ बच्चन ने इसी फिल्म की पोस्टर से जया बच्चन (भादुड़ी) के फोटो को सोशल साइट्स पर शेयर किया था. हालांकि गलती से उन्होंने फिल्म डाग्दर बाबू को बांग्ला फिल्म बता दिया था.

एक झलक पाने को पेड़ पर चढ़ जाते थे लोग

उस दौर के कई लोग डाग्दर बाबू की शूटिंग को आज भी याद करते हैं. इसकी बानगी बयां करते हुए 75 वर्षीय राजू अग्रवाल कहते हैं कि तब वे ली अकादमी के छात्र थे और स्कूल का क्लास छोड़ कभी भंटाबाड़ी तो कभी भदेसर चले जाते थे.

उनके साथ पवन अग्रवाल, ओम प्रकाश समेत छात्रों का हुजूम भी हुआ करता था पर पुलिस करीब पहुंचने नहीं देती थी. श्री अग्रवाल बताते हैं कि जब इसकी शूटिंग हो रही थी तब धर्मेंद्र-जया को देखने आने वालों का तांता लगा रहता था. कई लोग पेड़ पर चढ़े होते थे तो करीब जाने की होड़ में कई को पुलिस के डंडे भी खाने पड़ते थे.

लाजवाब थी आरडी बर्मन की संगीत

नवेन्दु घोष के पुत्र और फिल्म निर्देशक शुभंकर घोष ने एक बार कहा था कि उस वक्त मैं एफटीआईआई में छात्र था और अपने पिता को असिस्ट करता था. “बाम्बे लैब में इस फिल्म के निगेटिव को रखा गया था. 80 के दशक में मुंबई में आयी बाढ़ में वहां रखा निगेटिव खराब हो गया. अब कुछ नहीं बचा है.” शूटिंग के दिनों को याद करते हुए शुभंकर घोष कहते हैं “काफी खूबसूरत कास्टिंग थी.

धर्मेंद्र, जया बच्चन, उत्पल दत्त, पद्मा खन्ना, काली बनर्जी इससे जुड़े थे. जब रेणु की जन्मभूमि फारबिसगंज में इसकी शूटिंग हो रही थी तब धर्मेंद्र-जया को देखने आने वालों का तांता लगा रहता था. वे कहते हैं कि इस फिल्म का संगीत लाजवाब था. नंद कुमार मुंशी जो इस फिल्म के निर्माता एसएच. मुंशी के पुत्र हैं, किसी तरह आरडी बर्मन के गीतों को संरक्षित करने में सहायता करें.

फिल्म में पंचम ने असाधारण संगीत दिया था, जो मुंशी परिवार के पास ही रह गया. यदि यह फिल्म बन के तैयार हो गयी होती तो हिंदी सिनेमा की थाती होती. मेरे पिता नवेंदु घोष और रेणु अच्छे दोस्त थे. ‘मैला आंचल’ की पॉकेट बुक की प्रति हमेशा अपने पास रखते थे और वर्षों तक उन्होंने उसकी पटकथा पर काम किया था.

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धर्मेंद्र की खूबसूरती और कला के दीवाने थे लोग

कथा शिल्पी फणीश्वरनाथ के पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय उर्फ पप्पू कहते हैं कि फिल्म के 13 रील तैयार हो गये थे. मायापुरी फिल्म पत्रिका में आने वाली फिल्म के सेक्शन में इस फिल्म का पोस्टर भी जारी किया गया था. काफी खूबसूरत कास्टिंग थी. धर्मेंद्र, जया बच्चन, उत्पल दत्त, पद्मा खन्ना, काली बनर्जी आदि इससे जुड़े थे. वे बताते हैं कि निर्माता और वितरक के बीच अनबन के चलते यह फिल्म डब्बे में बंद रह गयी. धर्मेंद्र की खूबसूरती और उनके अभिनय कला के लोग दीवाने थे. दीवानगी में ही करीब से हर कोई देखने को आतुर रहता था.

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