Bihar Election 2025: युवाओं को किसमें दिखी उम्मीद की किरण?
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार सिर्फ जाति नहीं, उम्र भी तय कर रही है सत्ता का समीकरण. आधी से अधिक आबादी 40 साल से कम उम्र की है और इन्हीं युवा मतदाताओं के मुद्दे भी बन रहे हैं इस चुनाव का एक्स फैक्टर.
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में माहौल कुछ बदला-बदला है. जहां पहले बिहार के चुनावों में जातिगत समीकरण और गठबंधन के गणित हावी रहते थे, वहीं इस बार चर्चा में हैं रोजगार, पलायन और युवाओं की उम्मीदें. राज्य की 12 करोड़ से अधिक आबादी में लगभग आधे लोग 40 साल से कम उम्र के हैं, यानी चुनावी अखाड़े में निर्णायक भूमिका अब जेन-जी निभा रहे हैं.
जेन-ज़ी वोटर- नई राजनीति का ट्रेंडसेटर
बिहार के नए मतदाताओं में बड़ी संख्या उन युवाओं की है जो सोशल मीडिया से प्रभावित हैं. वे जातीय राजनीति से ज़्यादा रोजगार, शिक्षा और जीवन-गुणवत्ता की बात करते हैं. इस वर्ग पर हर पार्टी की खास नजर है.
इनमें से अधिकतर मतदाता पहली बार वोट दे रहे हैं. उनके लिए ‘रोड शो’ या ‘घोषणापत्र’ से ज्यादा असरदार हैं डिजिटल कैंपेन और ऑनलाइन बहसें. राजनीतिक दल अब वाटसएप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर प्रचार में करोड़ों खर्च कर रहे हैं.
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रोजगार और पलायन बने चुनावी एजेंडा के केंद्र
बिहार चुनाव में सबसे अधिक गूंज ‘रोजगार’ और ‘पलायन’ की सुनाई दे रही है. महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव और सत्ताधारी एनडीए, दोनों ही युवा वोटरों को साधने की कोशिश में हैं.
तेजस्वी यादव हर रैली में ‘हर परिवार को सरकारी नौकरी’ देने का वादा दोहरा रहे हैं. उनके मुताबिक, “यह सिर्फ वादा नहीं, बिहार के युवाओं के भविष्य की गारंटी है.”
दूसरी ओर एनडीए ने अपने घोषणा पत्र में एक करोड़ रोजगार देने का दावा किया है, लेकिन विपक्ष इस वादे को “अस्पष्ट” बता रहा है.
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हर परिवार में एक नौकरी-तेजस्वी यादव का वादा
तेजस्वी यादव ने 2020 के चुनाव में भी 10 लाख नौकरियों का वादा किया था और उस समय यह मुद्दा बिहार की राजनीति में निर्णायक बना. अब 2025 में उन्होंने ‘हर परिवार में एक नौकरी’ का वादा कर राजनीतिक विमर्श को फिर से उसी दिशा में मोड़ दिया है.
तेजस्वी का यह वादा लोकलुभावन है, लेकिन इससे चुनावी फोकस निश्चित रूप से रोजगार की तरफ गया है. उन्होंने युवाओं की निराशा को राजनीतिक अवसर में बदला है. हालांकि, यह चुनौतीपूर्ण भी है. बिहार में करीब 1.25 करोड़ परिवार हैं. ऐसे में इतनी नौकरियों का सृजन पांच साल में करना वित्तीय और प्रशासनिक दृष्टि से कठिन है. विपक्ष इसे ‘सपनों का महल’ कह रहा है, जबकि तेजस्वी इसे ‘युवाओं की आकांक्षा’ बताते हैं.
एनडीए का जवाब- विकास और व्यावहारिकता
नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही इस मुद्दे को गंभीरता से उठा रहे हैं. प्रधानमंत्री ने हाल की रैलियों में कहा, “बिहार के युवाओं को अब पलायन नहीं करना पड़ेगा. राज्य में ही रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएंगे.”
नीतीश कुमार ने भी एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “युवाओं को रोजगार देना हमारी सरकार का मुख्य लक्ष्य है. अगले पांच वर्षों में एक करोड़ रोजगार सृजन की दिशा में काम करेंगे.” एनडीए की रणनीति यह दिखाने की है कि उनका वादा व्यावहारिक है और तेजस्वी का वादा सिर्फ भावनात्मक अपील. लेकिन दोनों ही पक्षों ने यह मान लिया है कि 2025 का चुनाव युवाओं के इर्द-गिर्द घूमेगा.
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पलायन: बिहार का सबसे गहरा जख्म
रोजगार की कमी के कारण पलायन बिहार के सामाजिक और भावनात्मक ढांचे को लगातार तोड़ रहा है. लाखों बिहारी युवा हर साल दिल्ली, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और खाड़ी देशों में काम की तलाश में निकल जाते हैं.
अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर कहते हैं, “पलायन अब सिर्फ आर्थिक मुद्दा नहीं रहा, यह सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित कर रहा है. परिवार टूट रहे हैं, गांव सूने हो रहे हैं. अगर यह चुनाव इस मुद्दे को केंद्र में ला सका, तो यह बिहार की राजनीति में सकारात्मक बदलाव होगा.”
तेजस्वी यादव और प्रशांत किशोर जैसे नेता इस मुद्दे को गहराई से उठा रहे हैं, जबकि एनडीए इसे विकास योजनाओं के जरिये संतुलित करने की कोशिश कर रहा है.
14 नवंबर को खबर लिखे जाने तक चुनाव परिणामों में NDA की जीत, यह सिद्ध करती है कि बिहार के युवाओं ने विकास के साथ वादों पर अधिक भरोसा जताया है. युवाओं ने नीतीश कुमार और नरेन्द्र मोदी को अधिक भरोसा जताया है.
