याद किये गये मौलाना अबुल कलाम आजाद
याद किये गये मौलाना अबुल कलाम आजाद
मधेपुरा. भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद की 158वीं जयंती सह राष्ट्रीय शिक्षा दिवस पर गुरुवार को विश्वविद्यालय शिक्षाशास्त्र विभाग व राष्ट्रीय सेवा योजना के संयुक्त तत्वावधान में शिक्षा-संवाद का आयोजन किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो सीपी सिंह ने की. कहा कि समाज व राष्ट्र की प्रगति शिक्षा पर निर्भर करती है. इसके लिए शिक्षा को राष्ट्र की जड़ों से तथा समाज-संस्कृति से जुड़ा होना चाहिये.
नई शिक्षा-व्यवस्था खड़ी करने की जरूरत
शिक्षाशास्त्र विभाग के प्रोफेसर इंचार्ज प्रो सीपी सिंह ने कहा कि मौलाना आजाद ने भारत की आजादी और स्वतंत्र भारत के नवनिर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. वे रामपुर (उत्तर प्रदेश) से भारत के प्रथम आम चुनाव (1952) में सांसद चुने गये और भारत के पहले शिक्षा मंत्री (1947-1958) बने. उन्होंने देश की शिक्षा-व्यवस्था को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने और भारत व भारतीयता के अनुरूप नई शिक्षा-व्यवस्था खड़ी करने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि मौलाना आजाद यह मानते थे कि समाज व राष्ट्र की प्रगति शिक्षा पर निर्भर करती है. इसके लिये शिक्षा को राष्ट्र की जड़ों से जुड़ा होना चाहिये. शिक्षा में अपने समाज व संस्कृति की मूल भावनाओं का समावेश होना चाहिये.
महान राजनीतिज्ञ थे मौलाना आजाद-
मुख्य अतिथि कुलानुशासक डॉ इम्तियाज अंजूम ने कहा कि मौलाना आजाद एक निर्भीक पत्रकार, बहुभाषाविद विद्वान व महान राजनीतिज्ञ थे. उन्हें दो-दो बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करने का अवसर मिला. वे पहले 1923 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष बने. फिर दूबारा 1940 से 1945 के बीच कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. उन्होंने बताया कि मौलाना आजाद महात्मा गांधी, सुभाषचंद्र बोस व जवाहरलाल नेहरू के अत्यंत करीबी थे. उन्होंने खिलाफत आंदोलन असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन में महती भूमिका निभायी.
प्रखर राष्ट्रभक्त थे मौलाना आजाद
विशिष्ट अतिथि क्रीड़ा व सांस्कृतिक परिषद के निदेशक प्रो अबुल फजल ने कहा कि मौलाना आजाद प्रखर राष्ट्रभक्त थे. वे अंग्रेजी सरकार को आम आदमी के शोषण के लिए जिम्मेदार मानते थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ थे. उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए दो अखबार निकाला.
उन्होंने बताया कि मौलाना आजाद आजीवन सांप्रदायिक राजनीति करने वाले नेताओं की मुखालफत करते थे. अन्य मुस्लिम नेताओं से अलग उन्होंने 1905 में बंगाल के विभाजन का विरोध किया व ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के अलगाववादी विचारधारा को खारिज कर दिया. वे प्रारंभ में कुछ दिनों तक क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे, लेकिन बाद में गांधीवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में योगदान दिया. वे हिंदू-मुस्लिम एकता को स्वराज से भी अधिक महत्वपूर्ण मानते थे.सम्मानित अतिथि परिसंपदा पदाधिकारी शंभू नारायण यादव ने कहा कि मौलाना आजाद देश को संपूर्णता में देखते थे. उन्होंने समाज के सभी वर्गों को शिक्षा से जोड़ने में महती भूमिका निभायी. मुख्य वक्ता उर्दू सलाहकार समिति के सदस्य डॉ फिरोज मंसूरी ने कहा कि मौलाना आजाद ने शिक्षा को वैज्ञानिक, लोकतांत्रिक व समावेशी बनाया. उनका शैक्षणिक दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक है. अतिथियों का स्वागत एनएसएस के कार्यक्रम समन्वयक डॉ सुधांशु शेखर ने कहा कि आधुनिक भारत के सभी महापुरुषों ने अपने-अपने तरीके से देश की आजादी व इसके नवनिर्माण में योगदान दिया है. इन महापुरुषों के जाति-धर्म, भाषा व विचारधारा अलग-अलग थी, लेकिन सबों का दिल एक था, जो हरपल देश के लिए धड़कता था.
कार्यक्रम का संचालन बीएड विभागाध्यक्ष डॉ सुशील कुमार ने किया. धन्यवाद ज्ञापन एमएड विभागाध्यक्ष डॉ एसपी सिंह ने की. इस अवसर पर डॉ सीडी यादव, डॉ राम सिंह यादव, डॉ माधुरी कुमारी, डॉ शैलेश यादव, डॉ संतोष कुमार, सौरभ कुमार चौहान, रूपेश कुमार, अंजली कुमारी, शिल्पी कुमारी, अंजली भारती, प्रिया पूजा, रवि कुमार, सुषमा कुमारी, प्रियंका कुमारी, प्रीति कुमारी, नेहा कुमारी, पूजा कुमारी, नीतू कुमारी, गरिमा कुमारी, ममता कुमारी, यिशुका, मनीष कुमार, कुणाल कुमार, मोहित कुमार, गुरु कृष्णा, रंजीत कुमार, यशवंत कुमार, कुंदन कुमार, अतुल अनुभव, मनमोहन कुमार, सोनी कुमारी, सौम्या कुमारी, गौरव कुमार, चंदन कुमार, पिंकू प्रिंस, प्रियांशु कुमारी आदि उपस्थित थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
