नहर की मरम्मत नहीं होने से बिचड़ा डालने से धान के पटवन तक छटपटायेंगे किसान
जिले में प्रमुख रूप से सिंचाई व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सोन नहर की किसी भी वितरणी की मरम्मत का कार्य सिंचाई विभाग द्वारा अब तक शुरू नहीं कराया गया है.
भभुआ. जिले में प्रमुख रूप से सिंचाई व्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले सोन नहर की किसी भी वितरणी की मरम्मत का कार्य सिंचाई विभाग द्वारा अब तक शुरू नहीं कराया गया है. नतीजा है कहीं गाद से वितरणियों की पेटी भरी है, तो कहीं तटबंध जर्जर होकर बिखर रहे हैं, तो कहीं होम पाइप टूटा हुआ है, तो कहीं सुरक्षा दीवार ही क्षतिग्रस्त है. गौरतलब है कि सोन उच्च स्तरीय नहर केनाल जिले के विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई की व्यवस्था की कमान संभाले हुए है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोन नहर से जिले के विभिन्न प्रखंडों में किसानों को टेल तक पानी देने के लिए करमा, अलिपुर, सूअरा आदि सहित साढ़े तीन दर्जन से ऊपर माइनर और वितरणियों का जाल बिछा हुआ है. लेकिन, समय से मरम्मत नहीं कराये जाने के कारण इन वितरणियों व माइनरों से किसानों को टेल तक पानी नहीं मिल पाता है और किसान फसल के पटवन को लेकर छटपटाने लगते हैं. नहर बांधे जाने लगते हैं, लाठियां तन जाती हैं और किसान मारपीट पर भी उतारू हो जाते हैं. बावजूद इसके अभी तक सोन नहर के किसी भी वितरणियों की मरम्मत का काम शुरू नहीं कराया जा सका है. जबकि यह काम खरीफ सीजन के पटवन के निर्धारित समय एक जून के पहले करा लिया जाना चाहिए. इधर, नहर के वितरणियों की मरम्मत नहीं कराने से बीहन डालने के समय नहर केनाल से लगे ऊपरी क्षेत्र के खेतों को तो पानी किसी तरह मिल जायेगा. लेकिन, निचले क्षेत्र के खेतों को पटवन के लिए पानी मिलने में काफी परेशानी का सामना करना पडेगा. सोन उच्च स्तरीय नहर की वितरणियों की मरम्मत नहीं कराये जाने के कारण कहीं वितरणियों की पेटी गाद से भर कर उथली हो गयी है, तो कहीं तटबंध टूट कर बिखर गये हैं, तो कहीं पाइप तो कहीं पुलिया क्षतिग्रस्त हो गया है. उदाहरण के लिए सूअरा बायें नहर के 13 किलो मीटर से लेकर लगभग 17 किलोमीटर तक इस नहर की पेटी गाद से भरकर टीला का शक्ल लेते जा रही है. यही नहीं नहर से लेकर तटबंध तक जंगल की तरह झाड़ियां उगी हैं. इसी तरह अलिपुर उपवितरणी के तीन किलोमीटर बायां बांध के आउटलेट पर पटवन करने वाला होम पाइप पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है. इससे किसानों के खेतों तक पानी जाना मुश्किल हो जायेगा. इसी तरह करमा वितरणी के शून्य किलोमीटर पर अवस्थित पुल जर्जर हो चुका है. इससे किसानों के लिए खेती का सामना नहर के इस पार से उस पार पहुंचाना मुसीबत का सबब बन जायेगा. इसी तरह लगभग डेढ़ दर्जन से ऊपर वितरणियों के तटबंध आदि के मरम्मत की आवश्यकता तत्काल है, ताकि किसानों को धान के सीजन में टेल तक पटवन का पानी मिल सके. गौरतलब है कि अभी इसी माह में किसान संगठन के नेता जिलाधिकारी को आवेदन देकर जर्जर नहर तटबंधों की मरम्मत कराने की मांग भी कर चुके हैं. इन्सेट एक सप्ताह बाद शुरू हो जायेगा खरीफ के खेती का सीजन भभुआ. खरीफ के सीजन की शुरूआत एक सप्ताह बाद शुरू हो जायेगी और किसान अपने खेती-बाड़ी के प्रबंधन में जुट जायेंगे. तब किसानों को बीहन डालने से लेकर धान की रोपनी करने तक पानी की जरूरत पडेगी. गौरतलब है कि 25 मई से रोहणी नक्षत्र शुरू होने वाला है और यह नक्षत्र धान के बीहन डालने का सर्वोत्म नक्षत्र माना जाता है. किसानों के अनुसार इस नक्षत्र में बीहन डालने से धान की पैदावार अच्छी होती है और बीहन पुष्ट होते हैं. हालांकि, सोन उच्च स्तरीय नहर के खरीफ सीजन की शुरूआत एक जून से होती है. क्योंकि, रोहणी नक्षत्र के प्रथम सप्ताह में किसान बीज डालने के बजाया नौ दिन के लिए नवताप मनाते हैं और नक्षत्र के 10 वें दिन से खेतों में बीज पड़ने लगते हैं. क्या कहते हैं कार्यपालक अभियंता इधर, इस संबंध में जब सोन उच्च स्तरीय नहर केनाल के कार्यपालक अभियंता हरिनाथ बैठा से बात की गयी, तो उन्होंने बताया कि सरकार को सोन नहर के 21 वितरणियों की मरम्मत का प्रस्ताव और प्राक्कलन भेजा जा चुका है. इसमें से पांच वितरणियों की मरम्मत का निर्देश दिया गया है. लेकिन, अभी तक इन पांच वितरणियों की मरम्मत को लेकर प्रशासनिक स्वीकृति विभाग को नहीं प्राप्त हुई है. इससे इन पांच वितरणियों का काम भी शुरू नहीं कराया गया है. क्या कहते हैं किसान इधर, किसान नेता विमलेश पांडेय सहित भैरोपुर के किसान संजय सिंह, गोबरछ गांव के किसान संतोष कुमार आदि का कहना है कि हर वर्ष खरीफ के सीजन के पूर्व सोन मुख्य नहर से लेकर वितरणियों के माइनरों की मरम्मत के काम कोरम विभाग द्वारा पूरा कराया जाता है. बावजूद इसके किसानों को टेल तक पानी नहीं मिल पाता है. किसानों के अनुसार माइनरों की मरम्मत ठीक से नहीं कराया जाती है, न तो माइनर के पेटियों में उगी झाड़ियों और गाद की सफाई ही ठीक से होती है, जिसके कारण जब भारी वर्षा होती है तो माइनरों के तटबंध टूट जाते हैं और जब पानी नहीं बरसता तो मुख्य नहर से छोड़े जाने वाले कम पानी की मात्रा को माइनरों के पेटियों में उगी झाड़ियां और घास सोख लेती हैं. पानी को आगे नहीं जाने देती हैं. इससे टेल क्षेत्र के किसानों को पटवन के अहम मौके पर माइनरों का पानी नहीं मिल पाता है. ..जिले में सोन नहर की किसी भी वितरणी की मरम्मत का कार्य अब तक नहीं हुआ शुरू = कहीं गाद से भरी पड़ी है वितरणी की पेटी, तो कहीं टूट कर बिखरे हैं तटबंध किसान संगठन के नेताओं ने आवेदन देकर नहर तटबंधों की मरम्मत कराने की मांग की
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