जमुई-बरहट में गीतों ने बदली चुनावी हवा, चर्चा में रही सुरों की जंग
इस बार जमुई-बरहट की चुनाव रैलियों, नारों और परंपरागत वादों से आगे निकल गया. पूरा मुकाबला चुनावी गानों की धुन पर सियासी रंग में रंगता दिखा.
बरहट. इस बार जमुई-बरहट की चुनाव रैलियों, नारों और परंपरागत वादों से आगे निकल गया. पूरा मुकाबला चुनावी गानों की धुन पर सियासी रंग में रंगता दिखा. प्रचार का यह नया हथियार इतना असरदार रहा कि इसका जिक्र खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भोजपुर की रैली में कर दिया. विपक्ष के गीतों पर तंज कसते हुए पीएम ने मंच से कहा कि एक अउर गाना चल रहा है…मारब सिक्सर के, छ गोली छाती में…. उनके इस बयान के बाद चुनावी गीतों की सियासत और भी गरमा गयी. एनडीए हो या महागठबंधन, दोनों खेमों ने अपने-अपने सुरों से माहौल को झकझोरने में कोई कसर नहीं छोड़ी. एनडीए की ओर से भोजपुरी स्टार पवन सिंह स्टार प्रचारक बने रहे. मोदी-नीतीश जी के जोड़ी हिट होइया जैसे गानों ने सभाओं में भीड़ को खूब लुभाया. वहीं भाजपा सांसद मनोज तिवारी का लोकप्रिय गीत हां जी, हम बिहारी हैं, संस्कारी हैं युवाओं के बीच जमकर वायरल रहा और चुनावी हवा को अपने पक्ष में करने की कोशिशें तेज हुईं. उधर महागठबंधन की ओर से भी सुर-ताल की जमकर मारामारी दिखी. राजद सरकार बनतो याद… सब रंगदार बनतो, मजनुआं हम आरजेडी लभर हो और भैया के आवे दे सत्ता में… जैसी गीत दुर्गापूजा, दीपावली और छठ तक के समारोहों में गूंजते रहे. गांव-गली और बाजारों में इन गीतों की धुन से माहौल लगातार तपता रहा. हालांकि, सुरों का यह शोर विवादों से भी अछूता नहीं रहा. कई गीतों को लेकर स्थानीय राजनीतिक हलकों में नाराजगी देखी गयी. चर्चा रही कि कुछ आपत्तिजनक और उग्र गीतों ने मतदाताओं पर नकारात्मक असर डाला. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार ऐसे गीतों से राजद के परंपरागत वोट बैंक में खामोश नाराजगी देखी गयी, जिससे कई क्षेत्रों में मतदाताओं का रुख प्रभावित हुआ.
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