दो परिवार के बीच से नहीं निकल सकी चकाई की सीट
चकाई विधानसभा सीट का नेतृत्व दो परिवार के बीच रहने की लगातार चर्चा और कभी-कभी तीसरे विकल्प को लेकर उठती आवाज के बावजूद एक बार पुनः यह सीट कथित दो परिवार से अलग न हो सका.
नरेंद्र सिंह और फाल्गुनी प्रसाद यादव के परिवार का ही रहा है प्रतिनिधित्व
सोनो. चकाई विधानसभा सीट का नेतृत्व दो परिवार के बीच रहने की लगातार चर्चा और कभी-कभी तीसरे विकल्प को लेकर उठती आवाज के बावजूद एक बार पुनः यह सीट कथित दो परिवार से अलग न हो सका. दशकों से चकाई विधानसभा क्षेत्र का नेतृत्व नरेंद्र सिंह और फाल्गुनी प्रसाद यादव के हाथ में रहा है. इससे पूर्व कई बार चकाई विस सीट पर दो परिवार के दबदबे को चुनौती देने की तैयारी हुई, लेकिन सफलता किसी को नहीं मिली. बिहार के सबसे अंतिम विधानसभा सीट के रूप में पहचान रखने वाले इस 243 चकाई विधानसभा सीट हमेशा से चर्चा में रहता है. यहां प्रायः दो परिवार का ही प्रतिनिधित्व रहा है. फिर नरेंद्र सिंह और फाल्गुनी प्रसाद यादव के परिवारों ने इस सीट पर बारी-बारी से कब्जा जमाया है. बीते 2020 में नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित कुमार सिंह निर्दलीय चुनाव जीते थे और बिहार का एकमात्र निर्दलीय विधायक बने थे. वे वर्ष 2010 में भी यहां से चुनाव जीत चुके थे. इससे पूर्व सावित्री देवी 2015 में यहां से चुनाव जीती थी. अब इस वर्ष 2025 में एक बार पुनः सावित्री देवी सुमित सिंह को शिकस्त देकर नेतृत्व अपने हाथ में ली है. हालांकि चकाई सीट को इन दो परिवारों के दबदबे से निकालने के लिए हर बार तीसरे विकल्प का प्रयास होता है, लेकिन सफलता नहीं मिल पाता है. बीते दो चुनाव से संजय प्रसाद तीसरे विकल्प के रूप में खूब मेहनत कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे. चकाई विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1962 में हुआ. तब यह सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित थी. सोशलिस्ट पार्टी के लखन मुर्मू ने कांग्रेस के भागवत मुर्मू को 2,404 वोटों से हराकर पहली बार विधायक बनने का गौरव हासिल किया. इसके बाद 1967 में यह सीट सामान्य हो गयी और यहीं से शुरू हुई दो परिवारों की लंबी सियासी जंग.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
