गया में इस दिन मनेगी पितृ दीपावली, यहां जानिए पितरों के साथ क्या है इसका कनेक्शन

Pitru Paksh 2025: बिहार के गया में इन दिनों विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. मेले के 15वें दिन आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु नदी में स्नान और दूध का तर्पण करने का विशेष महत्व है. इस साल त्रयोदशी तिथी 19 सितंबर को पड़ रही है. इसी दीन यहां पितृ दवाली मनाई जाएगी.

By Rani Thakur | September 18, 2025 3:01 PM

Pitru Paksh 2025: बिहार के गया में इन दिनों विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. इस मेले में लाखों तीर्थयात्री अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध और तर्पण कर रहे हैं. बताया गया है कि मेले के 15वें दिन आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को फल्गु नदी में स्नान और दूध का तर्पण करने का विशेष महत्व है. इस साल त्रयोदशी तिथी 19 सितंबर को पड़ रही है. इसी दीन यहां पितृ दवाली मनाई जाएगी. मान्यता है कि पितृ दिवाली से पितरों के स्वर्ग जाने का रास्ता खुल जाता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पितरों का मार्ग हो जाता है प्रकाशमय

मिली जानकारी के अनुसार पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि की शाम को विष्णुपद फल्गु नदी के किनारे देवघाट पर पितृ दीपावली मनाने की परंपरा है. इस विशेष मौके पर पितरों के लिए दीप जलाए जाते हैं, जिससे उनका मार्ग प्रकाशमय होता है. इस दौरान तीर्थयात्री अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार 1000, 500 , 365 या 108 दीप जलाकर अपने पितरों के प्रति सम्मान और श्रद्धा व्यक्त करते हैं. कहा जाता है कि ऐसा करने से पितरों को यमलोक से सीधे स्वर्गलोक में पहुंचने का आशीर्वाद मिलता है.

56 किस्म के भोग चढ़ाने की परंपरा  

बता दें कि इस पितृ दीपावली को लेकर विष्णुपद मंदिर, देवघाट और फल्गु नदी पर बने रबर डैम को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है. साथ ही विष्णुपद मंदिर को आकर्षक रोशनी से आलोकित किया जाता है और देवघाट पर परिजन घी के दीपक जलाकर वातावरण को आध्यात्मिक बना देते हैं. इस मौके पर विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में 56 किस्म के भोग अर्पित करने की भी परंपरा निभाई जाती है.

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खीर खिलाने की परंपरा

कहा जाता है कि आश्विन कृष्ण त्रयोदशी को यमराज अपने लोक को खाली कर सभी पितरों को पृथ्वी लोक पर भेज देते हैं. मान्यता है कि उस दिन पितर भूख और प्यास से व्याकुल होकर अपने परिजनों से खीर की कामना करते हैं. इसी कारण से इस दिन ब्राह्मणों को खीर खिलाकर पितरों को तृप्त करने और उन्हें मोक्ष दिलाने की परंपरा पूरी की जाती है.

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