भारी वाहनों से टूटी टुड़ीगंज-कोरानसराय जानेवाली सड़क

ग्रामीण इलाकों की सड़कों को गांवों की जीवनरेखा कहा जाता है. इन्हीं रास्तों से किसानों की फसल बाजार तक पहुंचती है.

By AMLESH PRASAD | December 29, 2025 10:09 PM

कृष्णाब्रह्म. ग्रामीण इलाकों की सड़कों को गांवों की जीवनरेखा कहा जाता है. इन्हीं रास्तों से किसानों की फसल बाजार तक पहुंचती है, छात्र स्कूल जाते हैं, मरीज अस्पताल तक पहुंच पाते हैं और आम लोगों का रोजमर्रा का जीवन चलता है. लेकिन जब यही सड़कें अपनी क्षमता से अधिक बोझ उठाने को मजबूर कर दी जाएं, तो विकास की यह जीवनरेखा धीरे धीरे संकट की तस्वीर बन जाती है. कुछ ऐसा ही हाल इन दिनों टुड़ीगंज से कोरानसराय को जोड़ने वाली लगभग 12 किलोमीटर लंबी ग्रामीण सड़क का हो गया है. बताया जाता है कि यह सड़क मूल रूप से ग्रामीण आवागमन को ध्यान में रखकर बनायी गयी थी. हल्के और मध्यम वाहनों के लिए तैयार इस मार्ग पर इन दिनों भारी वाहनों का दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है. दिन के उजाले में ही ओवरलोड ट्रक, बालू लदे डंपर और अन्य भारी वाहन बेधड़क इस सड़क से गुजर रहे है. नतीजा यह है कि सड़क कई जगहों पर पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी है. कहीं गड्ढे उभर आए हैं, तो कहीं सड़क की परतें उखड़ चुकी है. कुछ हिस्सों में तो सड़क का स्वरूप पहचानना भी मुश्किल हो गया है. स्थानीय लोगों का कहना है कि भारी और क्षमता से अधिक वजन वाले वाहनों की वजह से सड़क की हालत दिन प्रतिदिन बदतर होती जा रही है. जिस सड़क से कभी सफर सुगम हुआ करता था, आज उसी रास्ते से गुजरना जोखिम भरा हो गया है. खासकर दोपहिया और छोटे चारपहिया वाहन चालकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कोहरे के समय यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है, जब गड्ढों का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाता है. सिर्फ सड़क ही नहीं, बल्कि यातायात व्यवस्था भी बुरी तरह प्रभावित हो रही है. टुड़ीगंज और कृष्णाब्रह्म क्षेत्र में आए दिन घंटों जाम की स्थिति बन रही है. भारी वाहनों के आमने सामने फंस जाने से सड़क पूरी तरह अवरुद्ध हो जाती है. ऐसे में छोटे वाहन, ऑटो, बाइक सवार और स्कूल बसें घंटों फंसी रहती है. सबसे ज्यादा असर स्कूली बच्चों और रोजमर्रा के यात्रियों पर पड़ रहा है, जिन्हें समय पर अपने गंतव्य तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है. ग्रामीणों का कहना है कि जाम की वजह से आपात स्थितियों में भी भारी दिक्कतें सामने आ रही है. किसी मरीज को अस्पताल ले जाना हो या किसी जरूरी काम से बाहर निकलना हो, सड़क की यह बदहाल स्थिति लोगों की चिंता बढ़ा रही है. कई बार तो लोग वैकल्पिक कच्चे रास्तों का सहारा लेने को मजबूर हो जाते हैं, जिससे दुर्घटनाओं का खतरा और बढ़ जाता है. इस पूरे मामले में ग्रामीणों का कहना है कि निगरानी और नियंत्रण की व्यवस्था कहीं न कहीं कमजोर नजर आ रही है. ग्रामीण सड़कों पर भारी वाहनों के प्रवेश को लेकर स्पष्ट नियम हैं, लेकिन उनका प्रभावी पालन जमीन पर कम ही दिखता है. ओवरलोड वाहनों की जांच, वजन नियंत्रण और समयबद्ध निगरानी जैसी व्यवस्थाएं कागजों में तो मौजूद हैं, लेकिन व्यवहार में इनका असर सीमित प्रतीत होता है. स्थानीय लोगों का मानना है कि यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह सड़क पूरी तरह जर्जर हो सकती है. टुड़ीगंज कोरानसराय सड़क की मौजूदा हालत ग्रामीण बुनियादी ढांचे की एक गंभीर तस्वीर पेश करती है. यह सिर्फ एक सड़क की कहानी नहीं, बल्कि उन चुनौतियों का संकेत है, जो ग्रामीण विकास के रास्ते में तब खड़ी हो जाती हैं जब नियोजन और निगरानी में ढील रह जाती है.

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