बिहार में किसान ने उपजाया मैजिक चावल, अब गैस सिलिंडर की झंझट खत्म…बस ठंडे पानी में डालो निकालो और खा लो

Bihar news: बिहार के बेतिया में एक किसान ने रंग-बिरंगा धान की फसल को उपजाया है. किसान का दावा है कि इस चावल को पकाने के लिए गर्म पानी की जरूरत नहीं पड़ती है. यह चावल ठंडे पानी में भात बनकर तैयार हो जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 25, 2022 4:56 PM

Bihar news: बिहार के बेतिया में एक किसान ने रंग-बिरंगा मैजिक चावल को उपजाया है. किसान ने दावा किया है कि औषधिय गुणों से भरपूर यह चावल को उबालने की जरूरत नहीं पड़ती है. खाने से चंद मिनट पहले बस इसे ठंडे पानी में भिगों कर रखे और कुछ ही मिनट बाद भात बनकर तैयार हो जाता है. इस मैजिक चावल को नरकटियागंज प्रखंड के एक किसान कमलेश चौबे ने सफलता पूर्वक उपजाया है.

खायें भात…ठीक हो जाते हैं कई असाध्य बीमारी

किसान कमलेश चौबे ने दावा किया कि हमने ऐसे क्वालिटी का धान उपजाया है. जो ठंडे पानी में भी पक जाता है. यह चावल इतना फायदेमंद है किस इसके सेवन से कई तरह के असाध्य बीमारी भी ठीक हो जाते हैं. हालांकि यह केवल किसान का दावा है. किसान के मुताबिक धान का रंग देखने में धान सत रंगी है. इस धान से निकले चावल को उबालने की जरूरत नहीं पड़ती, न ही उसे गैस पर पकाने की. ये चावल ठंडे पानी में पक कर तैयार हो जाता है.

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200 से 250 रुपये प्रति किलो तक बिकता है चावल

बता दें कि इस मैजिक चावल को नरकटियागंज प्रखंड अंतर्गत मुशहरवा गांव के एक किसान कमलेश चौबे उपजाते हैं. किसान कमलेश चौबे ने बताया कि वे यहां धान के विभिन्न किस्मों की खेती जैविक तरीके से करते हैं. इस धान को उपजाने में वे किसी तरह का रासायनिक उवर्रकों का प्रयोग नहीं करते हैं. किसान ने दावा करते हुए कहा कि यह ऐसा धान है जिसे आपको उबालने की जरूरत नहीं पड़ेगी. बिल्कुल ठंडे पानी में बस चावल को धोकर डालिये और महज कुछ देर बाद चावल से भात बनकर तैयार हो जाएगा. किसान ने बताया यह औषधिय चावल काला, लाल और हरे रंग का होता है. चावल औषधिय गुणों से भरपूर होता है. बाजार में इस चावल की कीमत 200 से 250 रुपये प्रति किलो तक है.

विभिन्न किस्म के चावल के लिए मशहूर है बिहार

गौरतलब है कि धान बिहार की प्रमुख फसल है. धान की परंपरागत किस्में तो हैं ही, इससे अलग सुगंधित किस्मों की ओर भी आकर्षण तेजी से बढ़ा है. यही कारण है कि अलग-अलग स्वाद के कारण न सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी यहां के उत्पाद की मांग बढ़ी है. इससे तैयार चावल की मांग देश के महानगरों तक है.

जैसे कैमूर और रोहतास में मुख्य रूप से सोनाचूर धान का उत्पादन किया जा रहा है. जबकि चंपारण के खेतों में उत्पादित मिरचइया की डिमांड विदेशों तक है. इसके अलावे भागलपुर के कतरनी चावल की मांग विदेश में भी है। यह चावल नेपाल, भूटान और मालदीव के साथी ही स्विट्जरलैंड, अमेरिका और सऊदी अरब तक जाने लगा है. जबकि कैमूर जिले के मोकरी गांव में उपजने वाले गोविंद भोग चावल की भी खूब मांग है. यही चावल अयोध्‍या के कुछ मंदिरों में भोग लगाने में भी इस्‍तेमाल होता है.

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