Aurangabad News : विपरीत परिस्थितियों का मुकाबला कर बनीं अपराजिता

Aurangabad News:विभिन्न क्षेत्रों से अपनी प्रतिभा के दम पर उपस्थिति दर्जा करा रहीं 10 ''अपराजिताओं'' को मंच पर शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया

By AMIT KUMAR SINGH_PT | April 28, 2025 10:26 PM

औरंगाबाद शहर. समारोह में विभिन्न क्षेत्रों से अपनी प्रतिभा के दम पर उपस्थिति दर्जा करा रहीं 10 ””अपराजिताओं”” को मंच पर शॉल और प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया. इनमें शिक्षिका, सामाजिक कार्यकर्ता, उद्यमी, स्वास्थ्य क्षेत्र की कर्मवीर महिलाएं, ग्रामीण क्षेत्र से आयीं सशक्त महिलाएं और अन्य प्रेरणास्रोत शख्सियत शामिल थीं. ये सभी महिलाएं समाज के उन तबकों से आती हैं, जहां संघर्ष रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है. बावजूद इसके, उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी सफलता से यह साबित कर दिया कि यदि संकल्प मजबूत हो तो कोई भी बाधा राह नहीं रोक सकती. इन अपराजिताओं के संघर्ष की कहानी सुनकर समारोह में उपस्थित दर्शकों की आंखों में सम्मान का सैलाब उमड़ पड़ा. सम्मानित की गयीं अपराजिताओं के चेहरों पर चमक और मुस्कान ने यह बता दिया कि संघर्षों का सफर चाहे कितना भी कठिन क्यों न हो, जीत अंततः उसी की होती है जो हार नहीं मानती है.

डेयरी के क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रही वंदना, मुर्गी व मछली पालन भी किया शुरू

बारुण के मौआर खैरा निवासी वंदना मौआर ने अपनी मेहनत की बदौलत डेयरी के क्षेत्र में अलग पहचान कायम की है. उनके पति ई मुकेश मौआर दिल्ली में कार्य करते थे. कंपनी में कार्य करते समय शेयर बाजार से जुड़े जहां लाखों का नुकसान हुआ. शेयर बाजार में लाखों रुपये डूबने के बाद आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा. इस क्रम में वंदना ने 2011 के दिसंबर माह में छह गाय रखकर छोटे स्तर पर लेकर डेयरी का काम शरू की. इसमें अच्छी आमदनी होने पर धीरे-धीरे गो-पालन का क्षेत्र बढ़ाती रही. 2014-15 तक गाय की सख्या तकरीबन 30 से 40 हो गयी. इसके बाद पति भी दिल्ली से काम छोड़कर घर आ गये और दोनों ने मिलकर गो-पालन शुरू किया. वर्तमान में 70 से अधिक गायें हैं तथा 600 लीटर दूध प्रतिदिन होता है. डेयरी के क्षेत्र में पीएनबी, कृषि विश्वविद्यालय सबौर व गव्य विकास विभाग के तहत प्रशिक्षण प्राप्त की है. कृषि विज्ञान केंद्र, सिरिस द्वारा छात्रों को प्रशिक्षण के दौरान इनके डेयरी फार्म पर प्रशिक्षण भी दी जाती है. दूध की बिक्री के लिए औरंगाबाद में दो दुकान रखी हैं. इसके साथ ही छह माह पहले मुर्गी पालन शुरू किया है, जहां 3000 चूजा डालकर मुर्गी पालन करने की व्यवस्था है. इतना ही नहीं मछली पालन करने के लिए पांच बीघा जमीन में तालाब की खुदाई भी शुरू कराया है. खुद के साथ साथ 16 लोगों को रोजगार भी दे रही है. बेहतर कार्य के लिए सरकारी स्तर से कई बार सम्मानित किया गया है. राज्यपाल द्वारा भी सम्मान मिली है.

संगीत के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर डिंपल भूमि ने बनायी पहचान

अंबा की रहने वाली डिंपल भूमि अपनी सुरीली आवाज से संगीत के क्षेत्र में पूरे देश में अपनी पहचान बना चुकी हैं. महुआ चैनल डीडी बिहार समेत कई चैनल में काम कर चुकी है. एक दर्जन से अधिक एलबम में अपना स्वर देने वाले डिंपल देश के विभिन्न राज्यों में अपनी मधुर आवाज से तालियां बटोरी है. डिंपल की एल्बम अगले जनमिया में निमिया हो जईती तथा बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का एलबम भी काफी लोकप्रिय रहा है. विभिन्न चैनल पर भी अपनी प्रस्तुति देकर नाम कमाया है. डिंपल को बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में काफी लगाव था. हालांकि, ग्रामीण परिवेश में रहने के कारण संगीत के क्षेत्र में कार्य करने पर कई लोगों ने आपत्ति जताई, परंतु लोगों की परवाह किए बगैर डिंपल लगातार अपनी कमयाबी के क्षेत्र में आगे बढ़ती रही. इसमें पिता अरुण पांडेय का भरपूर सहयोग मिला. राज्यस्तरीय युवा महोत्सव की विजेता रह चुकी है. इसके साथ ही राजकीय स्तर पर कई बार अलग-अलग सम्मान से डिंपल को सम्मानित किया गया. पिछले बार सितंबर महीने में डिंपल को दिल्ली में इंडियन आइकन अवार्ड से सम्मानित हुई. सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्वच्छता अभियान में डिंपल को औरंगाबाद जिले का ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया गया था.

मां की बनी सहारा, पिता का कराया इलाज, खुद आइटीबीपी में नीलिमा कर रहीं ट्रेनिंग

कुटुंबा प्रखंड अंतर्गत बेदौलिया गांव की नीलिमा कुमारी का जीवन बचपन से ही संघर्षपूर्ण रहा है. तीन बहनों में सबसे बड़ी नीलिमा जब छोटी थी तभी बीमार रहने के कारण पिता ने काम करना छोड़ दिया. तब मात्र सातवीं पास मां निर्मला देवी नन्हे मुन्ने प्ले क्लास के बच्चों को पढ़ा कर अपने तीनों बेटियों का पालन पोषण करने लगी. उन्हें शिक्षित बनाने का प्रयास किया. मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद नीलिमा भी आसपास में छोटे-छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर मां की सहारा बनी और पिता का इलाज करना भी शुरू किया. इलाज के दौरान 2021 में पता चला कि उसके पिता को कैंसर है. इसके बावजूद भी विचलित नहीं हुई और लगातार इलाज करते रही. इस क्रम में कई बार ऐसे दौर भी आये जब पिता अस्पताल में भर्ती थे, परंतु इलाज करने के लिए एक भी पैसे नहीं थे. तब समाज के कुछ लोगों ने भी मदद पहुंचाया. हालांकि, कई लोगों ने यह भी कहा कि कैंसर अंतिम स्टेज में होने के कारण इलाज कराने से कोई फायदा नहीं है, परंतु हिम्मत नहीं हारी और बड़े अस्पतालों में लगातार इलाज करते रही. इस क्रम में खुद की पढ़ाई भी जारी रखा और अपनी छोटी बहनों को भी पढ़ाया. पिछले वर्ष अप्रैल माह में पिता का निधन हो गया, परंतु नीलिमा संघर्ष को चुनौती के रूप में लेते हुए मेहनत जारी रखी और उसका चयन आइटीबीपी में हुआ. जिसका प्रशिक्षण हरियाणा में चल रहा है और अब देश के लिए सेवा करेगी.

कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में बेहतर शिक्षा प्रदान कर कमाया नाम

15 -16 वर्ष पहले जब लोग बेटियों को पढ़ने के लिए भी घर से बाहर जाने देना नहीं चाहते थे. ऐसे समय में वर्ष 2009 में कुटुंबा की निशा कुमारी का चयन कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय कुटुंबा में हुआ. रात में विद्यालय में ही रुकना पड़ा. इसके लिए घर के लोगों ने भी मना किया और आसपास के लोगों ने भी कई तरह की बातें कहीं. वर्ष 2010 में शादी हुई तो ससुराल के लोगों ने भी रात में विद्यालय में रहने से मना किया. परंतु सभी को विश्वास में लेते हुए निशा ने अपना कार्य शुरू रखा. धीरे-धीरे घर परिवार का सहयोग भी मिलना शुरू हुआ. जब कस्तूरबा गांधी विद्यालय में चयन हुआ तो स्कूल में मात्र 31 बालिकाएं विद्यालय आई थी पर वे भी रात्रि में नहीं रुकती थी. इसके लिए उनके अभिभावकों के साथ बैठक उन्हें बालिकाओं को विद्यालय में ही रहने देने के लिए प्रेरित किया तथा सुदूर ग्रामीण इलाका में जाकर लोगों से मिली इसी से नामांकन बढ़कर 100 तक पहुंची. लगातार 2023 तक कस्तूरबा गांधी विद्यालय कुटुंबा में पढ़ती रही. जहां से पढ़ कर कई बालिकाओं ने अलग-अलग क्षेत्र में कामयाबी हासिल की. इस क्रम में अपना भी पढ़ाई जारी रखा और 2024 में बीपीएससी की परीक्षा पास कर हाई स्कूल की शिक्षिका बनी. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में बेहतर संचालन का अनुभव को देखते हुए निशा को कस्तूरबा गांधी बालिका उच्च विद्यालय बारूण में प्रतिनियुक्त कर दिया, जहां बेहतर संचालन में अपनी भूमिका निभा रही है.

संगीत के क्षेत्र में परचम लहरा रहीं हेमा पांडेय

कुटुंबा प्रखंड अंतर्गत रामपुर गांव के उदय पांडेय की पुत्री हेमा पांडेय संगीत के क्षेत्र में बेहतर कामयाबी हासिल किया है. हेमा को बचपन से ही संगीत के क्षेत्र में काफी रुचि थी. महज 13 वर्ष की उम्र से ही उसने गीत संगीत के क्षेत्र में कार्य करना शुरू किया. इस क्रम में कपिलदेव संगीत महाविद्यालय से संगीत के क्षेत्र में स्नातक एवं बीएड की पढ़ाई की. हेमा ने बताया कि पिता के साथ-साथ चर्चित लोकगीत गायिका डिंपल दीदी एवं उनके पिता अरुण का काफी सहयोग मिला. हालांकि, संगीत के क्षेत्र में कार्य करने पर समाज में कई तरह के उपहास भी किये गये. लोग तरह-तरह की बातें करते रहे, जिससे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इसके बावजूद भी हौसला मजबूत कर निरंतर अपना कार्य जारी रखी. आज विभिन्न कार्यक्रमों में बेहतर प्रदर्शन कर तालियां बटोर रही हैं. बिहार के साथ-साथ झारखंड, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में भी कई कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दी है. इसके लिए जगह-जगह पर दर्जनों बार सम्मानित हुईं है.

छात्राओं को आत्मरक्षा का गुर सीखा रहीं अदिति

कुटुंबा प्रखंड अंतर्गत करमडिह की अदिति मार्शल आर्ट के क्षेत्र में बालिकाओं को ट्रेनिंग देकर आत्मरक्षा की गुरु सीख रही है. घर में आर्थिक तंगी होने के कारण अदिति ने कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय कुटुंबा में रहकर आठवीं तक पढ़ाई की, जहां अन्य बच्चियों के साथ उसे मार्शल ऑफ आर्ट का ट्रेनिंग दिया गया. इस क्रम में बेहतर करने पर ट्रेनिंग देने वाली संस्था द्वारा छठी कक्षा में पढाई के दौरान ही आदिति को ट्रेनर के रूप में चयन किया गया. खुद छठी कक्षा में पढ़ते समय उसने मिडिल स्कूल सुही में बालिकाओं को कराटा का ट्रेनिंग दिया. इसके बाद सातवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान मिडिल स्कूल ओरडिह में तथा आठवीं कक्षा में पढ़ाई के दौरान मिडिल स्कूल कुटुंबा में बालिकाओं को ट्रेनिंग दी. इसके बाद से लगातार अलग-अलग विद्यालय में बालिकाओं को ट्रेनिंग दे रही है. इसके लिए आदित्य को प्रति विद्यालय 18000 रुपये प्रोत्साहन राशि मिलता है, जिससे अपनी पढ़ाई करती है. आदिति मार्शल आर्ट के क्षेत्र में बीपीएड कर रही हैं.

डिजिटल क्रांति की अग्रदूत बनीं उद्यमी प्रियांशु रानी

जिले के ओबरा की रहने वालीं प्रियांशु रानी पांडेय एक युवा और उभरती हुई उद्यमी हैं. वह छात्र-छात्राओं को नि:शुल्क कंप्यूटर व विज्ञान व तकनीक की शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ उन्हें आइटी इनोवेशन के लिए तैयार कर रही हैं. त्रिवेणी स्टडी सर्किल के बैनर तले वो टॉप 20 कार्यक्रम चला रही हैं जिसके तहत वो ऑनलाइन प्लेटफार्म के जरिये 20 युवाओं व युवतियों को चयनित कर उन्हें मुफ्त शिक्षा दे रही हैं. साथ ही नेक्सेस बाइट टेक्नोलॉजी के साथ डिजिटल दुनिया में वेब डेवलपमेंट व वेब डिजाइनिंग के क्षेत्र में स्टार्टअप कर रही हैं. प्रियांशु कंप्यूटर साइंस से स्नातकोत्तर हैं. साथ ही कुशल फ्रॉनटेंड डेवलपर हैं. आइटी व कंप्यूटर एप्लीकेशन के क्षेत्र में नोएडा, हरिद्वार व अन्य जगह पर काम करने के बाद नौकरी छोड़कर उन्होंने अपना स्टार्टअप करने का मन बनाया. महज साल भर में उनकी टीम में 12 लोग जुड़ चुके हैं.

लोगों की सेवा में जुटीं हैं डॉ अंकिता मगध

दाउदनगर शहर के सुक बाजार निवासी डॉ अंकिता मगध अपनी प्रतिभा के बल पर एक चिकित्सक के रूप में दाउदनगर एवं औरंगाबाद जिले को गौरवान्वित कर रही हैं. ये वर्तमान में दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में चिकित्सक हैं. जब भी समय मिलता है तो वे औरंगाबाद जिले और दाउदनगर क्षेत्र में समाज सेवा में लग जाती हैं. गरीबों के इलाज के लिए खुद को समर्पित करती हैं. इन्होंने 10वीं तक की शिक्षा देहरादून और 12वीं तक की शिक्षा दाउदनगर में ग्रहण की है.

मॉडल पंचायत की मुखिया अमृता की है अलग पहचान

अमृता कुमारी दाउदनगर प्रखंड के ग्राम पंचायत शमशेरनगर की मुखिया है. लगातार दो बार से जनता की सेवा कर रही है. इनके पंचायत को हितैषी ग्राम पंचायत के तहत मॉडल ग्राम पंचायत के रूप में चयन किया गया है. पंचायत में विकास योजनाओं को मूर्त रूप देने के लिए इन्हें जाना जाता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दिल्ली में केंद्र सरकार द्वारा दिये गये प्रशिक्षण में औरंगाबाद जिले से एकमात्र महिला मुखिया थी. इनके बेहतर कार्यों को देखते हुए इन्हे सम्मानित किया गया था. समाजसेविका के तौर पर इनकी अधिक पहचान है.

बेहतर कार्य के लिए सम्मानित हुई हैं केएम सरिता

दाऊदनगर के जिनोरिया हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की केएम सरिता बेहतर कार्य के लिए कई बार सम्मानित हुई हैं. सबसे अधिक ओपीडी करने वाले सेंटर के रूप में जिला स्तर पर सम्मान मिला है. बेहतर कार्य के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर जिलास्तर पर और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र स्तर पर दो बार सम्मानित हुईं. अपने क्षेत्र में लगातार स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता अभियान चलाती हैं और ग्रामीण महिलाओं को जागरूक करने का काम करती हैं.

स्वास्थ्य के क्षेत्र में रुमा कर रहीं काम

ओबरा की रुमा ऊर्फ रॉनी स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर काम करो रही हैं. लगातार वे रक्त दान भी करती हैं और जरूरतमंदों की जान बचाने में मदद कर रही हैं. रुमा का यह कारवां लगातार जारी है और लोगों की सेवा करो रही हैं.

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