Aurangabad News : कचरा फेंके जाने से बतरे नदी के अस्तित्व पर संकट
अ Aurangabad News: भियान चलाकर बतरे नदी को सरंक्षित करने की जरूरत, खुले में कूड़ा-कचरा फेंके जाने से महामारी फैलने की आशंका
औरंगाबाद/कुटुंबा. प्रकृति ईश्वर स्वरचित अद्भुत कलाकृति है. नदी, पहाड़, बाग-बगीचे ये सब प्रकृति सौंदर्य के अंग है. नदियां प्रकृति को जीवित रखने में सहायक सिद्ध होती है. यहां तक कि प्रकृति मनुष्य के साथ-साथ अन्य जीव जंतुओ के लिए आवश्यक संसाधन प्रदान करती है. नदियां परिस्थिति तंत्र का एक अहम हिस्सा के साथ जल श्रोत भी है. वैदिक काल से हीं नदियों का संबंध प्रकृति के साथ चली आ रही है. यहां तक कि पर्यावरण संरक्षण से लेकर जलवायु परिवर्तन व खनिज संपदा के लिए नदियों का महत्व रहा है. कालातंर में औधोगिकरण, शहरीकरण के दौरान मनुष्य द्वारा नदियों के वजूद के साथ छेड़-छाड़ करने का भरपूर प्रयास किया गया है. हालांकि, सभ्यता के विकास में नदियों से मनुष्य को बहुत कुछ सीख मिला है. आज निजी स्वार्थ में पड़कर लोग नदियों का संतुलन बिगाड़ रहे हैं, जो भावी पीढ़ी के लिए शुभ संकेत नहीं है. इसका ज्वलंत उदाहरण अंबा के बतरे नदी देखने को मिल रहा है. उक्त नदी में अंबा बाजार के विभिन्न मुहल्ले का कूड़ा-कचरा फेंका जा रहा है. यहां तक कि मछली मार्केट के सड़े-गले मांस मुर्गा का पंख आदि नदी में हीं डाला जा रहा है. फिलहाल की स्थिति यह है कि कूड़े-कचरे के अंबार होने से आधे से अधिक नदी पूरी तरह से पट गई है. जबकि कचरा प्रबंधन के लिए सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है. इसके लिए वार्ड स्तर पर नागरिकों के बीच जागरूकता अभियान भी जलाया जा रहा है. इसके बावजूद भी लोगो पर इस बात का असर नहीं पड़ रहा है. जिले में स्वच्छता प्रबंधन पर बार बार प्रश्न चिन्ह लगते आ रहा है. योजना की राशि कहां और किस मद में खर्च हो रहा इसका पता नही चल पा रहा है.
खुले में कचरा फेंके जाने से महामारी फैलने की आशंका
अंबा के बतरे नदी में फेंके जा रहे कचरों से महामारी फैलने की आशंका है. स्वच्छता के लिए काम कर रही समिति एवं इससे जुड़े अधिकारियों से इस बात की जानकारी ली जानी चाहिए कि स्वच्छता के लिए आ रही सरकारी राशि कहां खर्च की जा रही है. आम नागरिकों की मानें तो स्वच्छता की राशि की बंदरबांट की जा रही है. जब कचरे का फैलाव हर पंचायत में देखा जा रहा है तो फिर कहां स्वच्छता है और क्यों न इसकी जांच होती है. जानकारी के अनुसार राज्य के शहरी अथवा ग्रामीण क्षेत्र में ठोस और तरल अपशिष्ट कचरा प्रबंधन के लिए लोहिया स्वच्छ बिहार अभियान चलाया गया है. राज्य के 8053 ग्राम पंचायतों के एक लाख नौ हजार 332 वार्डों से कचरा उठाव की बात सरकार कह चुकी है. पंचायती राज विभाग द्वारा हर वार्ड में ठोस व तरल कचरा उठाव की व्यवस्था की तैयारी है. गांव में भी शहर की भांति साफ रखने और उसके परिवहन की व्यवस्था की गयी है. अभी तक राज्य भर में गांवों से कचरा उठाव और परिवहन के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर 5584 इ-रिक्शा और 76345 पैडल रिक्शा का उपयोग किया जा रहा है.ठोस कचरा का समुचित निष्पादन के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर अपशिष्ट प्रसंस्करण इकाई का निर्माण किया जा रहा है.राज्य में अभी तक 4018 ग्राम पंचायतों में वेस्ट प्रॉसेसिंग यूनिट का निर्माण हुआ है.
बुद्धिजीवियों को आगे आने की आयी बारी
नदी के अस्तित्व की सुरक्षा व कचरा प्रबंधन के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के साथ-साथ प्रतिनिधियों व बुद्धिजीवियों को आगे आने की बारी आयी है. ग्रामीण इलाके में प्लास्टिक फेंके जाने खेतों को नुकसान हो रहा है. भूमि की उर्वरा शक्ति क्लीन हो रही है. भूमि जल ऑब्जर्वर नहीं कर पा रहा है. विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्लास्टिक अपशिष्ट के निपटारा के लिए प्रखंड व अनुमंडल स्तर पर अब तक 133 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन निर्माण केंद्र का निर्माण किया गया है. इन सब के बावजूद औरंगाबाद जिले के विभिन्न पंचायतों में उपरोक्त हवा हवाई साबित हो रही है.विदित हो कि अंबा नवीनगर पथ स्थित बतरे नदी में फेंके गए कचरे के बदबू से सड़ांध बदबू निकल रहा है.सड़क से गुजरने वाले यात्री नाक पर हाथ रखकर उक्त पथ से आवागमन करते है.क्या बताते हैं मौसम विशेषज्ञ
मौसम वैज्ञानिक डॉ अनूप कुमार चौबे ने बताया कि नदियां प्रकृति की चिर सहचरी रही है. भारतीय संस्कृति में सदियों से प्रकृति की पूजा होती आयी है. मनुष्य हीं नहीं अन्य जीव जंतुओं का संबंध ईश्वर की कलाकृति प्रकृति से रही है. प्रकृति परिवर्तन का नियम शाश्वत सत्य है. अगर धरती से नदी के वजूद समाप्त होता है तो मनुष्य का भी अस्तित्व मिट जायेगा. उन्होंने बताया कि एक अभियान चलाकर नदियों को संरक्षित करने की जरूरत है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
