Bihar News: बिहार में अनजान बच्चे कर रहे नशा का कारोबार, सेफ जोन बना सीमांचल का यह रेलवे स्टेशन
Bihar News: बिहार में बचपन नशे की आगोश में समाता जा रहा है. सीमांचल में यह समस्या गंभीर रूप ले चुकी है. अररिया रेलवे स्टेशन परिसर इन बच्चों के लिए सेफ जोन बन गया है. बथनाहा-जोगबनी रेलवे स्टेशन पर अनजान बच्चों की झुंड दिख जायेगी. ये कहां से आये हैं, कौन हैं किसी को पता नहीं है.
मुख्य बातें
Bihar News: अररिया.विनय ठाकुर. बथनाहा रेलवे स्टेशन क्षेत्र इन दिनों नशेड़ियों के कब्जे में नजर आ रहा है. इसके अलावा कुछ सच्चाई खौफनाक भी है, पढ़ाई से दूर पेट की भूख मिटाने के लिए रेलवे स्टेशनों पर नशे की गिरफ्त में अनेको बच्चे हैं. बथनाहा स्टेशन पर गुरुवार को 10-12 साल का एक बच्चा सुलेसन सूंघते हुआ पाया गया, तभी बथनाहा रेल अधिक्षक राहुल कुमार की नजर पड़ी, जीआरपीएफ के जवान के साथ बच्चे का पॉकेट की तलाशी की गई तो प्लास्टिक, सुलेशन का रैपर व एक बाइक की भी चाबी निकली. हालांकि सजा के तौर पर जवान ने उस बच्चे को कान पकड़कर उठक-बैठक करा कर तो छोड़ दिया.
उड़ता पंजाब की ओर अग्रसर बिहार
बीते दिनों एक युवक नशे की हालत में बथनाहा रेलवे परिसर में नकली बंदूक की नोक पर राहगिरों से रुपये छीन रहा था, तभी मौजूद लोगों ने युवक को पकड़कर बथनाहा रेलवे के हवाले कर दिया था. ऐसे मामले लगभग प्रतिदिन ही देखने को मिल रहे हैं, ऐसे में अगर जागरुकता को लेकर सख्त कदम नहीं उठाये गये तो अररिया का सीमावर्ती क्षेत्र अब उड़ता पंजाब की ओर अग्रसर हो चुका है. यह सिर्फ अपराध को बढ़ावा नहीं दे रहा है, बल्कि अपराधियों को भी जन्म दे रहा है.
पढ़ाई की उम्र में ले रहे हैं अपराध की ट्रेनिंग
जिस उम्र में इनके हाथों में पेंसिल-किताब होनी चाहिए, उस उम्र में यह अपने हाथों में नशीले पदार्थ लेकर सूंघते रहते है. यह बच्चे अपने पेट के आग को बुझाने के अलावे अपने नशे कि आदत को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक पहुंच जाते हैं. यही नहीं कुछ अराजक तत्वों के संपर्क में आकर ना सिर्फ ये नशे के आदी हो रहे हैं, बल्कि अपराध करने से भी नहीं चूकते हैं. कई बार बथनाहा क्षेत्र में ऐसी घटनाएं भी सामने आती है जब ये मासूम बच्चे अपने आकाओं के इशारे पर संगीन अपराध करने से भी नहीं चूकते हैं.
पुलिस की इनपर नहीं पड़ती नजर
24 घंटे स्टेशन पर लोगों की सुरक्षा में तैनात रेलवे पुलिस की भी इनपर नजर नहीं पड़ती है, या फिर वे इनको इनकी तकदीर पर छोड़ देते हैं. यह बच्चे खुलेआम स्टेशन की सीढ़ियां प्लेट फॉर्म पर बैठकर नशा करने में मस्त रहते हैं, भूख लगने पर यात्रियों से खाना मांगकर अपना पेट भर लेते हैं, अगर खाने को नहीं मिला तो फिर ये ट्रेनों में चोरियां करने या अंधेरे में यात्री का सामान छीनकर भागने में भी गुरेज नहीं करते हैं. कई बार पकड़े जाते हैं लेकिन, पुलिस भी बच्चा जान कर छोटी-मोटी सजा देकर छोड़ देती है.
कहां से आये ये बच्चे
स्टेशन पर ये बच्चे कहां से आए इसके बारे में किसी को पता नहीं है. बच्चों को भी अपना घर नहीं पता, लेकिन स्टेशन का नाम खूब पता है. पूछने पर बताते हैं कि यही मेरा घर है व हम हमेशा यहीं रहते हैं. राज्य के हर जिलों में बच्चों के हित के लिए कार्यरत सरकारी सहायता समूहों की भी इन बच्चों पर नजर नहीं पड़ती है. लावारिश बच्चों के हित के लिए सरकार से भारी रकम लेने वाली चाइल्ड लाइन जैसी संस्थाएं इन बच्चों के बेहतरी के सवाल पर मौन हैं.
कैसे करते हैं अपने नशा की पूर्ति
रेलवे स्टेशन पर यात्रियों द्वारा फेंके गये बोतलों को चुनने का काम व उन्हीं बोतलों में फिर पानी भर कर ट्रेन में यात्रियों को बेचने का काम करते हैं, लेकिन इस बात की परवाह वहां मौजूद प्रशासन के लोगों को नहीं है और तो और जिम्मेदार भी यही कहते हैं कि आखिर हम करें तो करें, जब हमारी टीम ने रेलवे स्टेशन पर नशा कर रहें बच्चे से पूछा कि तुम ये क्या कर रहे हो तो उसने कहा कि हम सुलेसन पी रहे हैं व सुलेसन हम बहुत दिन से पी रहे है व एक दिन में हम 8-10 सुलेसन पी जाते है. बच्चों ने बताया कि ये 40 रुपये का आता है हम लोग इसे दुकान से खरीद कर लाते है.
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