बाथे नरसंहार:फैसले के खिलाफ बिहार सरकार जायेगी सुप्रीम कोर्ट
जिस नरसंहार को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने राष्ट्रीय शर्म कहा था और जिससे पूरा देश हिल गया था, उसके सभी अभियुक्तों को पटना हाइकोर्ट ने बरी कर दिया. कोर्ट ने सवाल उठाये और कहा कि सुनी-सुनायी बात पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती. लेकिन, बाथे के पीड़ितों का सवाल है कि आखिर […]
जिस नरसंहार को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने राष्ट्रीय शर्म कहा था और जिससे पूरा देश हिल गया था, उसके सभी अभियुक्तों को पटना हाइकोर्ट ने बरी कर दिया. कोर्ट ने सवाल उठाये और कहा कि सुनी-सुनायी बात पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती. लेकिन, बाथे के पीड़ितों का सवाल है कि आखिर हत्या किसने की?
पटना:लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार मामले में आये फैसले के खिलाफ बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जायेगी. गौरतलब है कि पटना हाइकोर्ट ने लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार के 26 अभियुक्तों को दोषमुक्त करार देते हुए निचली अदालत द्वारा दी गयी सजा से बरी कर दिया है. न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा और न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके लाल के खंडपीठ ने लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार मामले की सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया.
खंडपीठ ने कहा कि सिर्फ सुनी-सुनायी बातों के आधार पर एफआइआर दर्ज की गयी है. ऐसी एफआइआर के आधार पर किसी को अभियुक्त करार देते हुए सजा नहीं सुनायी जा सकती. खंडपीठ ने कहा कि निचली अदालत में पुलिस ने कोई ठोस साक्ष्य नहीं प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर फांसी व उम्रकैद की सजा सुनायी जा सके. इस मामले में खंडपीठ द्वारा 27 जुलाई को सुनवाई की गयी थी और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पटना हाइकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी थी.
अरवल जिले में सोन के किनारे बसे इस गांव में एक दिसंबर, 1997 को प्रतिबंधित संगठन रणवीर सेना के सदस्यों ने 59 दलितों की हत्या कर दी थी. मृतकों में 26 महिलाएं व 15 बच्चे थे. रणवीर सेना ने ग्रामीणों पर माओवादी होने का आरोप लगाया था.
इस नरसंहार को 1992 में माओवादी संगठन द्वारा गया जिले के बारा गांव में किये गये नरसंहार के बदले के रूप में पेश किया गया था. बारा नरसंहार में 37 लोगों की हत्या कर दी गयी थी. लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार की शुरू में सुनवाई जहानाबाद कोर्ट में की जा रही थी, जिसे पटना हाइकोर्ट के निर्देश के बाद 1999 में पटना सिविल कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था. सात अप्रैल, 2010 को पटना सिविल कोर्ट के अपर न्यायिक दंडाधिकारी विजय कुमार मिश्र ने 16 अभियुक्तों को फांसी की सजा एवं 10 अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. तब उन्होंने इस मामले को रेयर ऑफ द रेयरेस्ट करार दिया था. सुनवाई के दौरान 46 अभियुक्तों के खिलाफ पुलिस ने चाजर्शीट दाखिल की थी. मामले में 117 गवाहों की गवाही करायी गयी थी.
इधर, पुलिस मुख्यालय के सूत्रों के अनुसार हाइकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार के काउंसिंल से संपर्क किया गया और उनसे रायशुमारी की गयी. दूसरी ओर पुलिस मुख्यालय के आलाधिकारियों ने विमर्श किया. अपील के पूर्व इस प्रस्ताव को राज्य सरकार की सहमति के लिए भेजा जायेगा.
निचली अदालत ने जघन्य कांड माना था
पटना के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (प्रथम) विजय प्रकाश मिश्र ने सात अप्रैल, 2010 को 16 अभियुक्तों को फांसी और दस को आजीवन कारावास की सजा सुनायी थी. अदालत ने 19 को निदरेष करार दिया था. मामले में 91 लोगों ने गवाही दी थी.
अदालत ने अपने फैसले में कहाथा, इस घटना में आठ से 10 साल से भी कम उम्र के बच्चों की हत्या की गयी. ऐसे में अदालत इसजघन्य हत्याकांडमें सजा देने के मामले में कोई कोताही नहीं बरतेगा.निचली अदालत के फैसले को गिरिजा सिंह एवं अन्य ने हाइकोर्ट में चुनौती दी थी.
48 पर चाजर्शीट हुआ था
बाथे कांड के दूसरे दिन दो दिसंबर, 1997 को मेहंदिया थाने में 26 नामजद और 125 अज्ञात के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी. अनुसंधान के बाद 48 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किये गये और 16 अभियुक्तों को फरार बताया गया. निचली अदालत का फैसला आने तक दो अभियुक्तों की मौत हो गयी.
तो मेरे परिवार को किसने मारा
अरवल: बुधवार की शाम लक्ष्मणपुर बाथे का 16 साल पुराना जख्म फिर से हरा हो गया. गांव में बने स्मारक के सामने खड़े विनोद पासवान को 30 नवंबर-एक दिसंबर, 1997 की वह रात याद आयी, जब रणवीर सेना ने गांव पर हमला किया था. इस घटना में विनोद के चार भाई, दो बहन एवं मां मारी गयी थीं. उनका सीधा सवाल है, सभी बरी हो गये, तो इस जनसंहार का दोषी कौन है? आखिर हमारे परिवार की हत्या करने वाले कौन लोग थे? विनोद कुमार ने ही महेंदिया थाने में कांड
सं0- 126/97 के तहत दो दिसंबर को प्राथमिकी दर्ज करायी थी. कुल 49 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया था. बुधवार को कोर्ट का फैसला आया,तो पीड़ित परिवार स्मारक के पास जुटे. सबके चेहरे बुङो हुए. हर चेहरे पर आश्चर्य का भाव. विनोद का गुस्सा सीधा पुलिस प्रशासन व सरकार के प्रति है. वह कहते हैं, हमने प्राथमिकी दर्ज करायी थी. कोर्ट में जाकर गवाही दी. न्याय के लिए लगातार लड़ते रहे. लेकिन, हाइकोर्ट से सभी अभियुक्त बरी हो गये. हम अंतिम दम तक कातिलों को सजा दिलाने के लिए लड़ते रहेंगे और इस फैसले के खिलाफ ऊपरी न्यायालय में जायेंगे. बौद्ध पासवान कहते हैं कि आरोपितों को सजा नहीं मिली, तो इसमें सरकार दोषी है.
नरसंहार में मारे गये लक्ष्मण राजवंशी के परिवार हाइकोर्ट के फैसला आने के बाद पूरी तरह सहमे हुए हैं. उनका कहना है कि कातिल जेल से छूट कर आयेंगे, तो वे फिर हमें निशाना बनायेंगे. रणवीर सेना के हमले में बच गये महेश कुमार कहते हैं कि घटना के समय हम छह वर्ष के थे. उनके परिवार के कुल छह लोग मारे गये थे. आखिर हमारे बहन, चाची, भाई, दादी, की हत्या किसने की. सिकंदर कुमार कहते हैं कि हमलोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ने के लिए जायेंगे.
सोये दलितों पर बरसीं गोलियां
अजय कुमार
लक्ष्मणपुर बाथे की दलित बस्ती में खून अभी सूख भी नहीं पाया था. हम दो दिसंबर, 1997 की दोपहर गांव में थे. हर झोंपड़ी से दहाड़ मारने की आवाज आ रही थी. किसी का पति मारा गया था, तो किसी का बेटा-बेटी. कई बच्चे अनाथ हो गये थे. इस गांव पर हुए रणवीर सेना के हमले में कुल 59 लोग मारे गये थे. तीन साल के बच्चे से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक. मरनेवालों में 26 महिलाएं थीं. कई मांएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने अपने मासूम बच्चों को गोद में छिपा लिया था. लेकिन, हमलावरों ने उन्हें भी खत्म कर दिया. तब यह गांव जहानाबाद जिले का हिस्सा था. दलित संहार के बाद 2001 में अरवल को जिला बनाया गया. बाथे अब अरवल का हिस्सा है.
गांव के एक किनारे से सोन की धारा गुजरती है. सभी लोग बता रहे थे कि हमलावर सोन होते हुए गांव में पहुंचे थे. पांच मछुआरों को सोन के किनारे ही मार दिया गया. कुछ हमलावर दूसरी दिशा से गोलियां तड़तड़ाते हुए धमक आये थे. जाड़े का दिन था. हमला रात में हुआ. दलित बस्ती के लोग खा-पीकर सो रहे थे. हमला तीन तरफ से हुआ. माटी के खोभाड़नुमा घर थे. दरवाजे के नाम पर अलंग का ऐसा इंतजाम कि धक्का देने से ही वह गिर जाये. हमलावर सीधे आंगन में उतर आये थे और वहां से घरों में घुस गये थे.
बाथे गांव के निकसार में एक विशाल पीपल का पेड़ है. कई लक-दक खादी पहने नेता जमा थे. वे आश्वासन दे रहे थे. कह रहे थे कि हम न्याय दिलायेंगे. किसी भी हमलावर को नहीं छोड़ेंगे. दलित परिवारों के लोग उन्हें जतन से सुन रहे थे. वे हमलावरों के बारे में बता रहे थे. वे कह रहे थे कि गोलियों की बौछार करनेवाले रणवीर सेना जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे. हमारा कसूर क्या था? उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं था.
गांव में आरा, पटना, जहानाबाद की पुलिस पहुंच गयी थी. वह मारे गये लोगों की गिनती कर रही थी. उसके हिसाब से छह बच्चियां, नौ बच्चे, 26 महिलाएं और 18 पुरुष मारे गये थे. गांव के लोग बता रहे थे कि बगल के भोजपुर जिले में माले और रणवीर के बीच लड़ाई छिड़ी हुई है. रणवीर सेना वाले गरीबों को सबक सिखाना चाहते थे कि वे हक-अधिकार की बात न करें.
इन नरसंहारों के भी सभी अभियुक्त हो चुके हैं बरी
मियांपुर नरसंहार
16 जून, 2000 को हुई थी 32 लोगों की हत्या
20 सितंबर, 2007 : औरंगाबाद एससी/एसटी स्पेशल कोर्ट ने 2007 में सभी 10 अभियुक्तों को सुनायी थी उम्रकैद की सजा
03 जुलाई 2013 : हाइकोर्ट ने 10 अभियुक्तों में से 9 को बरी कर दिया था. एक अभियुक्त अविनाश चंद्र शर्मा की सजा बरकरार रखी थी
बथानी टोला नरसंहार
11 जुलाई, 1996 : 21 गरीबों की हत्या
12 मई, 2010 : आरा कोर्ट ने तीन अभियुक्तों को फांसी और 20 अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा सुनायी. अन्य आरोपित बरी
16 अप्रैल, 2012 : हाइकोर्ट ने सजायफ्ता सभी 23 अभियुक्तों को बरी कर दिया
नगरी नरसंहार
11 नवंबर, 1998 : 10 माले समर्थकों की हत्या
13 अगस्त, 2010 : आरा कोर्ट से तीन अभियुक्तों को फांसी व आठ अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा
01 मार्च, 2013 : हाइकोर्ट ने सभी सजायफ्ता 11 अभियुक्तों को बरी कर दिया.
