आधा भारत नहीं जानता DRS का पूरा नाम, जान गए तो गली क्रिकेट में भी आएगा काम
DRS in Cricket: क्रिकेट के खेल में यूं तो कई नियम हैं जो खेल को और बेहतर बनाने के लिए बनाए गए हैं. दरअसल क्रिकेट में अंपायर के फैसलों को लेकर कई बार खिलाड़ियों में नाराजगी रहती है. इसी के चलते कई बार मैदान पर विवाद भी हो जाता है. ऐसे में ही अंपायर के फैसलों के लिए एक नियम लाया गया जिसका नाम है ‘UDRS’ (Umpire Decision Review System) इस नियम के आने बदल गई क्रिकेट की तस्वीर.
DRS In Cricket: क्रिकेट के खेल में वर्षों से विवादित अंपायरिंग फैसले खिलाड़ियों, टीमों और फैंस के बीच बहस का विषय रहे हैं. लेकिन अब समय बदल चुका है. तकनीक ने मैदान में प्रवेश कर लिया है और अंपायरिंग फैसलों की सटीकता को सुनिश्चित करने के लिए ‘DRS’ यानी ‘डिसीजन रिव्यू सिस्टम’ (Decision Review System) का इस्तेमाल किया जाने लगा है. DRS का उद्देश्य यही है कि फील्ड अंपायर के किसी गलत निर्णय को तकनीकी विश्लेषण के जरिए सुधारा जा सके, जिससे खेल अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी हो.
डीआरएस ने क्रिकेट में निर्णय लेने की प्रक्रिया को क्रांतिकारी रूप से बदल दिया है. चाहे वह एलबीडब्ल्यू का मामला हो या कैच को लेकर संशय, अब खिलाड़ी अंपायर के फैसले को चुनौती देकर तकनीक के सहारे न्याय की मांग कर सकते हैं.
क्या है DRS और कैसे होता है इसका इस्तेमाल?
DRS यानी Decision Review System एक तकनीकी प्रणाली है, जिसका प्रयोग क्रिकेट में फील्ड अंपायर के निर्णय की समीक्षा करने के लिए किया जाता है. जब किसी बल्लेबाज को आउट दिया जाता है (या नॉट आउट), और वह उस निर्णय से संतुष्ट नहीं होता, तो वह कप्तान से सलाह लेकर अंपायर के फैसले की समीक्षा की मांग कर सकता है.
गली क्रिकेट के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल करना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि इसके लिए कई प्रकार के आधुनिक उपकरणों की जरूरत होती है. साथ ही कई विशेषज्ञों को इसका उपयोग करना होता है. जिसके कारण लगी क्रिकेट में इस तकनीक को इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है. लेकिन अगर आप किसी लोकल टूर्नामेंट का आयोजन कर रहे हैं और आपको अपने टूर्नामेंट को एक प्रोफेशनल क्रिकेटर के तरह दिखाना है और आपके पास इसके उपयोग के लिए पैसे हैं तो आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं.
DRS में शामिल मुख्य तकनीकें होती हैं:
- हॉक-आई (Hawk-Eye): यह बॉल ट्रैकिंग तकनीक है जो दिखाती है कि गेंद स्टंप्स को हिट कर रही थी या नहीं.
- अल्ट्रा एज या स्निकोमीटर: यह कैच और एज की स्थिति में यह जांचता है कि बल्ले और गेंद के बीच संपर्क हुआ या नहीं.
- हॉटस्पॉट: यह इंफ्रारेड तकनीक है, जो बल्ले और गेंद के संपर्क को तापीय इमेज के रूप में दर्शाती है.
- रियल टाइम स्निको: यह लाइव वीडियो और ऑडियो का विश्लेषण करता है, जिससे यह पता चलता है कि गेंद और बल्ले में संपर्क हुआ या नहीं.
जब कोई खिलाड़ी DRS लेता है, तो थर्ड अंपायर उपरोक्त तकनीकों के ज़रिए पूरे घटनाक्रम की समीक्षा करता है और फिर यह तय करता है कि फील्ड अंपायर का फैसला सही था या नहीं.
DRS लेने की प्रक्रिया:
- खिलाड़ी को फील्ड अंपायर के निर्णय के 15 सेकंड के भीतर रिव्यू की मांग करनी होती है.
- कप्तान या खिलाड़ी दोनों हाथों से ‘टी’ (T) का संकेत देकर रिव्यू मांग सकते हैं.
- थर्ड अंपायर तकनीकी साधनों का उपयोग कर निर्णय को सत्यापित करता है.
- यदि फील्ड अंपायर का फैसला गलत पाया जाता है, तो निर्णय पलट दिया जाता है, अन्यथा वही फैसला बरकरार रहता है.
क्रिकेट में DRS क्यों लाया गया?
DRS की शुरुआत क्रिकेट में 2008 में हुई थी, जब इसका पहला प्रयोग भारत और श्रीलंका के बीच टेस्ट सीरीज में किया गया था. उस समय इसका प्रयोग प्रयोगात्मक था, लेकिन धीरे-धीरे इसके उपयोग को आईसीसी ने मान्यता दी और अब यह लगभग सभी अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में अनिवार्य हो चुका है.
DRS लाने के कई कारण थे, जिसमें सबसे बड़ा कारण था अंपायर के गलत फैसले से विवाद होना. दरअसल अंपायर भी इंसान होते हैं और उनसे गलती हो सकती है. DRS ऐसी ही गलतियों को सुधारने का मौका देता है. इसके अलावा खेल की निष्पक्षता को भी बढानें के लिए DRS को क्रिकेट में लाया गया. इससे खिलाड़ियों को यह अधिकार मिलता है कि वे फैसले पर सवाल उठा सकें, जिससे खेल निष्पक्ष बनता है.
डीआरएस को क्रिकेट में लाने के और बड़ा करण यह भी है कि अंपायर के गलत फैसले के कारण फैंस को भी खेल में कम रुचि रहने लगी, कई बार फैंस को ये भी लगता है कि अंपायर ने जानबूझकर गलत फैसला लिया है. लेकिन अब DRS से दर्शकों का भरोसा बढ गया है. जब तकनीक से फैसले लिए जाते हैं, तो दर्शकों का भरोसा बढ़ता है और विवाद कम होते हैं.
टेस्ट क्रिकेट में कितने रिव्यू की मिलते हैं?
एक टेस्ट मैच में दोनों टीमों की चार पारियों में आधिकतम 12 रिव्यू मिलते हैं. जिसमें हर एक पारी में एक टीम के पास तीन रिव्यू होते हैं. अगर कोई रिव्यू सफल रहता है (यानी निर्णय पलटा जाता है), तो वह रिव्यू बरकरार रहता है और घटता नहीं है. वहीं, यदि रिव्यू असफल होता है, तो वह एक रिव्यू की गिनती में चला जाता है.
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