Kanyadaan: क्यों माना गया है कन्यादान को सबसे बड़ा पुण्य? जानें धार्मिक रहस्य
Kanyadaan: हिंदू धर्म में कन्यादान को महादान कहा गया है, यानी सबसे बड़ा दान. शास्त्रों के अनुसार, यह दान न केवल सामाजिक परंपरा है, बल्कि आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत पवित्र कर्म है. आइए जानें क्यों कन्यादान को शास्त्रों में सर्वोच्च पुण्य माना गया है.
Kanyadaan: हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में सबसे महत्वपूर्ण माना गया है, और इस विवाह संस्कार में ‘कन्यादान’ का विशेष स्थान है. शास्त्रों के अनुसार, कन्यादान को महादान कहा गया है, जिसका अर्थ है सबसे बड़ा दान. इसके पीछे कई धार्मिक और आध्यात्मिक कारण बताए गए हैं.
कन्यादान क्यों है श्रेष्ठ दान?
हिंदू धर्मग्रंथों में कन्यादान को मोक्ष प्रदान करने वाला कर्म माना गया है. जब पिता अपनी कन्या का दान करता है, तो वह अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु समर्पित करता है. यह निस्वार्थ भाव से किया गया दान माना जाता है, जिसमें बदले में कोई अपेक्षा नहीं होती. यही कारण है कि इसे महादान की उपाधि दी गई है.
पौराणिक मान्यता
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कन्यादान करने से पूर्वजों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही, यह दान करने वाला परिवार सात पीढ़ियों तक पुण्य का भागीदार बनता है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि कन्यादान करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है.
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आध्यात्मिक दृष्टि से महत्व
कन्यादान सिर्फ एक धार्मिक कर्म नहीं है, बल्कि यह प्रेम, विश्वास और जिम्मेदारी का प्रतीक है. इस संस्कार में माता-पिता अपनी कन्या को नए जीवन के लिए आशीर्वाद देते हैं और एक पवित्र बंधन की नींव रखते हैं. इसी कारण, शास्त्रों में कन्यादान को सबसे बड़ा और सर्वोच्च पुण्य बताया गया है.
