Apara Ekadashi 2023: आज रखा जा रहा है अपरा एकादशी का व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

Apara Ekadashi 2023: अपरा एकादशी अजला और अपरा दो नामों से जानी जाती है. इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा का विधान है. अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है. इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है.

By Shaurya Punj | May 15, 2023 8:41 AM

Apara Ekadashi 2023:  इस साल अपरा एकादशी आज यानी 15 मई 2023 को है. इसे अचला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. अपरा एकादशी व्रत धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण व्रत है.  अपरा एकादशी अजला और अपरा दो नामों से जानी जाती है. इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा का विधान है. अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है. इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है. वहीं मनुष्य को ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिल जाती है. इस दिन तुलसी, चंदन, कपूर, गंगाजल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए.

अपरा एकादशी 2023 मुहूर्त

पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि की शुरुआत 15 मई 2023 को प्रात: 02 बजकर 46 मिनट हो रही  है. अगले दिन ये तिथि 16 मई 2023 को प्रात: 01 बजकर 03 मिनट पर समाप्त होगी. 15 मई को उदया तिथि प्राप्त हो रही है, इसलिए इसी दिन अपरा एकादशी व्रत रखा जाएगा.  

अपरा एकादशी व्रत पूजा विधि

अपरा एकादशी का व्रत करने से लोग पापों से मुक्ति पाकर भवसागर से तर जाते हैं. इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1.  अपरा एकादशी से एक दिन पूर्व यानि दशमी के दिन शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए. रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए.
2.  एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्ण का पूजन करना चाहिए. पूजन में तुलसी, चंदन, गंगाजल और फल का प्रसाद अर्पित करना चाहिए.
3.  व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस दिन छल-कपट, बुराई और झूठ नहीं बोलना चाहिए. इस दिन चावल खाने की भी मनाही होती है.
4.  विष्णुसहस्रनाम का पाठ करना चाहिए. एकादशी पर जो व्यक्ति विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है.

अपरा एकादशी व्रत का महत्व

पुराणों में अपरा एकादशी का बड़ा महत्व बताया गया है. धार्मिक मान्यता के अनुसार जो फल गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है. जो फल कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में स्वर्णदान करने से फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से मिलता है.

अपरा एकादशी व्रत कथा

प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था. उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़े भाई के प्रति द्वेष की भावना रखता था. अवसरवादी वज्रध्वज ने एक दिन राजा की हत्या कर दी और उसके शव को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया. अकाल मृत्यु होने के कारण राजा की आत्मा प्रेत बनकर पीपल पर रहने लगी. उस मार्ग से गुजरने वाले हर व्यक्ति को आत्मा परेशान करती थी. एक ऋषि इस रास्ते से गुजर रहे थे. तब उन्होंने प्रेत को देखा और अपने तपोबल से उसके प्रेत बनने का कारण जाना. ऋषि ने पीपल के पेड़ से राजा की प्रेतात्मा को नीचे उतारा और परलोक विद्या का उपदेश दिया. राजा को प्रेत योनि से मुक्ति दिलाने के लिए ऋषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा. द्वादशी के दिन व्रत पूरा होने पर इसका पुण्य प्रेत को दे दिया. व्रत के प्रभाव से राजा की आत्मा प्रेतयोनि से मुक्त हो गई और वह स्वर्ग चला गया.

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