अमेरिकी टैरिफ संकट को हम अवसर में बदल सकते हैं, पढ़ें अशोक भगत का आलेख

US tariff crisis : अर्थशास्त्रियों का यह अनुमान है कि अमेरिकी टैरिफ के कारण हमारी आर्थिक विकास दर में .06 प्रतिशत से लेकर .08 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. इससे निपटने के लिए हमारी सरकार कई प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था कर रही है.

By अशोक भगत | September 30, 2025 6:06 AM

US tariff crisis : अंग्रेजों के भारत में आगमन से पहले विश्व अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान 26 प्रतिशत तक था. हमारे व्यापारी, उत्तम गुणवत्ता वाले सूती कपड़े, मसाले, हीरे-जवाहरात, चमड़े का सामान और सोने-चांदी के गहनों के साथ ही गुड़ और चने का बड़े पैमाने पर निर्यात किया करते थे. उससे भी पहले भारत के व्यापारी गुणवत्ता वाले लोहे के हथियार दुनियाभर में बेचते थे. लौह सभ्यता का जनक ही भारत को माना जाता है. इस्लामी आक्रमण के समय देश की सामाजिक और सांस्कृतिक क्षति जरूर हुई, लेकिन आर्थिक मोर्चों पर हमारा डंका दुनियाभर में बजता रहा. फिरंगियों के आक्रमण ने हमारी अर्थव्यवस्था को लगभग समाप्त कर दिया. एक लंबी लड़ाई के बाद हमें राजनीतिक आजादी मिली, लेकिन आर्थिक मोर्चों पर हम आज भी कई प्रकार के दबाव झेल रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण फिलहाल हमारे निर्यात पर अमेरिका द्वारा लगाया गया 50 प्रतिशत का टैरिफ है.


अमेरिकी टैरिफ वार के कारण हमारे करीब 20 लाख लोग बेरोजगार होने जा रहे हैं. हम अमेरिका को लगभग 87 अरब डॉलर का समान बेचते हैं. उनमें से करीब 50 अरब डॉलर का हमारा निर्यात प्रभावित होगा. कपड़ा़, गहना और कीमती पत्थर, जूता-चप्पल, खेल के समान और केमिकल उद्योग पर अमेरिकी टैरिफ का गहरा असर दिखेगा. हालांकि स्टील, तांबा, एल्युमीनियम और कारों पर इसका असर नहीं पड़ेगा, लेकिन अभी हाल ही में चाइना-वन पॉलिसी के कारण हमारे देश में आधुनिक सामान बनाने वाली जो कंपनियां अपना उद्योग लगा रही थीं और दुनिया में अपने सामान बेच रही थीं, उस पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. चाइना-वन पॉलिसी के कारण स्मार्ट मोबाइल फोन और लैपटॉप की एसेसरीज बनाने वाली दुनिया की बड़ी कंपनियों में से एक फॉक्सकॉन अब भारत से अपना व्यापार समेट सकती है.


अर्थशास्त्रियों का यह अनुमान है कि अमेरिकी टैरिफ के कारण हमारी आर्थिक विकास दर में .06 प्रतिशत से लेकर .08 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है. इससे निपटने के लिए हमारी सरकार कई प्रकार की वैकल्पिक व्यवस्था कर रही है. लेकिन अमेरिका के इस फैसले को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. यह देश पर किया गया बड़ा हमला है. अमेरिका हमारी स्वतंत्र एवं पूर्वाग्रह रहित विदेश नीति को अपने हित के लिए उपयोग करना चाहता है. हमारी सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इस आर्थिक आक्रमण का जवाब हमारी सरकार अपने तरीके से दे रही है, पर इस विपरीत परिस्थिति में हमारा भी कुछ नागरिक दायित्व बनता है.


महात्मा गांधी ने फिरंगियों की अर्थव्यवस्था पर चोट पहुंचाकर भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया था. मोरारजी भाई देसाई की सरकार के अर्थ मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज ने अमेरिकी कंपनी कोकोकोला को भारत से खदेड़ दिया था. उसी समय देश में कई स्वदेशी पेय पदार्थ अस्तित्व में आये थे. समाजवादी नेता डॉ राममनोहर लोहिया ने भी स्वदेशी अर्थ चिंतन की अवधारणा रखी और अंत में एकात्म मानववाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने स्वदेशी चिंतन को आगे बढ़ाया. हमें उसी स्वदेशी अवधारणा से अमेरिका जैसे अर्थिक राक्षस का मुकाबला करना होगा. इसमें हमें स्वदेशी को युगानुकूल और विदेशी को स्वदेशानुकूल तरीके से अपनाना होगा. हम अपने कारीगरों की ताकत को समझें. गांव की शक्ति को फिर से संगठित करें और मजबूती के साथ अमेरिकी आर्थिक हमले का मुकाबला करें. विगत दिनों हमारे नेताओं ने चीनी सामान के बहिष्कार का भी आह्वान किया था, पर वह राष्ट्रीय आंदोलन नहीं बन पाया और दुनिया यह समझने लगी कि भारत में स्वदेशी आह्वान का कोई महत्व नहीं है.


अब यह दूसरा मौका है कि हम अपनी ताकत को समझें और जिस प्रकार हमने एकजुट होकर फिरंगियों का मुकाबला स्वदेशी हथियार से किया, आज एक बार फिर से अमेरिकी आक्रमण का मुकाबला इकट्ठा होकर करें. इसे संकट की घड़ी न मानें. इस संकट को हम अवसर में बदल सकते हैं. इस प्रतिस्पर्धात्मक व्यापारिक जगत में अमेरिका द्वारा घोषित दंडात्मक टैरिफ की आर्थिक चुनौतियों को अवसर में बदलने का प्रथम प्रयास घरेलू मोर्चे पर खपत बढ़ाकर किया जा सकता है, जो स्वदेशी चिंतन का मूल सिद्धांत है. भारत अमेरिका टैरिफ की चुनौतियों से निपटने के लिये नये बाजार की तलाश कर इससे उबरने की कोशिश कर रहा है. स्वदेशी वस्तुओं के उत्पादन में तेजी लाकर इसे स्वर्णिम अवसर में बदलने का यह उपयुक्त समय है. हमारे पास बाजार की ताकत है. मजबूत और कुशल कारीगरों की बड़ी फौज है. खेती में हमारा दबदबा है. आधुनिक तकनीक में भी हम दुनिया के सामने मजबूती के साथ खड़े हैं. ऐसे में हमें केवल अपनी ताकत को पहचानने की जरूरत है. जिस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन आज महज तीन द्वीपों में सिमट गया है, आने वाले समय में अमेरिका भी अपना महत्व खो देगा. बस हमें संगठित होकर प्रयास करने की जरूरत है. तो एक बार फिर स्वदेशी हथियार के साथ मैदान में उतरें और अपने-अपने तरीके से नागरिक दायित्वों का निर्वहन करते हुए अमेरिका का मुकाबला करें.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)