सैन्य मजबूती को गति देने की दिशा में बढ़े कदम

Operation Sindoor : ऐसे में, भारत को पाकिस्तान और चीन से एक साथ निपटने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति की गिरगिट की तरह रंग बदलती घोषणाएं पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन चुकी हैं.

By अरुणेंद्र नाथ वर्मा | August 12, 2025 5:45 AM

Operation Sindoor : छह दशक पहले जुल्फिकार अली भुट्टो ने खुली धमकी दी थी कि पाकिस्तान हजारों साल तक भारत की पीठ में छुरा भोंक कर उसका रक्तस्राव करता रहेगा. तब से अब तक पाकिस्तान ने हर तरह की अस्थिरता देखी है. भारत के प्रति घृणा की चरमसीमा दिखी रविवार को अमेरिकी भूमि पर पाकिस्तानी फील्ड मार्शल आसिफ मुनीर की आत्मघाती धमकी में, कि अंतिम प्रतिशोध लेने के लिए पाकिस्तान अपने साथ आधी दुनिया को नष्ट कर देने के लिये भी तैयार है. उधर भारत का बढ़ता मानव संसाधन, उसकी सैन्य शक्ति और आर्थिक समृद्धि चीन की आंखों में भी चुभ रही है.

ऐसे में, भारत को पाकिस्तान और चीन से एक साथ निपटने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति की गिरगिट की तरह रंग बदलती घोषणाएं पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन चुकी हैं. वह भारत से विशेष कुपित लगते हैं, अतः चीन और पाकिस्तान से संभावित युद्ध की स्थिति में अमेरिकी मदद की आशा करना व्यर्थ होगा. ऐसे में भारत की सैन्य व्यवस्था को मजबूती देने के लिए भारी आर्थिक संसाधनों की जरूरत है, भले यह हमारे सर्वांगीण विकास के रास्ते का रोड़ा हो. यह संतोषजनक है कि रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने हाल ही में सशस्त्र सेनाओं के बहुक्षेत्रीय उन्नयन के लिए 67,000 करोड़ रुपयों की मंजूरी दी है.


यह मंजूरी तीनों सेनाओं की सामरिक तैयारी को उल्लेखनीय गति देगी. मसलन, थलसेना को थर्मल इमेजिंग तकनीक पर आधारित ड्राइवर नाइट साइट के लिए एक बड़ी राशि दी गयी है. यह उपकरण पैदल सेना (इंफेंट्री) की यंत्रीकृत इकाइयों को गति प्रदान करेगा. ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने देर रात को बीस मिनट में ही पाक आतंकी ठिकानों को मटियामेट कर दिया था. यह तथ्य रात्रिकालीन युद्ध के महत्व को रेखांकित करता है. इस बार थलसेना को आगे बढ़कर उन ठिकानों पर कब्जा करने का लक्ष्य नहीं दिया गया था, पर भविष्य में इसकी जरूरत पड़ सकती है, अतः गतिशील इकाइयों की अंधेरे में लड़ने की क्षमता बढ़ाना आवश्यक है.

ऑपरेशन सिंदूर ने बताया कि वर्तमान युद्ध प्रणाली तेजी से बदल रही है. भविष्य के रणक्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक शस्त्रास्त्रों और उपकरणों का वर्चस्व होगा. पाकिस्तान को टोही और आक्रामक ड्रोन देकर तुर्किये ने इस तथ्य को रेखांकित किया था. इसी को ध्यान में रखकर रक्षा अधिग्रहण परिषद ने मध्यम ऊंचाई पर देर तक उड़ सकने की क्षमता वाले रिमोट निर्देशित आकाशीय यानों के लिए भारी राशि की मंजूरी दी है. यह राशि जल, थल और वायु सेना को चौबीसों घंटे टोह लेने और हमला करने की जबरदस्त क्षमता देगी.

पाकिस्तान और चीन के साथ लगी हमारी सीमा हिमालय की पर्वतमालाओं से लगी और घिरी हुई है, अतः ऊंचे पर्वतों के पार शत्रु की सैन्य इकाइयों पर नजर बनाये रखने और आक्रमण करने की क्षमता हमारे लिए आवश्यक है. पर्वतीय रडार प्रणाली की स्थापना और उन्नयन के लिए एक बड़ी राशि की मंजूरी के साथ ही एयर डिफेंस प्रणाली में कमान और निर्देशन को संपूर्ण और सर्वांगीण बनाने के लिए ‘सक्षम’ और ‘स्पाइडर’ नामक प्रणालियों के विकास और उपयोग के लिए भी समुचित राशि मुहैया करायी गयी है.


ऑपरेशन सिंदूर में रूस के सहयोग से स्थापित एस 400 (सुदर्शन चक्र) एयर डिफेंस प्रणाली ने हमारी आकाशीय सुरक्षा बनाये रखने में कमाल कर दिखाया था. इस प्रणाली के लंबी दूरी पर मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों के दीर्घकालीन रख-रखाव के लिए खासी राशि दी गयी है. वायुसेना के भारवाहक विमान सी17 ग्लोबमास्टर और सी130 हरक्यूलिस विमानों के रख-रखाव के लिए भी समुचित राशि मंजूर हुई है. नौसेना को भी सघन (कॉम्पैक्ट) स्वचालित सतह पर चलने वाले जलयानों के अतिरिक्त ब्रह्मोस प्रक्षेपास्त्र कंट्रोल और प्रक्षेपण प्रणालियों पर खर्च करने के लिए बड़ी मंजूरी मिली है. ऐसी कंट्रोल और प्रक्षेपण प्रणालियां शत्रु की पनडुब्बियों की टोह लेने, उनका वर्गीकरण करने और उन्हें नष्ट करने में सहायक होंगी.


इन मंजूरियों पर नजर डालने के बाद एक प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है. वायुसेना में अनुमोदित 42 स्क्वॉड्रन की जगह 31 स्क्वॉड्रन रह गयी हैं और मिग 21 विमानों की विदाई के बाद केवल 29 बचेंगी, उसका क्या? वायुसेनाध्यक्ष के उलाहना देने पर एचएएल ने बताया था कि तेजस मार्क1 और मार्क 1ए विमानों का निर्माण तेजी से किया जायेगा. पर तेजस का निर्माण अमेरिकी जीइ इंजनों की आपूर्ति पर आश्रित है. राष्ट्रपति ट्रंप के बदले हुए तेवर इस संदर्भ में चिंता का विषय हैं. अपने देश में पांचवीं और छठी पीढ़ी के लड़ाकू जेट इंजन बनाना हंसी-खेल नहीं.

यह सुदूर भविष्य में ही संभव होगा. वायुसेना चाहती है कि तुरंत उपचार के रूप में भारत फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमान शीघ्रातिशीघ्र खरीदे. दसाल्ट एविएशन से 36 राफेल विमानों का मौलिक सौदा लगभग 59 हजार करोड़ रुपयों का था. बढ़ती महंगाई और गिरते रुपये के कारण यह राशि अब काफी ज्यादा होगी. क्या इसके लिए रक्षा मंत्री अलग से कोई घोषणा करेंगे? या फिर इलेक्ट्रॉनिक युद्ध के दौर में ड्रोन और प्रक्षेपास्त्रों के मुकाबले लड़ाकू विमानों का महत्व कम हो गया है? ये प्रश्न एक और विस्तृत विवेचना की मांग करते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)