बंद अर्थव्यवस्था से चौथी आर्थिक महाशक्ति

Economic Superpower : अनुमान है कि 2023 में भारत की जनसंख्या 1.4 अरब से अधिक पर पहुंच गयी है. हालांकि, 1960 से शुरू होकर पिछले छह दशकों में जनसंख्या वृद्धि में लगातार गिरावट का रुझान देखा गया है, जबकि लोगों की कुल संख्या में कई गुना वृद्धि दर्ज हुई है, जिससे भारत के संसाधनों और सभी के लिए रोजगार सृजित करने की क्षमता पर दबाव बढ़ रहा है.

By अभिजीत मुखोपाध्याय | August 15, 2025 5:45 AM

Economic Superpower : लिवरपूल और मैनचेस्टर की मिलों को कच्चा माल और तैयार बाजार उपलब्ध कराने वाली एक बंदी अर्थव्यवस्था (कैप्टिव इकोनॉमी) से दुनिया की चौथी सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति बनने तक, भारत की अर्थव्यवस्था ने एक लंबा रास्ता तय किया है. भारत का आर्थिक परिवर्तन शुरुआती दशकों में नयी इस्पात मिलों, बहुउद्देश्यीय बांधों, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों, ऑटोमोबाइल कारखानों जैसे ‘आधुनिक भारत के मंदिरों’ के निर्माण के साथ शुरू हुआ था. और 1980 के दशक के अंत तक, भारत ने अपने विदेशी व्यापार को उदार बनाया और कंप्यूटरीकरण तथा दूरसंचार क्रांति को उसके प्रारंभिक रूप में अपनाया. देश की अर्थव्यवस्था में वास्तविक परिवर्तन 1991 में तब शुरू हुआ, जब भारत ने अधिक बाजार अनुकूल नीतियां लागू कीं. इक्कीसवीं सदी में, देश ने नयी तकनीक- रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल तकनीक आधारित उद्योग और ई-कॉमर्स- को अपनाकर चौथी औद्योगिक क्रांति की शुरुआत की.


सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की बात करें, तो 2011-12 को आधार वर्ष मानते हुए, देश की जीडीपी 1950-51 से लगभग 35 गुना बढ़ गयी है. वर्ष 1950-51 में जहां यह पांच लाख करोड़ रुपये से थोड़ी कम थी, वह 2023-24 में सहजता से 170 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गयी. प्रथम संशोधित आकलन के अनुसार, देश का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद या स्थिर मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद वित्त वर्ष 2024-25 में 187.97 लाख करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंचा है. वर्ष 1960 और 1970 के दशक में राष्ट्रीय आय में लगभग 48 प्रतिशत की मामूली दशकीय वृद्धि दर देखी गयी, उसके बाद 1980 के दशक में इसमें लगभग 34 प्रतिशत की उल्लेखनीय गिरावट आयी.

हालांकि, 1990 और 2000 के दशक में जीडीपी में दशकीय वृद्धि दर 70 प्रतिशत से अधिक रही, जो नयी सहस्राब्दी के पहले दशक में 90 प्रतिशत से अधिक के अपने चरम पर पहुंच गयी. हालांकि, हाल के दिनों में दशकीय जीडीपी वृद्धि दर की गति धीमी पड़ गयी है. वहीं प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (जीएनआइ) में अच्छी वृद्धि तो हुई, पर बहुत ही मामूली दर से. सबसे अच्छी दशकीय वृद्धि- 50 प्रतिशत से अधिक- 2000 के बाद के पहले दो दशकों में दर्ज हुई. वर्ष 2020 (महामारी के वर्षों) के बाद के पहले तीन वर्षों में 23 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गयी- जो कठिन समय में प्रशंसनीय उपलब्धि है.


अनुमान है कि 2023 में भारत की जनसंख्या 1.4 अरब से अधिक पर पहुंच गयी है. हालांकि, 1960 से शुरू होकर पिछले छह दशकों में जनसंख्या वृद्धि में लगातार गिरावट का रुझान देखा गया है, जबकि लोगों की कुल संख्या में कई गुना वृद्धि दर्ज हुई है, जिससे भारत के संसाधनों और सभी के लिए रोजगार सृजित करने की क्षमता पर दबाव बढ़ रहा है. इतना ही नहीं, 1960 में जन्मे एक औसत भारतीय के केवल 45 वर्ष तक जीवित रहने की उम्मीद थी. तब से, जीवन प्रत्याशा कई गुना बढ़ी है, और यह सब मुख्यतः 1970 और 1980 के दशक में स्वास्थ्य के क्षेत्र में तेज सुधार के कारण हुआ है. वर्ष 2020 में, कुल जनसंख्या के लिए जन्म के समय जीवन प्रत्याशा 70 वर्ष से अधिक थी. पर महामारी के दो वर्षों के बाद यह थोड़ी कम हो गयी. अब बात साक्षरता की. वर्ष 1981 में भारत की साक्षरता दर लगभग 41 प्रतिशत थी. तब से, देश की समग्र साक्षरता दर में अभूतपूर्व प्रगति हुई है और 2022 तक यह 76 प्रतिशत के आंकड़े को पार कर गयी है.


व्यापार की बात करें, तो काफी हद तक बंद अर्थव्यवस्था (क्लोज्ड इकोनॉमी) होने के कारण, शुरुआती दशकों में भारतीय निर्यात मामूली था और 1980 के दशक में ही इसका बढ़ना शुरू हुआ, जब व्यापार उदारीकरण की शुरुआत हुई. वर्ष 1991 में अर्थव्यवस्था के खुलने के बाद निर्यात का मूल्य तेजी से बढ़ा. और 2023-24 में, भारत का निर्यात 437 अरब डॉलर से अधिक हो गया. पर व्यापारिक प्रतिकूलताओं के कारण भारत का वस्तु निर्यात 2024-25 में घटकर 433.56 अरब डॉलर रह गया. दूसरी ओर, 1990 के दशक के बाद आयात में भी वृद्धि हुई. नयी सहस्राब्दी में देश का आयात बिल तेजी से बढ़ा. वर्ष 2023-24 में, भारत का आयात मूल्य 675 अरब डॉलर से अधिक था, जो 2020-21 के 394 अरब डॉलर से बहुत ज्यादा है. कच्चे तेल सहित अंतरराष्टीय वस्तुओं में हुई मूल्य वृद्धि ने बढ़ते आयात बिल में काफी योगदान दिया. हालांकि, बढ़ता आयात भी एक सक्रिय अर्थव्यवस्था का संकेत है. विकास को गति देने के लिए, भारत अपने कारखानों और संयंत्रों के लिए बड़ी मात्रा में मशीनरी और उपकरणों का आयात करता है. निर्यात से अधिक आयात से व्यापार घाटा बढ़ा है और 2023-24 में यह बढ़कर 238 अरब डॉलर पर पहुंच गया. वर्ष 2024-25 के दौरान वस्तु या माल व्यापार घाटा 282.83 अरब डॉलर था, जबकि 2023-24 के दौरान यह 241.14 डॉलर था. इन सबके बावजूद, भारत के 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की यात्रा शुरू हो चुकी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)