जलवायु संकट पर विकसित देश उदासीन
COP 30 : इस साल जलवायु परिवर्तन पर वार्ता के तीस वर्ष हो रहे हैं, और पेरिस समझौते के भी दस साल हो गये हैं. ब्राजील के राष्ट्रपति ने कहा है कि कॉप-30 वार्ता की जगह अमल करने का अवसर होना चाहिए. यही नहीं, 2025 वह वर्ष है, जब सभी देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और अपनी घरेलू नीतियों में बदलाव लाने से संबंधित नयी घोषणाएं करनी थीं.
-सहर रहेजा,( प्रोग्राम ऑफिसर, क्लाइमेट चेंज सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट)
-उपमन्यु दास (प्रोग्राम ऑफिसर, क्लाइमेट चें सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायर्नमेंट)
कॉप यानी पार्टीज टू द यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन्स ऑन क्लाइमेट चेंज का 30 वां सम्मेलन ब्राजील के अमेजन स्थित शहर बेलेम में संपन्न हो गया. जलवायु परिवर्तन पर इस सालाना सम्मेलन में दुनिया भर की सरकारों के प्रतिनिधियों, सिविल सोसाइटी संगठनों और तकनीकी विशेषज्ञों की उपस्थिति होती है, जो जलवायु बदलावों पर सरकारों द्वारा उठाये जाने वाले कदमों का आकलन और आगे का रास्ता निकालने के लिए बातचीत करते हैं. पिछले साल अजरबैजान में हुए कॉप-29 में मुख्य मुद्दा जलवायु वित्त की धनराशि था. उस सम्मेलन में बनी सहमति को विकासशील देशों और सिविल सोसाइटी ने विफलता बताया था. अमेरिकी अनुपस्थिति से जलवायु वित्त पर बड़ा असर पड़ रहा है. अमेरिका जैसे बड़े दाता के पीछे हटने से जलवायु वित्त के मुद्दे पर विकसित देश पीछे हट सकते हैं, जिसका खामियाजा भारत समेत तमाम विकासशील देश भुगतेंगे.
मौजूदा भू-राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए बेलेम में चल रहा सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण था : डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर हो गया है और बेलेम में अमेरिका ने अपना कोई उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल नहीं भेजा. ऐसा तीन दशकों में पहली बार हुआ है. यह साल विकसित देशों द्वारा विदेशी मदद से संबंधित बजट में भारी कटौती, टैरिफ वार और सैन्य विवादों के लिए ही जाना गया. इस साल जलवायु परिवर्तन पर वार्ता के तीस वर्ष हो रहे हैं, और पेरिस समझौते के भी दस साल हो गये हैं. ब्राजील के राष्ट्रपति ने कहा है कि कॉप-30 वार्ता की जगह अमल करने का अवसर होना चाहिए. यही नहीं, 2025 वह वर्ष है, जब सभी देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और अपनी घरेलू नीतियों में बदलाव लाने से संबंधित नयी घोषणाएं करनी थीं.
सम्मेलन शुरू होने के साथ ही बता दिया गया था कि विकसित देशों के वादे के मुताबिक जलवायु वित्त का भुगतान करने, जलवायु से संबंधित एकतरफा व्यापारिक कार्रवाई को प्रबंधित करने, जलवायु से संबंधित अभी के वादों और 1.5 डिग्री सेंटीग्रेट के फासले को खत्म करने तथा उत्सर्जन के क्षेत्र में हो रही प्रगति को जांचने जैसे राजनीतिक रूप से संवेदनशील चार मुद्दों को फॉरमल एजेंडा एडोप्टेशन से बाहर रखा जायेगा और इन पर प्रेसीडेंशियल कॉन्फ्रेंस में चर्चा होगी. विगत 18 नवंबर को प्रेसीडेंसी ने इन चारों मुद्दों पर सहमति बनाने की जरूरत से संबंधित एक मसौदा जारी किया, लेकिन इस पर प्रगति धीमी ही रही.
सम्मेलन में विभिन्न देशों के बीच बातचीत में भारी असहमति दिखाई पड़ी. जी-77 और अफ्रीकी समूह जैसे विकासशील देशों के समूहों ने इस पर चिंता जतायी कि विशेषज्ञों द्वारा प्रस्तावित अनेक संकेतक पेरिस समझौते से मेल नहीं खाते. उनकी यह भी शिकायत थी कि इन उपायों में स्थानीय स्तर पर वित्तीय प्रबंधन पर ज्यादा जोर है तथा इनमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मदद देने की जरूरत से पीछे हटने की कोशिश है.
विकासशील देशों के समूहों ने कहा कि इंडिकेटर फ्रेमवर्क से संबंधित अंतिम फैसला लिये जाने से पहले जलवायु वित्त पर सहमति बन जाना आवश्यक है. ताजा मसौदे में इन बातों के अलावा ‘बाकू अडेप्शन रोडमैप’ तथा जलवायु वित्त की राशि बढ़ाने की बात कही गयी है. इसमें जलवायु वित्त को 2030 तक कम से कम 120 अरब डॉलर सालाना करने का प्रस्ताव रखा गया है. कॉप-30 में जेटीडब्ल्यूपी-यानी जस्ट ट्रांजिशन वर्क प्रोग्राम के तहत वार्ता स्पष्ट निर्णय लेने तथा जलवायु वित्त को तत्काल क्रियान्वित करने के लिए वैश्विक स्तर पर तालमेल बनाने के लिए नया तरीका अपनाने पर केंद्रित रही. जलवायु संबंधित एकतरफा व्यापार कार्रवाई (यूटीएम) को वार्ता में शामिल करने जैसा विवादित मुद्दा भी सामने आया, जब जी-77 और चीन ने इन पर बहस की जरूरत बतायी, क्योंकि इससे उनका कारोबार प्रभावित होता है. जी-77 समूह और चीन ने जलवायु वित्त, तकनीकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण के क्षेत्र में तालमेल बनाने के लिए एक नया जस्ट ट्रांजिशन मैकेनिज्म प्रस्तावित भी किया है, ताकि सिद्धांतों को कार्यरूप में बदला जा सके. लेकिन जलवायु संबंधित एकतरफा कार्रवाई के मामले में यूरोपीय आयोग के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म जैसी नयी परेशानियां भी सामने आई हैं.
जलवायु संबंधित एकतरफा कार्रवाई के मामले में कई राय सामने आई हैं. जैसे कि यूरोपीय आयोग ने अपना जस्ट ट्रांजिशन एक्शन प्लान (जेटीएपी) सामने रखते हुए दावा किया है कि तापमान को 1.5 डिग्री तक रखने के लिए यह सबसे प्रभावी तरीका है. बेलेम में कई नये उपायों पर भी चर्चा हुई. जैसे, ब्राजील के राष्ट्रपति कार्यालय ने टीएफएफएफ (ट्रॉपिकल फॉरेस्ट फॉरएवर फैसिलिटी) लॉन्च की. यह 125 अरब डॉलर का एक निवेश फंड होगा, जो वन संरक्षण के लिए उष्णकटिबंधीय देशों को बाजार आधारित मॉडल के जरिये भुगतान करेगा. इसके तहत ज्यादातर विकासशील देशों में निवेश किया जायेगा.
हालांकि चिंता तब भी बनी रहेगी कि इस पहल से क्या विकासशील देशों को वन संरक्षण के लिए पर्याप्त फंड की व्यवस्था हो सकेगी. इसके अलावा जीवाश्म ईंधन का प्रयोग बंद करने से संबंधित योजना पर भी वार्ता हुई. हालांकि इस मुद्दे पर गहरी असहमति दिखी. कई देश इससे संबंधित स्पष्ट चरणबद्ध समय सारिणी तय करने की बात कर रहे थे, जबकि कुछ दूसरे देशों की मांग थी कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को इसके लिए वित्तीय मदद देने की जरूरत है. कॉप प्रेसीडेंसी ने जलवायु और व्यापार पर एक नये मंच की भी शुरुआत की. इसके तहत कार्बन शुल्क पर संवाद बढ़ाने की पहल की गयी, ताकि व्यापार से जुड़े विवादों का हल निकाला जा सके.
जलवायु वित्त इस सम्मेलन का प्रमुख मुद्दा नहीं था, लेकिन यही अब सबसे निर्णायक मुद्दे के रूप में सामने है. दूसरी ओर, जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए देशों द्वारा अपनी घरेलू नीतियों में बदलाव लाने की जो बात थी, वह मुद्दा नेपथ्य में चला गया दिखता है. शनिवार को एक सामान्य से समझौते में तय किया गया कि जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक प्रभावित देशों को चरम मौसम से निपटने के लिए ज्यादा आर्थिक मदद दी जायेगी. लेकिन इसमें जीवाश्म ईंधन के कम इस्तेमाल से संबंधित कोई नया वादा नहीं किया गया, न ही गरम होती दुनिया को बचाने के लिए सख्त फैसले लिये गये. इस कारण अनेक देश और पर्यावरण कार्यकर्ता हताश हैं. दुनिया में जलवायु से संबंधित वादों की कमी नहीं है, लेकिन अब इसमें एक व्यवस्थित ढांचे की आवश्यकता है. समय कम बचा है, जबकि दांव पर बहुत कुछ है.
(ये लेखकद्वय के निजी विचार हैं.)
