विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी

Climate Change : शीर्ष अदालत दरअसल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बताया गया है कि मॉनसून की वर्षा के बमुश्किल एक सप्ताह के भीतर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में व्यापक रूप से और घातक भूस्खलन हुए हैं.

By संपादकीय | September 8, 2025 10:22 PM

Climate Change : सर्वोच्च न्यायालय ने हिमालयी राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन पर टिप्पणी करते हुए पेड़ों की अवैध कटाई को जिस तरह इसका एक कारण बताया है, वह बहुत चिंताजनक है. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के पानी में लकड़ियों के बह जाने की मीडिया फुटेज का हवाला देते हुए टिप्पणी की कि यह एक गंभीर मामला है और प्रथम दृष्ट्या ऐसा प्रतीत होता है कि पहाड़ियों पर पेड़ों की अवैध कटाई हो रही है. अदालत का कहना था कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाये रखा जाना चाहिए.

शीर्ष अदालत दरअसल एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बताया गया है कि मॉनसून की वर्षा के बमुश्किल एक सप्ताह के भीतर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में व्यापक रूप से और घातक भूस्खलन हुए हैं. याचिका में अनियमित विकास, वनों की अवैध कटाई तथा प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हिमालयी क्षेत्र की बढ़ती संवेदनशीलता के बीच के संबंधों को उजागर करते हुए इस पर भी जोर दिया गया कि समर्पित आपदा प्रबंधन प्राधिकरण होने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारें, दोनों ऐसी आपदाओं से होने वाले नुकसानों को कम करने के लिए योजनाएं बनाने में विफल रही हैं, जिस कारण हाल के वर्षों में प्राकृतिक आपदाएं बढ़ी हैं. इसमें इस तरह की आपदाओं तथा विनाश के पैमाने को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार कई कारणों को रेखांकित भी किया गया है, जैसे- पहाड़ों में सड़क नियमावली की अनदेखी, जल निकायों पर अतिक्रमण तथा पर्यावरण सुरक्षा उपायों का पालन न करना.

साथ ही, याचिका में यह भी कहा गया कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय तथा जल शक्ति मंत्रालय हिमालयी क्षेत्र की नाजुक पारिस्थितिकी तथा नदियों की रक्षा करने के अपने कर्तव्य में विफल रहे हैं. मामले की गंभीरता को देखते हुए पीठ ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण तथा पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर की सरकारों को नोटिस जारी कर दो सप्ताहों के भीतर जवाब मांगा है. पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए कहा है और उन्होंने स्थिति की गंभीरता को स्वीकार किया है. चूंकि यह बेहद गंभीर मामला है, ऐसे में, संबंधित सरकारें तथा प्राधिकरण अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते. लगातार आपदाओं को देखते हुए विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधने की दिशा में निर्णायक कदम उठाने ही होंगे.