संकट में युवाओं की भूमिका तय हो

देश की आबादी का लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा यानी 60 करोड़ युवा हों, वहां सिर्फ कुछ लाख के लिए प्रारंभिक अर्द्ध सैन्य प्रशिक्षण की व्यवस्था है.

By आलोक मेहता | June 15, 2021 8:09 AM

कोरोना महामारी का संकट हो या उग्र हिंसा प्रभावित क्षेत्रों का संकट, किसी थोपे गये युद्ध का संकट अथवा कुंभ जैसे करोड़ों लोगों की सुरक्षा का प्रबंध हो, क्या केवल सरकार पर निर्भर रहना पर्याप्त है? शायद नहीं, तभी सामाजिक, स्वयंसेवी, धार्मिक संगठन और कई निजी संस्थान के लोग यथासंभव सहयोग करते हैं. लेकिन हर संकट के लिए भारतीय समाज को तैयार रखने के लिए स्थायी व्यवस्था पर भी विचार होना चाहिए.

संकट के इस दौर में अपने स्कूल-कॉलेज के दिनों के अनुभव याद करते हुए क्या एक ही क्रांतिकारी निर्णय आनेवाले वर्षों में संपूर्ण समाज को एक हद तक राहत देने का रास्ता बन सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यदि एक झटके में नोटबंदी करने या अनुच्छेद 370 समाप्त करने का फैसला कर सकते हैं, तो सामाजिक व शैक्षणिक क्रांति के लिए एक निर्णय क्यों नहीं ले सकते हैं? सरकार ने शिक्षा नीति घोषित कर दी है और उसे लागू करने की तैयारियां हो रही हैं. शैक्षणिक व्यवस्था में संघीय संवैधानिक व्यवस्था के बावजूद एक निर्णय सबके लिए अनिवार्यता से लागू करने की आवश्यकता है.

यह है- सरकारी व निजी स्कूलों-कॉलेजों में हर छात्र के लिए एनसीसी (नेशनल कैडेट कोर) का कम-से-कम एक वर्ष प्रशिक्षण और उसमें उत्तीर्ण होने की अनिवार्यता. जो छात्र इच्छुक हों, वे दो-तीन वर्ष का प्रशिक्षण भी ले सकते हैं. नौकरियों में इसे अतिरिक्त योग्यता भी माना जा सकता है. इसके लिए कोई नया ढांचा भी नहीं तैयार करना होगा और न ही इसमें कोई राजनीतिक विवाद खड़ा होगा. स्कूल से ही सद्भाव, अनुशासन, सेवा एवं प्रारंभिक अर्द्धसैन्य प्रशिक्षण देने पर किसे आपत्ति हो सकती है? अनिवार्यता को लेकर कुछ लोग निजी स्वतंत्रता का मुद्दा अवश्य उठा सकते हैं, लेकिन हर किसी को संतुष्ट तो कोई नहीं कर सकता है. कई देशों में 18 से 21 वर्ष तक की आयु और शैक्षणिक डिग्री के लिए एक वर्षीय सैन्य प्रशिक्षण की अनिवार्यता है.

यह मुद्दा अभी उठाने का एक कारण और भी है. महामारी में सहायता के लिए राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों ने कुछ काम भी किया, लेकिन दावे बड़े-बड़े किये. फिर भी, लाखों सामान्य गरीब लोगों को बहुत कठिनाइयां होती रही हैं. इससे भी बड़ी समस्या गली-मोहल्लों में बच्चों-युवाओं के जमावड़ों, उनकी बैचेनी, सामान्य दिनों में भी युवाओं के असंतोष, उग्रता व भटकाव, अपराधियों या अतिवादियों द्वारा उन्हें फंसाने की स्थितियां देखने को मिलती रही हैं.

पार्टियों के अपने पूर्वाग्रह अथवा कमजोरियां हैं. भाजपा बीस करोड़ सदस्यता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लगभग पचास हजार दैनिक शाखाओं का दावा करते हैं. उनका लक्ष्य ही युवा पीढ़ी में राष्ट्र प्रेम, अनुशासन और सेवा की भावना जाग्रत करना है. कांग्रेस अथवा अन्य प्रतिपक्षी दलों को संघ के हिंदुत्व की विचारधारा पर आपत्ति है. सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी भी पांच-सात करोड़ सदस्यों का दावा करती है और उसके सेवा दल, युवक कांग्रेस के संगठन हैं.

कम्युनिस्ट पार्टियों का अपना अनुशासित काडर और युवा संगठन हैं. भाजपा और कांग्रेस को भी कम्युनिस्ट विचाधारा या उनके विदेशी संबंधों पर आपत्तियां रही हैं. समाजवादी पार्टियों के पास भी समर्पित कार्यकर्ता, समर्थक और युवा संगठन रहे हैं. इस तरह नयी पीढ़ी को समाज और राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों के लिए कोई एक संगठन, एक दिशा स्पष्ट नहीं है.

एनसीसी आजादी से पहले विश्व युद्ध के समय यूनिवर्सिटी कोर की तरह स्थापित हुआ था, लेकिन स्वतंत्रता के बाद 1950 से स्कूलों-कॉलेजों में सक्रिय प्रशिक्षण व्यवस्था है. इस समय करीब 17 हजार स्कूलों-कॉलेजों के करीब तेरह लाख छात्र-छात्राएं इससे जुड़े हैं. हाल ही में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बताया है कि 2023 तक सीमावर्ती क्षेत्रों की शिक्षा संस्थाओं के करीब पंद्रह लाख युवा इससे जुड़ जायेंगे. हमारे देश की आबादी का लगभग पचास प्रतिशत हिस्सा यानी 60 करोड़ युवा हों, वहां सिर्फ कुछ लाख के लिए प्रारंभिक अर्द्ध सैन्य प्रशिक्षण व्यवस्था है. इस संगठन में थल, वायु और नौसेना के लिए उपयोगी प्रशिक्षण की सुविधा छात्र की रुचि के अनुसार मिल सकती है.

कुछ वर्ष पहले संसद में एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा था कि एनसीसी संगठन द्वारा चार करोड़ युवाओं के लिए साधन व सुविधा उपलब्ध नहीं कराये जा सकते हैं. दिलचस्प बात यह है कि केंद्र में यह रक्षा मंत्रालय के अधीन है और उससे ही बजट का प्रावधान होता है क्योंकि कैडेटों को प्रशिक्षण देने की जिम्मेदारी पूर्व सेनाधिकारी को दी जाती है. फिर राज्य सरकारों के शिक्षा विभाग अपने स्कूल-कॉलेज का खर्च संभालते हैं.

एनसीसी से ही मिलता-जुलता एक सरकारी संगठन है एनएसएस (राष्ट्रीय सेवा योजना). यह भी कई कॉलेजों में समाज सेवा के प्रशिक्षण का काम करता है. यह केंद्र के युवा एवं खेल मंत्रालय के अधीन है. योजनाएं और उद्देश्य बहुत अच्छे हैं, लेकिन वर्षों का अनुभव इस बात का प्रमाण है कि एनसीसी या एनएसएस सरकारी स्कूलों और कॉलजों में अधिक सक्रिय हैं.

निजी संस्थानों में अनुशासन, सेवा और सुरक्षा व्यवस्था में अन्य करोड़ों युवाओं को तैयार करने की क्या कोई आवश्यकता नहीं हैं? फिर संसद या अन्य मंचों और मीडिया में नयी पीढ़ी के भटकने का दुख व्यक्त किया जाता है. नयी पीढ़ी के लिए सेवा व अनुशासन की शिक्षा की समान व्यवस्था की अनिवार्यता का केवल एक क्रांतिकारी निर्णय क्यों नहीं लागू किया जा सकता है?

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