आरोपियों के प्राइवेट व्हाट्सएप चैट को प्रसारित करने पर SC में सरकार ने कहा, यह घातक है

Supreme court: सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एसए बोबड़े (CJI SA Bobde) द्वारा बोलने की आजादी (Freedom Of Speech) के दुरुपयोग को हरी झंडी दिखाये जाने के कुछ दिनों बाद मंगलवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (AG KK venugopal) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बोलने की आजादी (Airing of private whatsapp chat of accused) और अदालत की अवमानना के बीच में संतुलन होना चाहिए. इसे तत्काल बनाने की जरूरत थी. क्योंकि इससे मीडिया में भटकाव हो रहा था.

By Prabhat Khabar Print Desk | October 14, 2020 8:58 AM

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश जस्टिस एसए बोबड़े द्वारा अभिव्यक्ति की आजादी के दुरुपयोग को हरी झंडी दिखाये जाने के कुछ दिनों बाद मंगलवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बोलने की आजादी और अदालत की अवमानना के बीच में संतुलन होना चाहिए. इसे तत्काल बनाने की जरूरत थी. क्योंकि इससे मीडिया में भटकाव हो रहा था.

जस्टिस वेणुगोपाल ने कोर्ट में अधिवक्ता प्रशांत भूषण के खिलाफ एक दशक पुरानी अवमानना की कार्यवाही से जुड़े कई मुद्दों पर कोर्ट को संबोधित करते हुए पिछले 16 सीजेआई में से आधे भ्रष्ट थे. उन्होंने एएम खानवाकर, बीआर गवई, और कृष्ण मुरारी की बेंच को बताया की बोलने की आजादी का अधिकार आज के समय में गंभीर समस्या बन चुकी है.

सुशांत सिंह आत्महत्या और उससे जुड़े मामलों में विभिन्न टीवी चैनलों की रिपोर्टिंग के मामले में एजी ने कहा कि एक आरोपी के खिलाफ कोर्ट में जमानत याचिका दायर की जाती है. इसके बाद टीवी चैनल आरोपी के प्राइवेट वाट्सएप मैजेस को शेयर करते हैं. यह आरोपी के अधिकारों के खिलाफ उसके प्रति एक पूर्वाग्रह तैयार करने जैसा है. साथ ही यह न्याय तंत्र के लिए भी घातक है.

जस्टिस वेणुगोपाल ने कुछ ऐसे भी लेखों का उल्लेख किया जिसमें की कोर्ट का फैसला आने से पहले ही किसी मामले में आपना फैसला सुना देते हैं. जब भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कोई बड़ा मामला सुनवाई के लिए आता है, तब इससे जुड़े बड़े लेख छपते हैं. जिनमें कोर्ट के संभावित निर्णय और उसे लेकर उठाने वाले सवालों के बारे में जिक्र किया जाता है.

इतना ही नहीं अपने लेख के माध्यम से लेख सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताते है कि किसी भी फैसले को लेकर जनमानस क्या सोचती है. जनता की क्या अपेक्षाएं हैं. इन सभी मामलों पर विचार होना चाहिए. क्योंकि ऐसा देखा गया है कि ऐसे मामलों में कोर्ट का क्या स्टैंड होगा ऐसे लेख एक्टिविस्ट, वरिष्ठ वकील और पूर्व जजों द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं. इस प्रकार के लेखों से परहेज करना चाहिए.

गौरतलब है कि पिछले हफ्ते ही मुसलमानों के खिलाफ अभद्र भाषा के प्रसारण को रोकने की मांग को लेकर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने एक तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी. सीजेआई एसए बोबड़े ने आठ अक्टूबर को कहा था कि बोलने की आजादी का इन दिनों सबसे अधिक दुरुपयोग की स्वतंत्रता है. इसके अलावा कई और मामलों की भी इस मामले में जिक्र किया गया.

Posted By: Pawan Singh

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