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Holi 2025: भक्त प्रह्लाद से कृष्ण-राधा तक, होली का दिलचस्प सफर

Holi 2025: होली सिर्फ रंगों का नहीं, बल्कि आस्था और परंपराओं से जुड़ा त्योहार है, जिसकी जड़ें प्रह्लाद-होलिका और कृष्ण-राधा की कहानियों में मिलती हैं.

By Neha Kumari | March 14, 2025 8:50 AM
Holi 2025: भक्त प्रह्लाद से कृष्ण-राधा तक, होली का दिलचस्प सफर

Holi 2025: होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है. इसे रंगों, आपसी प्रेम और बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है. यह त्योहार न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से भी विशेष है. रंगों के इस त्योहार को दुनियाभर में बड़े ही जोश और उमंग के साथ मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं होली की शुरुआत कब और क्यों हुई थी? आइए इस रंगीन पर्व की ऐतिहासिक यात्रा को समझते हैं.

पौराणिक कथा

अगर आपने कभी होली की कोई भी कहानी सुनी या पढ़ी होगी, तो आपने भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकशिपु की कथा जरूर सुनी होगी. इसे होली से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध और पुरानी कथा मानी जाती है. कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु एक अहंकारी और अत्याचारी राजा था, जो खुद को भगवान मानता था और चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें. जो उसकी बात नहीं मानता था, वह उसे सजा देता था। लेकिन हिरण्यकशिपु का खुद का बेटा भगवान विष्णु का सबसे बड़ा भक्त था.

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राजा को जब यह बात पता चली, तो उसने उसी भगवान विष्णु की पूजा करने से मना कर दिया. जब वह नहीं माना, तब उसने अपने पुत्र को मारने का कई बार प्रयास किया, लेकिन हर बार नाकामयाब हुआ. तब हारकर उसने अपनी बहन ‘होलीका’ से मदद मांगी। होलीका को भगवान ब्रह्मा द्वारा आग में न जलने का वरदान मिला था. जिस कारण होलिका जलती अग्नि में प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठ जाती है. लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं होता है. वहीं होलिका जलकर भस्म हो जाती है. तभी होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानकर हर साल मनाया जाता है.

जानिए राधा और कृष्ण से जुड़ी होली की कथा

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भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी की होली भी इस पर्व से जुड़ी प्रसिद्ध कथाओं में से एक है. कहा जाता है कि कृष्ण का रंग सांवला था, जिसके कारण वह सोचते थे कि क्या गोरी राधा उन्हें पसंद करेंगी. उन्होंने एक दिन मौका पाकर अपनी यह चिंता माता यशोदा को बताई. जिस पर हंसते हुए मजाकिया अंदाज में राधा पर रंग डालने की सलाह देती हैं. जिसे दोनों के बीच का रंग का अंतर गुलाल के रंग के कारण मिट जाएगा. कृष्ण ने उनकी यह मजाक में कही बात मान ली और तब ही से होली खेलने की यह परंपरा शुरू हो गई.