Congress: बिहार चुनाव परिणाम से कांग्रेस की इंडिया गठबंधन में स्थिति होगी कमजोर
बिहार चुनाव परिणाम पार्टी की रणनीति, संगठनात्मक क्षरण और आम जनता से दूरी को दर्शा रहे हैं. पार्टी स्थानीय मुद्दों की बजाय प्रचार हासिल करने वाले मुद्दों को तरजीह दे रही है. यह परिणाम इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर करने का काम करेगी.
Congress: बिहार चुनाव के नतीजों में एनडीए प्रचंड बहुमत के साथ चुनाव जीत रही है. एनडीए गठबंधन में शामिल दलों का प्रदर्शन शानदार रहा. भाजपा बिहार की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी और पिछली बार के मुकाबले जदयू की सीट लगभग दोगुनी हो गयी. वहीं चिराग पासवान, जीतन राम मांझी और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के प्रदर्शन ने भी सबको हैरान कर दिया.
वहीं दूसरी ओर महागठबंधन में शामिल सभी दलों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. चुनाव परिणाम से साफ जाहिर होता है कि महागठबंधन में शामिल दलों का वोट चोरी, एसआईआर और रोजगार मुहैया कराने के मुद्दे आम लोगों को लुभाने में नाकाम रहे. चुनाव परिणाम से जाहिर होता है कि कांग्रेस के वोट चोरी मुद्दे को आम जनता गंभीरता से नहीं ले रही है. एसआईआर और वोट चोरी के मसले पर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की 16 दिनों की बिहार में की गयी यात्रा अपेक्षित परिणाम देने में नाकाम रही.
दूसरे चरण के चुनाव से पहले राहुल गांधी ने वोट चोरी के मसले पर प्रेस कांफ्रेंस की थी और पार्टी को उम्मीद थी कि इससे चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में जा सकता है. लेकिन परिणाम ने बता दिया कि जमीनी स्तर पर संगठन की कमी, सीट बंटवारे पर विवाद और सही मुद्दों का चयन नहीं करना महागठबंधन को भारी पड़ गया.
महागठबंधन में सीटों का तालमेल सही तरीके से नहीं हो पाया और उसके सहयोगी दलों के बीच विश्वास का संकट पैदा हुआ. परिणाम से जाहिर होता है कि वोर चोरी का मुद्दा भले ही मीडिया में चर्चा का केंद्र बिंदु बन जाए, लेकिन इसका जमीन पर खास असर नहीं होने वाला है.
कांग्रेस को मंथन करने की जरूरत
देश के प्रमुख राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कांग्रेस दोयम दर्जे की पार्टी बन गयी है. बिहार जैसे प्रमुख राज्य में 61 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस पांचवें नंबर की पार्टी बनने के लिए संघर्ष कर रही है. बिहार चुनाव परिणाम पार्टी की रणनीति, संगठनात्मक क्षरण और आम जनता से दूरी को दर्शा रहे हैं. पार्टी स्थानीय मुद्दों की बजाय प्रचार हासिल करने वाले मुद्दों को तरजीह दे रही है.
यह परिणाम इंडिया गठबंधन में कांग्रेस की स्थिति को और कमजोर करने का काम करेगी. अब इंडिया गठबंधन में शामिल दलों का भरोसा भी कांग्रेस के प्रति कमजोर होगा और राहुल गांधी के वोर चोरी के मुद्दे की चमक भी फीकी पड़ेगी. साथ ही कांग्रेस की जाति आधारित राजनीतिक एजेंडा भी कमजोर होगा.बिहार मंडल राजनीति की प्रयोगशाला रहा है और चुनाव में महागठबंधन की करार हार से साबित होता है कि अब सिर्फ जाति आधारित राजनीति से चुनाव नहीं जीता जा सकता है.
चुनाव जीतने के लिए आम लोगों का नेतृत्व के प्रति भरोसा, विकास, सुशासन और जनकल्याणकारी योजनाओं का बेहतर समावेश होना जरूरी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साबित कर दिया कि वे इस रणनीति के माहिर खिलाड़ी है. कांग्रेस के लिए चुनाव परिणाम आने वाले समय में बड़ा संकट खड़ा कर सकता है. इस हार से कांग्रेस के बिहार में फिर से खुद को खड़ा करने की संभावना को गहरा झटका लगा है और इसका असर उत्तर प्रदेश में भी दिख सकता है.
