जम्मू-कश्मीर: महबूबा- उमर के खिलाफ हिरासत के अंतिम दिन PSA के तहत मामला दर्ज, भड़का विपक्ष

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की ”ऐहतियातन हिरासत” पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले गुरुवार को उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया. इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 7, 2020 8:49 AM

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की छह महीने की ”ऐहतियातन हिरासत” पूरी होने से महज कुछ घंटे पहले गुरुवार को उनके खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया. इससे पहले दिन में नेशनल कॉन्फ्रेंस के महासचिव तथा पूर्व मंत्री अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के वरिष्ठ नेता सरताज मदनी पर भी पीएसए लगाया गया. एक पुलिस अधिकारी के साथ एक मजिस्ट्रेट यहां हरि निवास पहुंचे, जहां 49 वर्षीय उमर पांच अगस्त से नजरबंद हैं.

इसी दिन केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा वापस लेकर उसे दो केन्द्र शासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू-कश्मीर में विभाजित कर दिया था. उन्होंने पीएसए के तहत जारी वारंट उमर को सौंपा. उमर के दादा तथा पूर्व मुख्यमंत्री शेख मोहम्मद अब्दुल्ला के शासनकाल में 1978 में लकड़ी की तस्करी को रोकने के लिये यह कानून लाया गया था. जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत दो प्रावधान हैं-लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा को खतरा. पहले प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के छह महीने तक और दूसरे प्रावधान के तहत किसी व्यक्ति को बिना मुकदमे के दो साल तक हिरासत में रखा जा सकता है.
साल 2000 में तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में विदेश राज्य मंत्री तथा वाणिज्य मंत्री रहे उमर को तीन पन्नों का एक डॉजियर सौंपा गया है, जिसमें उनपर अतीत में व्यवस्था के खिलाफ बयान देने का आरोप है. उमर 2009 से 2014 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ भी पिछले साल सितंबर में पीएसए के तहत मामला दर्ज किया था, जिसकी दिसंबर में समीक्षा की गई थी.
इसी प्रकार, मजिस्ट्रेट और एक पुलिस अधिकारी ने महबूबा मुफ्ती के सरकारी आवास पर जाकर उन्हें 2010 में दिये गए बयानों को लेकर डॉजियर सौंपा जिसमें उन भाषणों को उन्हें हिरासत में रखने का कारण बताया. महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी 2014 से भाजपा की सहयोगी पार्टी थी. दोनों ने मिलकर 2018 तक जम्मू-कश्मीर में सरकार चलाई. भाजपा ने अचानक सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद वहां राज्यपाल शासन लगा दिया गया.
घाटी में सामान्य हालात के केंद्र के दावे की पोल खोलनेवाला
इस मामले में मुख्यधारा के दलों ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह केंद्र के केंद्रशासित प्रदेश में सामान्य हालात के दावे को झुठलाता है. अधिकारियों ने बताया कि पुलिस की मौजूदगी में मजिस्ट्रेट ने उस बंगले में जाकर महबूबा को आदेश सौंपा जहां उन्हें नजरबंद रखा गया है.
पीडीपी ने कहा कि इस तरह के ‘अलोकतांत्रिक कदम’ उठाकर केंद्र लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है. पीडीपी के प्रवक्ता ने कहा, जम्मू-कश्मीर में यदि सबकुछ सामान्य है तो मुख्यधारा के नेताओं के साथ अपराधियों जैसा बर्ताव क्यों किया जा रहा है? माकपा के वरिष्ठ नेता एम.वाई. तारिगामी ने कहा कि यह फैसला केंद्र के जम्मू-कश्मीर में सामान्य हालात के दावे पर सवालिया निशाना लगाता है.
कांग्रेस की जम्मू-कश्मीर इकाई के मुख्य प्रवक्ता रवींद्र शर्मा ने चार नेताओं पर पीएसए लगाने को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया. पी. चिदंबरम ने कहा, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती और अन्य के खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) की क्रूर कार्रवाई से हैरान हूं. आरोपों के बिना किसी पर कार्रवाई लोकतंत्र का सबसे घटिया कदम है. जब अन्यायपूर्ण कानून पारित किए जाते हैं या अन्यायपूर्ण कानून लागू किए जाते हैं, तो लोगों के पास शांति से विरोध करने के अलावा क्या विकल्प होता है?’

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