राजस्थान विधानसभा चुनाव आज : जोधपुर में भाजपा और कांग्रेस में बराबरी की टक्कर

जोधपुर से अंजनी कुमार सिंह पहला आम चुनाव जीत कर भी इसकी खुशी नहीं मना पाये थे महाराजा हनवंत जोधपुर के आलीशान उम्मेद भवन, मेहरगढ़ किला और खासकर महाराजा हनवंत और प्रेयसी जुबैदा की प्रेम कहानी इस चुनावी मौसम में भी सुने जा सकते हैं. राजस्थान की जोधपुर सीट से भाजपा ने अतुल भंसाली और […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 7, 2018 7:20 AM
जोधपुर से अंजनी कुमार सिंह

पहला आम चुनाव जीत कर भी इसकी खुशी नहीं मना पाये थे महाराजा हनवंत
जोधपुर के आलीशान उम्मेद भवन, मेहरगढ़ किला और खासकर महाराजा हनवंत और प्रेयसी जुबैदा की प्रेम कहानी इस चुनावी मौसम में भी सुने जा सकते हैं. राजस्थान की जोधपुर सीट से भाजपा ने अतुल भंसाली और कांग्रेस ने मनीषा पंवार को उम्मीदवार बनाया है, दोनों के बीच मुकाबला बराबरी का है. इस बार के चुनाव में मारवाड़ राज परिवार की कोई सीधी भूमिका नहीं है, लेकिन चुनावी चर्चाओं के बीच राजपरिवार का नाम जरूर आता है. यह चर्चा जोधपुर लोकसभा सीट से पहला आम चुनाव जीतकर भी जीत की खुशी न मना पाने वाले महाराजा हनवंत सिंह और उनकी प्रेयसी जुबैदा को लेकर होती है.
लोकसभा का पहला आम चुनाव 1952 में महाराजा हनवंत ने कांग्रेस के खिलाफ अपनी अलग पार्टी बनाकर लड़ा और तत्कालीन मुख्य मंत्री जयनारायण व्यास को हराने में सफल रहे. लेकिन, वे इस जीत की खुशी मना पाते उससे पहले ही दुनिया से अलविदा हो गये. वोटों की गिनती में अपने प्रतिद्वंदी से भारी बढ़त के बीच ही वह अपनी प्रेयसी जुबैदा के साथ हवाई सफर पर निकल पडे. लेकिन प्लेन क्रैश हो गया और महाराजा हनवंत अपनी जीत की खुशी नहीं मना पाये. फिलहाल उम्मेद भवन अब तीन भागों में बंटा है, जिसके तकरीबन 70 फीसदी हिस्से में होटल , 10 फीसदी हिस्से में म्यूजियम और 20 फीसदी हिस्से में राजपरिवार के सदस्य रहते हैं. राजपरिवार के लिए अच्छी बात यह रही की तमाम विपरीत परिस्थितियों के बाद भी महारानी कृष्णा कुमारी ने राजपरिवार को संभाला और महाराजा हनवंत के अधूरे ख्वाब को आगे बढ़ाया.

हर चुनाव में हनवंत और जुबैदा की प्रेम कहानी की होती है चर्चा
उम्मेद भवन में काम करने वाले कर्मचारी बताते हैं कि 1949 में एक कार्यक्रम में महाराजा हनवंत सिंह को नर्तकी जुबैदा से प्यार हो गया. तमाम विरोध के बावजूद उन्होंने तलाकशुदा और एक बच्चे की मां जुबैदा से 1950 में आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. जुबैदा बुद्धि और खुबसूरती में बेमिसाल थी. इसीलिए महाराजा ने शादी के बाद उनका नाम विद्या रानी रखा. महाराजा हनवंत को परिवार वालों ने उम्मेद भवन में जुबैदा के साथ रहने की अनुमति नहीं दी, एेसे में महाराजा राजभवन की सारी सुख-सुविधाओं का त्याग कर मेहरगढ़ किला में रहने लगे. तभी से हर चुनाव में महाराजा हनवंत और जुबैदा के किस्से लोग पूछते और सुनाते हैं. 2001 में मशहूर फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल ने महाराजा हनवंत और जुबैदा की प्रेम कहानी पर फिल्म भी बनायी, जिसे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया.

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