चोटी काटने की घटना पर पढिए पत्रकार पुष्‍यमित्र का व्यंग्य लेख- चोटी छोटी करने वाले भूत के नाम एक सिफारिशी पत्र

उत्तर भारत के कई राज्यों में चोटी काटने वाले गैंग ने दहशत मचा रखी है. कई महिलाओं ने शिकायत की है कि किसी ने उन्हें बेहोश कर रहस्यमयी तरीके से उनके बाल काट लिये. इस रहस्य को सुलझाने में पुलिस को भी अबतक कामयाबी नहीं मिली है जबकि यहां की महिलाएं इससे डरी हुई और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 3, 2017 12:56 PM

उत्तर भारत के कई राज्यों में चोटी काटने वाले गैंग ने दहशत मचा रखी है. कई महिलाओं ने शिकायत की है कि किसी ने उन्हें बेहोश कर रहस्यमयी तरीके से उनके बाल काट लिये. इस रहस्य को सुलझाने में पुलिस को भी अबतक कामयाबी नहीं मिली है जबकि यहां की महिलाएं इससे डरी हुई और चिंतित हैं. इस घटना पर प्रभात खबर के पत्रकार पुष्‍यमित्र ने अपने फेसबुक वॉल पर एक व्यंग्य लेख लिखा है जिसका शीर्षक है- ‘चोटी छोटी करने वाले भूत के नाम एक सिफारिशी पत्र’ यह लेख हम आपके समक्ष रख रहे हैं.

यह व्यंग्य लेख हमने पुष्‍यमित्र के फेसबुक वॉल से उठाया है…

चोटी काटने वाला भूत मुझे थोड़ा पुरुष विरोधी टाइप लगता है. अगर यह औरत होगी तो जरूर घोर नारीवादी किस्म की महिला रही होगी. बताईये, जिन जुल्फों के पेचोखम में हम जिंदगी गुजार देने की कसमें खाते हैं, यह भूत उन्हीं रेशमी जुल्फों का कबाड़ा करने पर तुला है. यह तो भूतों के देवता का शुक्र है कि उसने इस भूत को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान टाइप जाट लैंड में उलझा कर रखा है, बंगाल और बिहार के इलाकों में नहीं भेजा। जहां की औरतें जुल्फों में कैद कर लेने का जादू चलाने के लिये मशहूर रही हैं.

अरे ये जुल्फें हैं तो औरत है. औरत का औरतपना है. उसकी खूबसूरती है, अदा है. हमारे इलाके में तो आज भी पार्लर में जाकर जुल्फें छोटी करने वाली औरतों को अच्छी निगाह से नहीं देखा जाता. और अगर औरत की जुल्फें कमर तक नहीं पहुंचीं तो वह नकली गुच्छे लगाकर उसे नितंब के नीचे तक पहुंचा लेती हैं. और ताउम्र उन नसीब वालियों से जलती रहती हैं, जिनकी घनी जुल्फें घुटनों को छूती हैं.

जुल्फ लहराते हैं तो सावन आ जाता है, जुल्फ बिखरते हैं तो बदरी छा जाती है और जब ऐश्वर्या राय अपनी चोटी को घुमाती है तो दिल हूम हूम करने लगता है. भले ही इन जुल्फों के साज संवार में हर हफ्ते कलीनिक प्लस के चार बड़े पाउच और शिकाकाई तेल की आधी बोतल खर्च हो जाये. ये जुल्फ ही तो जंजीर है जिसमें मर्द ताउम्र बांध कर रखा जा सकता है. भले ही बंधने के बाद वह ताउम्र चोटी खींच खींच कर बताता रहे, तुम मेरी आश्रिता हो. भले ही इन जुल्फों जंजीर में बांधने वाली ताउम्र यह महसूस करती रहे कि यह बंधन तो उल्टा है. जो बंधा है, वह आजाद है और जिसने बांधा है, वह खुद बंध गयी है. पर क्या करें, यही तो मुहब्बत की रवायत है, भारतीय रिश्तों की खूबसूरती है. नायिकाएं तरसती हैं, तड़पती हैं, फिर मान जाती हैं, फिर खुद ही बंधिता बनकर रह जाती हैं.

अब इस खूबसूरत बंधन को तहस नहस करने में वह भूत क्यों जुट गया है. शहर वालियां तो खुद पार्लरों की साजिश का शिकार हो रही हैं, अब गांव की गोरियां भी बिना जुल्फों के हो जाएंगी तो मुहब्बत का क्या होगा. और गर मुहब्बत न रही तो इस जमाने का क्या होगा. तो सुन ले ए चोटी काटने वाले भूत, तू मुहब्बत के नाम पर रुक जा. इन जुल्फों को रहने दे, जिनके सहारे दुनिया इतनी खूबसूरत है. और अगर यह सब करने पर तुल ही गया है, तो उधर ही रहना. हमारे इलाके में मत रहना। हमारी खेती का सवाल है, भई। जुल्फ बिखरेगी, तभी तो सावन आयेगा.